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ड्रॉपलेट्स से एयरोसोल ज्यादा खतरनाक: कोरोना पॉजिटिव मरीज इतने एयरोसोल छोड़ सकता है कि वह भीड़ में कई लोगों को बीमार कर दे

दैनिक भास्कर

Jul 08, 2020, 03:15 PM IST

239 वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि कोरोनावायरस एयरबोर्न है यानी हवा में भी जिंदा रहता है और बंद कमरों में भी लोगों को शिकार बना सकता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने भी अब इस दावे को मान लिया है। 

डब्ल्यूएचओ का पहले दावा था कि कोरोनावायरस मुख्य रूप से ड्रॉपलेट्स की वजह से फैलता है, जो खांसी या छींक के जरिये शरीर से बाहर निकलते हैं और सतह पर गिरते हैं, लेकिन 32 देशों के 239 वैज्ञानिकों ने एक ओपन लेटर में प्रमाणों के साथ दावा किया कि हवा में मौजूद छोटे कण कई घंटों तक संपर्क में आए लोगों को शिकार बना सकते हैं। इसके बाद डब्ल्यूएचओ ने भी इसे मान लिया। न्यूयॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, रिसर्चर्स ने अगले हफ्ते आने वाली साइंटिफिक जर्नल में यह रिसर्च देने का फैसला किया है। 

डब्ल्यूएचओ ने पहले दावे को नहीं माना था
डब्ल्यूएचओ ने भी 29 जून को जारी अपने लेटेस्ट अपडेट में कहा था कि यह वायरस हवा में तभी फैल सकता है, जब मेडिकल प्रोसीजर की वजह से एयरोसोल या पांच माइक्रोन से छोटी ड्रॉपलेट्स बनती हैं। एक माइक्रोन यानी मीटर का दस लाखवां हिस्सा। डब्ल्यूएचओ के मुताबिक, ऐसी स्थिति में सही वेंटिलेशन और एन95 मास्क ही इंफेक्शन से बचा सकता है।

इससे पहले तक डब्ल्यूएचओ कहता रहा कि हाथों की धुलाई से कोरोनावायरस से बचा जा सकता है। हालांकि, सेंटर फॉर डिसीज कंट्रोल एंड प्रिवेंसन का कहना है कि सतह से वायरस फैलने का खतरा बहुत कम है। डब्ल्यूएचओ के इंफेक्शन कंट्रोल में टेक्निकल लीड डॉ. बेनेडेट एलेग्रांजी ने कहा कि हवा से वायरस फैलने के संबंध में प्रमाण संतोषजनक नहीं थे। 

वैज्ञानिकों के दावे का आधार क्या है? 
कोरोनवायरस हवा में छोटी-छोटी ड्रॉपलेट्स के तौर पर कई घंटों तक रह सकता है और सांस लेने पर लोगों को अपना शिकार बना सकता है। यह जोखिम भीड़भरे कमरों और हॉल में बढ़ जाता है, जहां हवा का फ्लो अच्छा नहीं है।

हालांकि, वर्जीनिया टेक में एरोसॉल एक्सपर्ट लिनसे मार का कहना है कि इस बारे में दावे के साथ कुछ नहीं कहा जा सकता कि छींकने या खांसी के साथ शरीर से बाहर निकलने वाली बड़ी ड्रॉपलेट्स की तुलना में इन छोटी ड्रॉपलेट्स या एयरोवसोल की वजह से कोरोनावायरस फैलने का खतरा कितना ज्यादा है? 

एयरोसोल क्या है और यह ड्रॉपलेट्स से अलग कैसे है? 
एयरोसोल ड्रॉपलेट्स होते हैं और ड्रॉपलेट्स एयरोसोल। आकार के सिवाय दोनों में कोई फर्क नहीं। वैज्ञानिक पांच माइक्रोन से कम आकार के ड्रॉपलेट्स को एयरोसोल कहते हैं। इसे आप ऐसे समझ सकते हैं कि रेड ब्लड सेल का एक सेल का डायमीटर पांच माइक्रोन होता है, जबकि इंसान के एक बाल की चौड़ाई 50 माइक्रोन होती है। 

शुरू से डब्ल्यूएचओ और अन्य एजेंसियां मान रही थीं कि कोरोनावायरस ड्रॉपलेट्स से फैलता है। छींक या खांसी के दौरान निकलने वाली बड़ी ड्रॉपलेट्स भारी होती हैं और वह तत्काल सतह (जमीन) पर आ जाती हैं। इसी वजह से सतह छूने से बचने की सलाह दी गई थी। साथ ही बार-बार हाथ धोने और सैनिटाइजर के इस्तेमाल की सलाह दी जा रही थी। सोशल डिस्टेंसिंग की सलाह का आधार भी यह था कि एक व्यक्ति के शरीर से बाहर निकलने वाली ड्रॉपलेट्स छह फीट के दायरे में दूरी तय करती हैं।
  
