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कुपोषण और कोरोना का कनेक्शन:कुपोषण का सामना कर चुके बच्चों व वयस्कों को कोविड हुआ तो मौत होने और हालत बिगड़ने का खतरा ज्यादा, जानिए ऐसा क्यों है

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6 घंटे पहले

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नई रिसर्च कहती है, कुपोषण कोरोना के रिस्क को बढ़ाता है। ऐसे बच्चे और वयस्क जो जीवन में कभी कुपोषण से परेशान हो चुके हैं उनमें संक्रमण हुआ तो मौत का खतरा ज्यादा है। इसमें संक्रमण गंभीर रूप ले सकता है और वेंटिलेटर की जरूरत पड़ सकती है। यह दावा कैलिफोर्निया चिल्ड्रेंस हॉस्पिटल ऑफ ऑरेंज कंट्री के शोधकर्ताओं ने रिसर्च में किया है।

कुपोषण और कोरोना के बीच कनेक्शन को समझिए
शोधकर्ताओं का कहना है, कुपोषण रोगों से लड़ने वाले इम्यून सिस्टम के काम करने की क्षमता पर बुरा असर डालता है। इसलिए जब वायरस शरीर को संक्रमित करता है तो हालत नाजुक हो सकती है। रिसर्च कहती है कि कुपोषण का असर शरीर पर लम्बे समय तक रहता है इसलिए इससे इम्यून सिस्टम भी नहीं बच पाता।

जीवन में एक बार भी कुपोषण से जूझने 5 साल से कम उम्र के बच्चों और 18 से 78 साल के वयस्क लोगों में कोरोना के गंभीर संक्रमण का खतरा ज्यादा है। शोधकर्ताओं के मुताबिक, बच्चों और बुजुर्गों में कुपोषण एक बड़ी समस्या है, जो कोरोना के रिस्क को बढ़ाने वाली है।

1 लाख से अधिक लोगों पर हुई रिसर्च
कुपोषण और कोरोना के कनेक्शन को समझने के लिए 8,604 बच्चों और 94,495 वयस्कों पर रिसर्च की गई। ये सभी कोरोना के संक्रमण के बाद अमेरिका के अस्पतालों में मार्च और जून में भर्ती किए गए थे। 2015 से 2019 के बीच आए कुपोषण के मरीजों से तुलना के बाद रिसर्च के नतीजे जारी किए गए हैं।

भारत के लिए यह रिसर्च अहम है क्योंकि…
इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूट्रीशन की 2019 में आई रिपोर्ट कहती है, राज्यों में 5 साल तक के बच्चों की मौत का सबसे बड़ा कारण कुपोषण होगा। यानी यहां कुपोषण के मामले कम नहीं है।

2017 में कुपोषण के कारण देश में पांच साल की उम्र वाले 10.4 लाख बच्चों ने दम तोड़ दिया। भूख को दूर करने में बाधा और प्रगति को समझाने वाली ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2020 की रिपोर्ट कहती है, भूख से निपटने में भारत की स्थिति अच्छी नहीं है। यह अलार्मिंग स्टेज में है।

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