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पूजा करते समय सुख-सुविधाओं से जुड़ी चीजें पाने की कामना करेंगे तो मन को शांति नहीं मिल पाती है, निस्वार्थ भाव से करनी चाहिए भक्ति

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एक घंटा पहले

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  • एक राजा ने घोषणा कर दी कि अगले दिन जो व्यक्ति मेरे महल की जिस वस्तु को हाथ लगा देगा, वह उसकी हो जाएगी, अगले दिन राज्य की प्रजा पहुंच गई महल में

पूजा करते समय अधिकतर लोग भगवान से सुख-सुविधाओं से जुड़ी पाने की कामना करते हैं। पूजा के बदले भगवान से कुछ न कुछ मांगा जाता है। इस तरह की भक्ति करने के बाद जब मनोकामनाएं पूरी नहीं होती हैं तो मन अशांत हो जाता है। मन की शांति चाहिए तो भक्ति निस्वार्थ भाव से ही करनी चाहिए। ये बात एक लोक कथा से समझ सकते हैं।

एक प्रचलित लोक कथा के अनुसार पुराने समय में एक राजा ने अपने राज्य में घोषणा कर दी कि अगले दिन जो भी व्यक्ति मेरे महल की जिस चीज पर हाथ रख देगा, वह उस की हो जाएगी।

राजा की घोषणा सुनकर प्रजा खुश थी। सभी राजा की अलग-अलग कीमती चीजों को पाना चाहते थे। अगले दिन जैसे ही सुबह हुई राजा के महल में प्रजा की भीड़ लग गई। कुछ लोग सोने-चांदी के बर्तन लेने की कोशिश कर रहे थे, तो कुछ लोग हीरे-मोती के आभूषण लेने लगे।

राजा दूर अपने सिंहासन पर बैठकर ये नजारा देख रहे थे। उनकी प्रजा महल की चीजों को पाने के लिए दौड़भाग कर रही थी। तभी एक व्यक्ति राजा की ओर बढ़ रह था। वह राजा के पास पहुंचा और उसने राजा पर हाथ रख दिया। अब राजा उस व्यक्ति का हो गया यानी राजा की सारी चीजों का मालिक वह बन गया।

राजा ने पूरी प्रजा को समान अवसर दिया था, लेकिन सिर्फ व्यक्ति विद्वान था, जिसने राजा को ही अपना बना लिया।

इस प्रसंग का संदेश हमारी भक्ति से जुड़ा है। लोग भगवान की बनाई हुई चीजों को पाने के लिए पूजा-पाठ करते हैं, दौड़भाग करते हैं, हर व्यक्ति की कोशिश रहती है कि किसी भी तरह सुख-सुविधा की सारी चीजें मिल जाए। इसी सोच की वजह से अधिकतर लोगों का मन अशांत रहता है। अगर भक्ति निस्वार्थ भाव से की जाए तो भगवान स्वयं भक्त पर कृपा कर सकते हैं। भगवान की कृपा मिल जाएगी तो इस दुनिया की सारी चीजों से मोह हट जाएगा, जीवन में आनंद का संचार हो जाएगा, मन शांत रहेगा और सारी समस्याएं खत्म हो जाएंगी।

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