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गुंजन सक्सेना के विवाद के बाद कोहराम के निर्माता मेहुल कुमार ने दिया बयान, बोले- ‘पहले तथ्यों की जांच के लिए आर्मी के लोगों को शूटिंग में साथ रखा जाता था’

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  • After Gunjan Saxena’s Controversy, Mehram Kumar, The Producer Of Kohram, Said, “First, People Of The Army Were Kept In The Shooting To Check The Facts”.

ज्योति शर्मा17 घंटे पहले

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  • पहले देशभक्ति की फिल्म बनाने के लिए परमिशन नहीं लेनी पड़ती थी
  • कोहराम फिल्म में इस्तेमाल की गई थीं असल मिसाइल और गाड़ियां

नेटफ्लिक्स पर रिलीज हुई फिल्म गुंजन सक्सेना के बाद से ही कई आईएएफ ऑफिसर द्वारा फिल्म में दिखाए तथ्यों को गलत बताया गया है। फिल्म में दिखाई गई तमाम गलतियों के बाद फिल्म विवादों में आ गई है। इसी बीच स्वतंत्रता, देशभक्ति और आर्मी अफसर पर कोहराम, क्रांतिवीर और तिरंगा जैसी बेहतरीन फिल्में बना चुके मेहुल कुमार ने भास्कर के साथ अपना अनुभव शेयर किया है। उन्होंने बताया कि पहले किसी भी तरह की परमिशन की जरूरत नहीं पड़ती थी मगर शूटिंग के दौरान आर्मी के व्यक्ति को तथ्य देखने के लिए साथ रखा जाता था।।

आर्मी की हेल्प से फिल्म शूट करें कोई भी गलती करने की गुंजाइश ही नहीं होती हैः

पहले जब भी देश भक्ति पर फिल्में बनती थी तब ज्यादातर डायरेक्टर रिजल्ट ध्यान रखते थे और सेट पर जरूर एक आर्मी ऑफिसर हुआ करता था जो कपड़ों से लेकर ऑफिसर रैंक, सैल्यूट करना और किस तरह से बोलते हैं यह सभी चीजें बताते थे। अब मेकर्स फिल्म बनाने के पहले बिना सोचे समझे डिसीजन ले लेते हैं और उनकी बनाई हुई फिल्में हमारी आर्मी और पुलिस वालों की छवि को खराब करती है जिसके कारण इंपा और आर्मी में यह डिसीजन लिया है कि जब भी आपको ऐसी फिल्मों के लिए आर्मी से परमिशन लेनी पड़ेगी।

ऐसी फिल्मों में पहले और अब मैं क्या बदलाव आए हैंः

देखिए पहले कि फिल्मों में इतनी परमिशन की जरूरत नहीं होती थी मैंने ती- तीन फिल्में इसी सब्जेक्ट पर बनाई है मगर फिल्ममेकर को राष्ट्रीय अस्मिता और फौज या पुलिस की परंपराओं का ध्यान रखना पड़ता है। मैंने तिरंगा क्रांतिवीर और कोहराम जो नाना और अमित जी के साथ बनाई हैं। मैं फिल्मों की शूटिंग के वक्त एक मिलिट्री के ऑफिसर को रखता था और उसकी सलाह पर उसके दिए निर्देशों पर ड्रेस कोड से लेकर उनकी पोजीशन के हिसाब से जो भी प्रोटोकॉल होता था उसको मेंटेन करता था।

हमारी बनाई किसी फिल्म में सेंसर का ऑब्जेक्शन नहीं आयाः

फिल्म में आर्मी का ऑफिसर हो, चाहे ब्रिगेडियर हो, मेजर हो हम उनका कॉस्टयूम भी उसी तरह का डिजाइन कराते थे जैसा वह हमें बताते थे और इसका ध्यान हमें शुरुआत से ही रखना पड़ता है जो कि हम किया करते थे। मगर आजकल कहीं न कहीं इसकी उपेक्षा हो जाती है और शायद यही वजह है कि मेरी किसी भी फिल्म पर सेंसर का कोई ऑब्जेक्शन नहीं आया और ना ही सीन के किसी हिस्से को कट करने के लिए कहा गया।

डिफेंस सेक्टर को देनी चाहिए गाइडलाइनः

आज जब इस तरह की बात आई है कि अगर सेना के थीम पर कोई पटकथा है तो उनसे परमिशन लेनी पड़ेगी इस पर हमने इम्पा से भी कहा है कि इस मसले पर समग्रता से बात करें। अगर कोई बड़े बजट की फिल्म है और पूरी होने के बाद उस पर डिफेंस की परमिशन लेनी पड़ेगी तो उसकी कमर ही टूट जाएगी ऐसे में डिफेंस सेक्टर भी अपनी गाइडलाइंस बनाकर हमे दें जैसा कि सेंसर बोर्ड करता है। अगर आप फौज या डिफेंस पर कोई फिल्म बना रहे हैं तो इन गाइडलाइंस का आपको पालन करना होगा ना कि किसी तरह की परमिशन की जरूरत हो।

