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- IIT Alumni Council Developed A Model To Test 1 Crore Cocid 19 Tests In 30 Days
2 महीने पहले
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- आईआईटी एल्युमिनाई काउंसिल ने विकसित किया है सिस्टम
- सरकार की अनुमति के बाद तैयार होगा फाइनल डिजाइन
भारत में कोरोना संक्रमितों की संख्या 10 लाख के पार हो गई है। वहीं दुनिया भर में यह आंकड़ा 1.5 करोड़ को छूने वाला है।
भारत उन देशों में शामिल है। जहां पर्याप्त टेस्टिंग न होना एक बड़ी चुनौती है। दुनिया भर में काम कर रहे आईआईटीयंस ने इस चुनौती के समाधान के लिए एक नया टेस्टिंग मॉडल विकसित किया है। इस मॉडल के ट्रायल भी शुरू हो चुके हैं।
आईआईटी एल्युमिनाई काउंसिल ने फरवरी, 2020 में आईआईटी सी-19 टास्क फोर्स की शुरुआत की थी। इस टास्क फोर्स का उद्देश्य दुनिया भर के आईआईटीयंस की तकनीकी और आर्थिक शक्ति का इस्तेमाल कोविड-19 महामारी से निपटने के लिए करना है। इस सी-19 टास्क फोर्स ने ही टेस्टिंग का यह नया मॉडल डेवलप किया है। दो माह पहले सी-19 टास्क फोर्स मुंबई में कोविड-19 की टेस्टिंग बस की भी शुरुआत कर चुकी है। कैसे काम करेगा बल्क में टेस्टिंग करने का यह नया मॉडल, बता रहे हैं काउंसिल के प्रेसिडेंट रवि शर्मा।
एक महीने में 10 मिलियन टेस्टिंग
इस मॉडल से एक महीने के भीतर 10 मिलियन ( 1 करोड़) टेस्टिंग की क्षमता होने का दावा किया जा रहा है। कॉन्टेक्ट लैस टेस्टिंग के लिए रोबोटिक्स का इस्तेमाल भी किया जाएगा। पूरे टेस्टिंग मॉडल को मेगा लैब नाम दिया गया है।
21,000 करोड़ रुपए के फंड से होगा काम
इतने बड़े पैमाने पर टेस्टिंग करने के लिए 21,000 करोड़ रुपए के फंड की जरूरत होगी। काउंसिल ने इतना फंड जुटाने का रोड मैप भी तैयार किया है। तीन माध्यमों से यह फंड जुटाया जाएगा।
- 1 अप्रैल, 2020 का काउंसिल ने PanIIT नाम के सोशल फंड की शुरुआत की थी। PanIIT द्वारा इस मॉडल के लिए 3.000 करोड़ रुपए दिए जाएंगे।
- आईआईटी, मुंबई यूनिवर्सिटी और आईसीटी मुंबई ने मिलकर 3,000 करोड़ रुपए के अतिरिक्त फंड की व्यवस्था की है।
- प्रोजेक्ट पर काम करने वाली कंपनियों को पूंजी उपलब्ध कराने के लिए 15,000 करोड़ रुपए के अलग फंड की व्यवस्था की जाएगी। इसमें अटल इंक्यूबेशन मिशन की भी मदद ली जाएगी।
कहां होगी टेस्टिंग लैब ?
इतने बड़े पैमाने पर कोविड-19 टेस्ट का दावा सुनने पर पहला सवाल यही उठता है कि आखिर इसकी टेस्टिंग लैब होगी कहां? दरअसल इसके लिए किसी एक लैब का इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार नहीं किया गया है। बल्कि टेस्टिंग लैब कार, कैब और काउंसिल की कोविड-19 टेस्टिंग बस में होंगे। इन रिमोट लैब्स के जरिए सैम्पल इकट्ठे किए जाएंगे। आधार कार्ड और पासपोर्ट के जरिए लोगों की पहचान की जाएगी।
चार आईआईटी कैम्पसों में तैनात होंगी बैकएंड टीमें
टेस्टिंग करने के साथ ही डेटा को सुरक्षित रखना और मरीजों के स्वास्थ्य में आने वाले बदलावों का भी तैयार किया जाएगा। इसके लिए चार आईआईटी कैम्पसों में बैकएंड टीमें तैनात रहेंगी। टेस्टिंग टीम को टेक्निकल सपोर्ट देने का काम भी यही टीमें करेंगी।
कोई मरीज न छूटे, इसके लिए मुंबई की इमारतों में सीवेज भी टेस्ट किया जाएगा
टेस्टिंग के लिए आमतौर पर खांसी, गले में खराश और बुखार जैसे लक्षणों के आधार पर ही लोगों को चिन्हित किया जाता है। लेकिन, मेगालैब इसके लिए कई अन्य तरीकों पर भी काम करेगी। इनमें से एक है मुंबई की इमारतों के सीवेज की जांच करना। दरअसल, कई रिसर्च में यह सामने आ चुका है कि इंसान के मल से भी उसके कोरोना संक्रमित होने का पता लगाया जा सकता है।
कब लागू होगा ये मॉडल ?
जाहिर है इस मॉडल को लागू करने के लिए भारत सरकार से अनुमति मिलने की जरूरत है। काउंसिल ने मई में ही सरकार को इस मॉडल को लागू करने का प्रस्ताव भेजा है। सरकार की अनुमति के बाद फाइनल मॉडल तैयार होगा।
आईआईटीज ने कहा – काउंसिल की एक्टिविटीज में हमारी कोई भूमिका नहीं
आईआईटी एल्युमिनाई काउंसिल द्वारा मेगालैब प्लान की घोषणा के बाद देश भर की आईआईटीज ने एक ज्वॉइंट स्टेटमेंट जारी किया। जिसमें कहा गया कि काउंसिल के प्रोजेक्ट्स और इनिशियेट्वस में आईआईटी की कोई भूमिका नहीं है। साथ ही ये भी कहा कि काउंसिल को बिना आईआईटी की अनुमति के उनके लोगो इस्तेमाल करने की स्वतंत्रता नहीं है।
इसपर काउंसिल के प्रेसिडेंट रवि शर्मा कहते हैं – यह जाहिर सी बात है कि आईआईटी एल्युमिनाई काउंसिल की सभी एक्टिविटीज में आईआईटी की सीधे तौर पर कोई भूमिका नहीं होती है। काउंसिल एक अलग बॉडी है और आईआईटी एक अलग बॉडी है। आईआईटी के बयान को गलत अर्थों में पेश करके मामले को तूल देना सही नहीं है।
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