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तर्पण, श्राद्ध कर्मों के लिए चांदी के बर्तन होते हैं शुभ, चांदी के न हो तो तांबे के बर्तनों का उपयोग करें, अगर कोई जरूरतमंद घर आए तो उसे खाली हाथ नहीं जाने देना चाहिए

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4 घंटे पहले

  • पितृ पक्ष में घर में शांति बनाए रखनी चाहिए, जिन घरों में अशांति होती हैं, वहां पितरों को तृप्ति नहीं मिलती है

हर साल आश्विन मास के कृष्ण पक्ष को पितृ पक्ष के रूप में मनाते हैं। इस बार 17 सितंबर तक पितृ पक्ष रहेगा। इन दिनों में किए गए श्राद्ध और तर्पण से पितर देवताओं को तृप्ति मिलती है। उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के अनुसार घर-परिवार के मृत सदस्य को ही पितर देवता के रूप में पूजा जाता है। इनकी आत्मा की तृप्ति के लिए श्राद्ध पक्ष में पुण्य कर्म किए जाते हैं। जानिए कुछ ऐसी बातें जो पिंडदान, तर्पण और श्राद्ध कर्म करते समय ध्यान रखनी चाहिए…

तर्पण, श्राद्ध कर्म के लिए किस धातु के बर्तन होते हैं शुभ

  • श्राद्ध कर्म या तर्पण करते समय चांदी के बर्तन का उपयोग करना चाहिए। पितरों को अर्घ्य देने के लिए, पिंडदान करने के लिए और ब्राह्मणों के भोजन कराने के लिए चांदी के बर्तनों उपयोग करना चाहिए।
  • अगर घर में चांदी के बर्तन नहीं हैं तो कांसे या तांबे के बर्तन का उपयोग भी कर सकते हैं। अगर ये बर्तन भी नहीं हैं तो दोने-पत्तल पर भी ब्राह्मणों को खाना खिला सकते हैं।
  • श्राद्ध कर्म के लिए गाय का दूध और गाय के दूध से बने घी, दही का उपयोग करना चाहिए।
  • पितरों को धूप देते समय व्यक्ति को सीधे जमीन पर बैठना नहीं चाहिए। रेशमी, कंबल, ऊन, लकड़ी या कुश के आसन पर बैठकर ही श्राद्ध कर्म करना चाहिए।
  • पितृ पक्ष में ब्राह्मण और अन्य जरूरतमंद लोगों को भोजन कराना चाहिए। ब्राह्मणों को शांति से भोजन कराना चाहिए। मान्यता है कि खाते समय जब तक ब्राह्मण मौन रहते हैं तब तक पितर देवता भी भोजन ग्रहण करते हैं।
  • ध्यान रखें अगर कोई जरूरतमंद व्यक्ति हमारे घर आता है तो उसे खाली हाथ नहीं जाने देना चाहिए। उसे धन या अनाज का दान जरूर करें। उसे खाना भी दे सकते हैं।
  • ब्राह्मण को भोजन कराने के बाद धन का दान दें और पूरे सम्मान के साथ उन्हें विदा करना चाहिए।
  • पितृ पक्ष में पितरों के लिए तर्पण, श्राद्ध आदि कर्मों का फल पाना चाहते हैं तो घर में क्लेश नहीं करना चाहिए। पति-पत्नी और परिवार के सभी सदस्यों को प्रेम से रहना चाहिए। जिन घरों में अशांति होती हैं, वहां के पितर देवता पिंडदान, तर्पण, श्राद्ध कर्म से तृप्त नहीं होते हैं।

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