परमिशन लेना एक लंबी प्रक्रिया होगीः

हाल फिलहाल में इस तरह की कोई गाइडलाइंस नहीं है और डिफेंस ने इस तरह का कानून बना दिया है कि अगर उस सब्जेक्ट पर कोई फिल्म बन रही है तो उनसे परमिशन लेनी होगी। ऐसे में आने वाले समय में बहुत बड़ी प्रॉब्लम आने वाली है इसके लिए हमने इम्पा से भी कहा है कि वह एक लेटर लिखें कि वह एक गाइडलाइंस जारी करें जिसका हम सभी को पालन करना हो और परमिशन की जरूरत ना हो। परमिशन लेना एक लंबी प्रक्रिया है और व्यावहारिक तौर पर इसका पालन करना मुश्किल होगा।

कोहराम फिल्म के लिए आर्मी के लोगों ने की थी मेरी सराहनाः

इन दिनों जो फिल्में या वेब सीरीज बनती हैं तब मेकर्स कॉस्ट्यूम और बाकी बातों का ध्यान नहीं रखा जाता। जब मैंने फिल्म कोहराम में कारगिल के जवानों को श्रद्धांजलि दी थी तब मुझे आर्मी के लोगो का फोन आया था कि आपने जिस तरह से जवानों को श्रद्धांजलि दी है और आर्मी को दिखाया है वो बहुत ही बेहतरीन है।

कोहराम में इस्तेमाल की गईं आर्मी की असल मिसाइल और गाड़ियांः

कोहराम और तिरंगा में मैंने मिलिट्री की गाड़ियां ही यूज की थीं परमिशन के साथ। जब भी मैंने फिल्म बनाई है आर्मी से मैने हेल्प मांगी है और उन्होंने की है। तिरंगा के क्लाइमेक्स सीन में जो मिसाइल दिखाई गई है वो आर्मी की मिसाइल थीं जो उन्होंने मांगने पर मुझे दी थीं। इसके साथ ही जो नाना पाटेकर और राज साहब मिल्ट्री की गाड़ी लेकर आते है वो मिलिट्री से हमने परमिशन लेकर फिल्म में यूज की थीं। जब मैने उन्हें कहा था कि मुझे रियल मिलिट्री की गाड़ीयां इस्तेमाल करनी हैं तो उन्होंने कहा था कि एक लिखित लेटर दीजिए फिर हम आपको उसके बाद परमिशन दे देंगे। इस तरह से मिलिट्री की गाड़ी हमे यूज करने मिली थी।

पहले फिल्मों मे हर बात की बारीकी से ध्यान रखा जाता थाः

पुलिस कमिश्नर की जब डेथ होती है उसके बाद उनका अंतिम संस्कार किस तरह होता है ये शिवाजी पार्क में हमने शूट किया था। पूरी पुलिस परमिशन के साथ फायर और कैसे उन्हें सलामी दी जाती है पुलिस वाले भी हैं, मिनिस्टर भी हैं, नाना भी हैं, कैसे सब कुछ किया जाता है। जैकी श्रॉफ फिल्म कोहराम में मेजर राठोड का किरदार कर रहे थे तो उनकी भी अंतिम यात्रा पूरी वर्दी के साथ की थी और जो लोग उस अंतिम यात्रा में थे वह सारे फौज के लोग वर्दी में बंदूक की सलामी के साथ उनको पूरी तरह तिरंगे में लपेटकर ले गए थे। जिस तरह की हकीकत में प्रक्रिया होती है।

किसी भी तरह का कोई भी ऑब्जेक्शन नहीं आया था बल्कि कई फौज के और पुलिस के बड़े ऑफिसर का फोन आया था और उन्होंने हमारे काम को सराहा था कि आपने बिल्कुल वैसा ही दिखाया जैसा हकीकत में होता है। फिर बात चाहे आर्मी की हो या पुलिस डिपार्टमेंट की, वह फिल्म देखते थे तो वह भी खुश होते थे और बोलते थे ऐसा फिल्मों में बहुत कम दिखाते हैं। मुझे याद है उस समय के पुलिस कमिश्नर ने भी मुझे फोन करके कहा था कि आपने परमिशन भले लिया लेकिन आपने जिस तरीके से फिल्म में सीन को दिखाया है वह हूबहू वैसा ही है चाहे वह सलामी की बात हो फायर की संख्या की बात हो। आपने एक दम सही फिल्मांकन किया है। मैंने लगभग अपनी हर फिल्मों में इस तरह के सीन किए हैं लेकिन कभी कोई भी समस्या नहीं आई है जिससे देशभक्ति पर या अस्मिता पर कोई सवाल उठाए जा सकें ।

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