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केरल में है भगवान वामन का 700 साल से भी ज्यादा पुराना मंदिर, यहीं से होती है ओणम पर्व की शुरुआत

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6 घंटे पहले

  • ओणम उत्सव में की जाती है भगवान वामन और पाताल के राजा बलि की पूजा, माना जाता है इस दौरान महाबली अपनी प्रजा से मिलने आते हैं पृथ्वी पर

29 अगस्त को वामन जयंती है। नर्मदापुरम के भागवत कथाकार पं. हर्षित कृष्ण बाजपेयी का कहना है कि हर साल भाद्रपद महीने के शुक्लपक्ष की द्वादशी तिथि पर वामन प्रकोटत्सव मनाया जाता है। भागवत कथा के आठवें स्कंध के आठरहवें अध्याय की कथा के अनुसार सतयुग में इस दिन भगवान विष्णु ने वामन रूप में अवतार लिया था। ये अवतार श्रीमद्भागवत कथा में बताए गए चौबीस अवतारों में पंद्रहवा था। केरल के कोच्चि में थ्रिक्काकरा में भगवान वामन का मंदिर है। वामन जयंती पर यहां खास पूजा की जाती है और इसके बाद ओणम पर्व की शुरुआत होती है। यहां के लोगों का मानना है कि ओणम उत्सव के दौरान राजा बलि यहां आते हैं।

केरल का भगवान वामन मंदिर
थ्रिक्काकरा मंदिर कब बना, वहां की मूर्ति कितने साल पुरानी है इस बारे में सटीक जानकारी तो मौजूद नहीं है लेकिन मंदिर से मिले शिलालेख 10 वीं से 13 वीं शताब्दी के हैं। हालांकि, मूल मंदिर और भी पुराना हो सकता है। कुछ विद्वानों का मानना है कि कि ये मंदिर चेर राजवंश के शासन काल का है। जिन्होंने 9 वीं से 12 वीं शताब्दी तक केरल पर शासन किया था। हालांकि वर्तमान में मौजूद वामनमूर्ति मंदिर की वर्तमान संरचना बहुत पुरानी नहीं है। सालों से ये मंदिर धीरे-धीरे टूट रहा था और 1900 के दशक तक यह बहुत हद तक टूट चुका था। इसलिए 20वीं सदी के शुरुआती सालों में मंदिर का जिर्णोद्धार करवाया गया है।

इस मंदिर से होती है ओणम की शुरुआत
10 दिवसीय ओणम पर्व की शुरुआत इस मंदिर में रंगीन झंडा फहरा कर की जाती है। ओणम इस मंदिर का सबसे महत्वपूर्ण त्योहार है। इसलिए यहां ओणसद्या यानी ओणम का भोज भी भव्य तरीके से आयोजित किया जाता है। सभी धर्मों के लोग समान रूप से इस कार्यक्रम में भाग लेते हैं। इससे पहले त्रावणकोर महाराजा के शासन में यहां 61 स्थानीय शासकों ने मिलकर ओणम त्योहार आयोजित किया था। मंदिर में अन्य उत्सव विशु, दिवाली, मकर संक्रांति, नवरात्रि और सरस्वती पूजा भी मनाए जाते हैं।

ये है वामन अवतार से जुड़ी कथा
सतयुग में असुर बलि ने देवताओं को हराकर स्वर्गलोक पर अधिकार कर लिया था। इसके बाद देवता भगवान विष्णु से मदद मांगने पहुंचे। तब विष्णुजी ने देवमाता अदिति के गर्भ से वामन रूप में अवतार लिया। इसके बाद एक दिन राजा बलि यज्ञ कर रहा था, तब वामनदेव बलि के पास गए और तीन पग धरती दान में मांगी।
शुक्राचार्य के मना करने के बाद भी राजा बलि ने वामनदेव को तीन पग धरती दान में देने का वचन दिया। इसके बाद वामनदेव ने विशाल रूप किया। एक पग में धरती और दूसरे पग में स्वर्ग नाप लिया। तीसरा पैर रखने के लिए कोई स्थान नहीं बचा तो बलि ने वामन देव को खुद के सिर पर पैर रखने को कहा।
वामनदेव ने जैसे ही बलि के सिर पर पैर रखा, वह पाताल लोक पहुंच गया। बलि की दानवीरता से खुश होकर भगवान ने उसे पाताल लोक का स्वामी बना दिया और सभी देवताओं को उनका स्वर्ग लौटा दिया।

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