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12 घंटे पहले
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- मंगलवार को हनुमान की उपासना का महत्व, वाल्मीकि रामायण से रामचरिचमानस तक उनके हर काम में है कोई सीख
आज मंगलवार है, ये भगवान हनुमान की आराधना का दिन है। भगवान हनुमान को संकटमोचक भी कहते हैं क्योंकि भगवान राम पर जब-जब भी कोई संकट आया उसके दूर करने के लिए हनुमान ही आगे आए। बजरंग बली का धार्मिक महत्व तो है ही, लेकिन उनके कामों से आप अपने जीवन में कई चीजें उतार सकते हैं।
आइए सीखते हैं उनके जीवन से क्या उतारा जा सकता है…
- हार मानने से पहले एक और कोशिश करें
वाल्मीकि रामायण का प्रसंग है। जब हनुमान सीता की खोज में लंका गए तो उन्होंने हर जगह देख ली, लेकिन सीता कहीं नहीं दिखीं। लंका का हर घर, हर महल देख लिया। जब सीता नहीं मिलीं तो वे निराश हो गए। उन्होंने मन ही मन सोचा कि अगर खाली हाथ लौटा तो सारे वानरों को मृत्युदंड मिलेगा। मेरी असफलता का दंड खोज में निकले सारे वानरों को भोगना पड़ेगा। इससे अच्छा है मैं यहां आत्महाद कर लूं। मैं समुद्र के उस पार लौटूंगा ही नहीं, तो जामवंत, अंगद सहित बाकी लोग इंतजार करते रहेंगे और उनके प्राण बच जाएंगे।
हनुमान जी ने मन में आत्मदाह का निश्चय कर लिया। इससे उनके मन की बेचैनी खत्म हुई। उन्होंने फिर शांत चित्त से विचार किया कि आत्मदाह करने से पहले एक बार फिर लंका के उन स्थानों को देख लूं जहां अभी तक नहीं गया। एक आखिरी प्रयास कर लेता हूं। इसी आखिरी प्रयास के तहत वे अशोक वाटिका पहुंचे और वहीं उन्हें सीता जी मिल गईं।

- सीखने के लिए हर तरह से तैयार रहें
ग्रंथ कहते हैं भगवान हनुमान ने सूर्य को अपना गुरू बनाया। उन्हीं से सारी शिक्षा ग्रहण की। सारी विद्याएं उन्हीं से पाईं। जब हनुमान शिक्षा लेने सूर्य भगवान के पास गए तो उन्होंने कहा कि मैं तो एक पल भी ठहर नहीं सकता। मेरा रथ हमेशा चलता रहता है। मेरे ठहरने से सृष्टि का विनाश हो जाएगा। तुम किसी और को गुरु बना लो। तो हनुमानजी ने कहा मैं भी आपके साथ आपकी गति से चलते-चलते शिक्षा हासिल कर लूंगा।
भगवान सूर्य ने कहा कि गुरु शिष्य आमने सामने हो तो ही शिक्षा दी जा सकती है। साथ चलते हुए नहीं। तो हनुमान जी ने कहा तो में आपके सामने रह कर उल्टा चलूंगा लेकिन मैंने आपको अपना गुरु मान लिया है, सो शिक्षा तो आपसे ही ग्रहण करूंगा। हनुमानजी की लगन देखते हुए सूर्य ने उन्हें अपना शिष्य बनाया और शिक्षा दी।

- काम पूरा होने तक आराम नहीं
रामचरितमानस में सुंदरकांड का प्रसंग है। हनुमान समुद्र लांघ रहे थे। समुद्र ने सोचा कि ये श्रीहरि का काम करने जा रहे हैं, थक ना जाएं इसलिए समुद्र के तल में रहने वाले मेनाक पर्वत से कहा कि तुम ऊपर जाओ और हनुमान को अपने ऊपर विश्राम करने के लिए जगह दो। मेनाक तत्काल ऊपर आया और उसने हनुमान से कहा कि आप थोड़ा विश्राम कर लें। हनुमान ने विश्राम नहीं किया। लेकिन, मेनाक के आग्रह को टाला भी नहीं। उन्होंने अपने हाथ से मेनाक को छूकर उनके आग्रह का मान रख लिया और कहा कि कि जब तक श्रीराम का काम ना हो जाए, मैं विश्राम नहीं कर सकता।

- शक्ति के साथ बुद्धि और विनम्रता भी हो
भगवान हनुमान अपार शक्ति के स्वामी हैं, लेकिन वे शक्तिशाली होने के साथ ही उतने विनम्र भी हैं और बुद्धिमान भी। उन्होंने पूरी रामायण में कभी भी बल का अनावश्यक प्रयोग नहीं किया।

- बिना अनुमति कोई काम ना करें
रामचरित मानस के सुंदर कांड में ही अशोक वाटिका का प्रसंग है। सीता जी से जब हनुमान की मुलाकात हुई तो उन्होंने देखा कि सीता जी बहुत दीन स्थित में है। वे श्रीराम के दर्शन के लिए व्याकुल हैं। लंका में सीता की दुःखभरी स्थिति देख हनुमान ने उनसे कहा था कि माता, मैं चाहूं तो अभी आपको कंधे पर बैठाकर ले जा सकता हूं, लेकिन मुझे ऐसा करने की आज्ञा नहीं मिली है। मुझे सिर्फ आप तक संदेश पहुंचाने की आज्ञा है।
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