ड्रॉपलेट्स की तुलना में एयरोसोल खतरनाक क्यों?
विशेषज्ञों का दावा है कि कोरोना पीड़ित खांसी और छींक के दौरान एयरोसोल भी छोड़ रहे हैं। सबसे अहम बात यह है कि एयरोसोल उस समय भी शरीर से निकलते हैं, जब लोग सांस लेते हैं, बात करते हैं या गाना गाते हैं। वैज्ञानिकों को पता है कि सिम्पटम न होने पर भी लोग वायरस फैला सकते हैं। यानी खांसी या छींक के बिना भी। तब पक्के तौर पर एयरोसोल ही इसकी वजह होंगे। 

एयरोसोल आकार में छोटे होते हैं और उसमें ड्रॉपलेट्स की तुलना में कम मात्रा में वायरस हो सकता है। चूंकि ये हल्के होते हैं, इसलिए कई घंटों तक हवा में रह सकते हैं। खासकर ताजा हवा के अभाव में। भीड़भरी जगहों पर एक संक्रमित व्यक्ति इतना एयरोसोल छोड़ सकता है कि वह कई लोगों को बीमार कर दे। 

किसी वायरस के हवा में फैलने का मतलब क्या है?
एक वायरस हवा में फैलता है, तो इसका मतलब यह है कि वह हवा में भी एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक पहुंच सकता है। सभी वायरस को एक श्रेणी में नहीं रखा जा सकता। मसलन, एचआईवी शरीर के बाहर जीवित नहीं रह सकता, इसलिए वह एयरबोर्न नहीं है। मीसल्स एयरबोर्न है और खतरनाक भी। वह वायरस हवा में दो घंटे तक जिंदा रह सकता है। 

कोरोनावायरस के लिए परिभाषा जटिल है। विशेषज्ञों का कहना है कि यह वायरस ज्यादा दूरी तय नहीं कर सकता और बाहर ज्यादा देर तक जिंदा नहीं रह सकता। लेकिन प्रमाण बताते हैं कि यह बंद कमरे में दूरी तय कर सकता है और प्रयोगों में यह भी साबित हुआ कि हवा में यह तीन घंटों तक जिंदा रह सकता है।  

क्या फिजिकल डिस्टेंसिंग और हाथों की धुलाई की चिंता बंद कर देना चाहिए? 
शारीरिक दूरी बनाकर रखना बहुत जरूरी है। संक्रमित व्यक्ति के आप जितना करीब होंगे, उतना ही ज्यादा एयरोसोल और ड्रॉपलेट्स का एक्सपोजर होगा। हाथों की धुलाई अब भी अच्छा विचार है। नई बात यह है कि इतना काफी नहीं है। मास्क के इस्तेमाल पर भी फोकस करना होगा। 

जोखिम को कम करने के लिए मैं क्या कर सकता हूं? 

  • जितना हो सके, आउटडोर रहें। बहती हवा के साथ समुद्री तट पर वक्त बिताना किसी भी स्थिति में पब या इनडोर रेस्टोरेंट में वक्त बिताने से बेहतर है।
  • आउटडोर में भी मास्क पहनकर रखें और ज्यादा देर तक अन्य लोगों के संपर्क में न आएं। फिजिकल डिस्टेंसिंग का पालन करें। 
  • इनडोर में भी कोशिश करें कि दरवाजे-खिड़कियां खुली रहें। एयर-कंडीशनिंग सिस्टम अपग्रेड करें। सेटिंग्स को इस तरह करें कि बाहरी हवा का ज्यादा इस्तेमाल हो सकें और अंदर की हवा ही रीसर्कुलेट न होती रहे। 
  • सार्वजनिक इमारतों और कमर्शियल जगहों को एयर प्यूरीफायर्स के साथ-साथ अल्ट्रावायलेट लाइट्स पर खर्च करना होगा, जिससे वायरस को खत्म किया जा सके। 
  • हेल्थ वर्कर्स को एन95 मास्क पहनना ही चाहिए, जो ज्यादातर एयरोसोल को फिल्टर कर रोक देता है। इस समय उन्हें सिर्फ मेडिकल प्रोसीजर के दौरान ही ऐसा करने को कहा जाता है। 
  • कपड़े के मास्क भी जोखिम को काफी हद तक कम कर देते हैं। घरों में जब आप अपने परिवार के साथ हैं, या रूममेट्स के साथ हैं तो मास्क उतार सकते हैं। लेकिन यह सुनिश्चित करें कि वह भी सावधानी बरतें।  
  • यदि आप घर के बाहर अन्य लोगों के आने-जाने वाली इनडोर जगहों पर जा रहे हैं तो आपको मास्क जरूर पहनना चाहिए। 

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