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‘कल की कक्षाओं’ में टेक्नोलॉजी महत्वपूर्ण होगी, भविष्य में ‘वन-टू-वन’ लर्निंग भी बढ़ेगी, जिससे छात्रों को उनके मुताबिक सर्वश्रेष्ठ मिल पाएगा

दैनिक भास्कर

Jul 02, 2020, 05:50 AM IST

कोरोना ने सभी लोगों की जिंदगी प्रभावित की है। अस्थायी रूप से स्कूलों के बंद होने से एजुकेशन के क्षेत्र में एक मोड़ आया है, जिसमें दुनियाभर में छात्रों के लिए ऑनलाइन लर्निंग ही एकमात्र व्यवहारिक विकल्प रह गया है। इसलिए अब तकनीक आधारित लर्निंग इकोसिस्टम बनाना और भी जरूरी होगा गया है।

ऑटोमोबाइल से लेकर और रिटेल तक, आज हर इंडस्ट्री में तकनीक आधारित इनोवेशन हो रहे हैं। हालांकि, एजुकेशन इंडस्ट्री में बहुत बदलाव नहीं हुए और हमने अपने बच्चों को वैसे ही पढ़ाना जारी रखा जैसा एक सदी पहले पढ़ाते थे। लर्निंग इकोसिस्टम अब भी अंकों और ग्रेड्स पर ध्यान देता है। 

अब तकनीक ने बच्चों के सीखने में अपनी जगह तो बना ली है, लेकिन इसे क्रांति का रूप लेने में अभी समय है। बिग डेटा एनालिटिक्स भी मदद करेंगे। टेक आधारित लर्निंग इकोसिस्टम बनाने और भविष्य के लिए तैयार रहने के लिए हमें इनकी जरूरत है:

गुणवत्तापूर्ण शिक्षण: हमारे मौजूदा शिक्षा तंत्र की समस्या ‘रटने वाली लर्निंग’ है। वीडियोज और एनिमेशन से लर्निंग यह बदल सकती है। बच्चे मुख्यत: देखकर सीखते हैं। वीडियो के माध्यम से सिखाना ज्यादा आसान और उत्साहजनक होता है। इससे ध्यान कंसेप्ट को समझने पर ज्यादा होता है, जिसमें वास्तविक जीवन के उदाहरणों से समझाया जाता है। 

बच्चों को एक्टिव लर्नर बनाना होगा: भारत दुनिया का सबसे बड़ा के-12 एजुकेशन सिस्टम है, फिर भी वैश्विक मूल्यांकनों में हम पिछड़े हैं। इसका मुख्य कारण है कि हमारा सिस्टम परीक्षाओं के डर से चलता है। बच्चों को अब भी सवाल हल करना सिखाया जा रहा है, पूछना नहीं। बच्चों को एंगेजिंग और गुणवत्तापूर्ण कंटेंट देने पर वे जीवनभर के लिए एक्टिव लर्नर बनेंगे। तकनीक पर आधारित लर्निंग से बच्चे खुद सीखने की पहल करते हैं और इससे वे अपनी गति से सीखने वाले लर्नर बनते हैं।

‘एक तरीका सभी के लिए सही’ की धारणा को तोड़ना: अच्छा एजुकेशन प्रोडक्ट छात्र की समस्याओं को पहचानेगा, साथ ही उसकी सीखने की गति के आधार पर खुद में बदलाव लाएगा। पर्सनलाइजेशन सुनिश्चित करता है कि छात्र खुद से सीखने की पहल करें। अध्ययन के प्रति ऐसा झुकाव बढ़ने से नतीजे भी बेहतर आते हैं। 

शिक्षकों को डिजिटली सशक्त करना: शिक्षकों की भूमिका जरूरी है और हमेशा रहेगी। शिक्षक आज शिक्षण कौशल को तकनीक आधारिक टूल्स से और बेहतर बना रहे हैं। इससे लर्निंग को एक नया आयाम मिलेगा। शिक्षकों द्वारा तकनीक के इस्तेमाल से वे कंसेप्ट्स को ज्यादा असरकारी, पर्सनलाइज्ड और एंगेजिंग तरीके से समझा सकते हैं। 

लर्निंग को मजेदार बनाना: एजुकेशन में गेमीफिकेशन (पढ़ाई से जुड़े गेम्स) लर्निंग अनुभव को मजेदार, इंटरेक्टिव और ज्यादा असरदार बनाता है। इससे छात्र अपने लक्ष्यों को पाने के लिए प्रेरित होते हैं, जिससे अंतत: लर्निंग के बेहतर नतीजे मिलते हैं। खासतौर पर छोटे छात्रों में देखा गया है कि गेम्स के इस्तेमाल से उनकी सीखने की इच्छा बढ़ती है।  

शिक्षा तक सबकी पहुंच के लिए तकनीक का इस्तेमाल: अब सर्वश्रेष्ठ पाठ्यक्रमों को कस्टमाइज कर देश के दूर-दराज के इलाकों के छात्रों तक पहुंचाया जा सकता है। अब भूगोल से परे जाकर इस क्षेत्र में भी काम करना कंपनियों का उद्देश्य होना चाहिए। हालांकि हमें डिजिटल असमानता अब भी एक चुनौती है। इसके लिए हमें प्रयास करना होगा कि स्मार्टफोन को ही प्रसार का मुख्य जरिया बनाएं, ताकि देश-दुनिया में कहीं भी छात्रों को उच्च क्वालिटी कंटेंट मिल सके। 

ये सभी तरीके इसलिए भी महत्वपूर्ण हैं क्योंकि आने वाला समय ऑटोमेशन और तकनीक के और एडवांस होने का होगा। ऐसे में छात्रों के लिए कंसेप्ट आधारित लर्निंग और जरूरी हो जाती है, ताकि वे भविष्य में अपने कौशलों को बेहतर बनाने के लिए हमेशा तैयार रहें। हमें बच्चों को कल की उन नौकरियों के लिए तैयार करना है, जो अभी किसी ने देखी भी नहीं हैं। इसका एक ही तरीका है कि उन्हें तकनीक की मदद से शिक्षा दी जाए। 

मौजूदा महामारी शिक्षा के क्षेत्र में बड़ा बदलाव लाई है और ऑनलाइन लर्निंग मुख्यधारा में आई है। दूसरी तरफ उम्मीद है कि अब शिक्षा का मिला-जुला मॉडल उभरेगा। बढ़ते स्मार्टफोन और इंटरनेट से प्रक्रिया तेज होगी। शिक्षक अब तकनीक के माध्यम से सिखाने का महत्व समझ रहे हैं, इसलिए कक्षाओं में भी इसका असर दिखेगा।

‘कल की कक्षाओं’ में टेक्नोलॉजी महत्वपूर्ण होगी। भविष्य में ‘वन-टू-वन’ लर्निंग भी बढ़ेगी, जिससे छात्रों को उनके मुताबिक सर्वश्रेष्ठ मिल पाएगा। इसलिए अब हमें भारतीय शिक्षा तंत्र की मुख्य समस्याओं को हल करने के लिए ज्यादा से ज्यादा आंत्रप्रेन्योर्स की जरूरत है, जो इसके लिए उत्पाद बनाएं। 
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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