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बबल के दौर से गुजर रहा है अमेरिकी शेयर बाजार, भारतीय इक्विटी बाजार महंगे स्तर पर, आगे गिरावट की आशंका

  • बैंकों के एनपीए की स्थिति मोरोटोरियम हटने के बाद पता चलेगी
  • ग्रामीण खपत पर आधारित शेयरों में आ सकती है तेजी

दैनिक भास्कर

Jul 07, 2020, 09:30 AM IST

मुंबई. (अजीत सिंह)-वैश्विक शेयर बाजारों में इस समय भले ही अच्छी खासी तेजी हो, लेकिन यह आनेवाले समय में यह तेजी निवेशकों को झटका दे सकती है। विश्लेषकों की मानें तो अमेरिकी इक्विटी बाजार में बबल का माहौल है। जबकि भारतीय इक्विटी बाजार इस समय वैश्विक स्तर पर महंगे बाजारों में है। ऐसे में आनेवाले समय में निवेशकों को सतर्क रहने की जरूरत है।

बाजारों में लिक्विडिटी काफी ज्यादा है

के.आर. चौकसी के एमडी देवेन चौकसी कहते हैं कि यह सही बात है कि अमेरिकी बाजार इस समय बबल में है। यह आगे भी बना रहेगा। लेकिन बबल कब फूटेगा, इसके बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता है। वे कहते हैं कि वहां पर चुनाव हैं, इसलिए दिसंबर तक बाजारों में सब कुछ ठीक-ठाक रहेगा। साथ ही लिक्डिविटी भी काफी है।

अमेरिकी चुनाव तक बाजार सही रहेंगे

आनंद राठी सिक्योरिटीज के नरेंद्र सोलंकी कहते हैं कि कई बाजारों में लिक्विडिटी काफी है। अमेरिकी बाजारों में भी यही हाल है। हालांकि वहां चुनाव है, इसलिए बाजार में गिरावट की संभावना नहीं है। वे कहते हैं कि भारतीय शेयर बाजार में भी काफी मजबूत लिक्विडिटी है। हालांकि यहां अभी शॉर्ट हो रहा है। इसलिए निवेशकों को यह नहीं देखना चाहिए कि बाजार तेजी में या गिरावट में है। इस समय उनको अच्छे शेयरों में अगर लाभ हुआ है तो बेच देना चाहिए। अगर कुछ अच्छे शेयर कम भाव पर हैं तो उनमें खरीदी करना चाहिए।

निफ्टी 22.6 के मल्टीपल पर ट्रेड कर रहा है

वे कहते हैं कि दिसंबर तिमाही तक अनिश्चितता बनी रहेगी। मोराटोरियम हटने के बाद बैंकिंग सेक्टर की स्थिति पता चलेगी। हालांकि इस दौरान ग्रामीण बाजार वाले शेयर चल सकते हैं। उनका कहना है कि भारतीय बाजार काफी महंगा है। निफ्टी इस सम 22.6 के मल्टीपल पर ट्रेड कर रहा है। कुछ विश्लेषकों के मुताबिक लॉर्ज कैप और टेक कंपनियों की बूम से अमेरिकी बाजार बुलबुले के फेज में है। वहां का इक्विटी बाजार एक बुलबुले की ओर बढ़ रहा है।

ब्याज दरों को शून्य से ऊपर ले जाना होगा मुश्किल

ब्याज दरों को शून्य पर लाना बहुत आसान है, लेकिन आप उन्हें वापस ऊपर कैसे लाते हैं, यह सोचने वाली बात होगी। इसके बारे में दुनिया अभी भी सोच रही है और यह एक चुनौती है। 2012 में अमेरिकी इक्विटी, मार्केट साइकल के शुरुआती दौर में थे। विश्लेषकों के मुताबिक निवेशक अब अमेरिकी फंड्स में निवेश करने में रुचि रख रहे हैं। इससे यह माना जा रहा है कि बाजार साइकल के टॉप के बिल्कुल करीब है।

अमेरिकी फेडरल रिजर्व अपने उदार रुख में कटौती और लिक्विडिटी की मात्रा कम करने की कोशिश करेगा। इसके बाद भारत सहित अन्य मार्केट्स में करेक्शन की उम्मीद की जा सकती है। बता दें कि भारत का निफ्टी मार्च से अब तक 40 प्रतिशत के करीब बढ़ चुका है। ऐसे में करेक्शन की संभावना बनी हुई है।

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