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एम्स की 12 हफ्तों की रिसर्च में मरीजों को सूर्य नमस्कार से मिली बड़ी राहत, 60% तक डिप्रेशन घटा

  • एम्स दिल्ली के सायकियाट्री और एनॉटमी डिपार्टमेंट ने मिलकर की रिसर्च, सूर्य नमस्कार, शांति मंत्र, मेडिटेशन और दवाओं का कम समय में बड़ा असर दिखा
  • शोधकर्ता डॉ. रीमा दादा के मुताबिक, दोनों पद्धतियों की मदद से आनुवांशिक डिप्रेशन भी दूर करना सम्भव, 60 फीसदी तक असर दिखता है
अंकित गुप्ता

अंकित गुप्ता

Jun 21, 2020, 05:00 AM IST

लॉकडाउन में सुसाइड, एंजाइटी और डिप्रेशन के बढ़ते मामले बताते हैं कि बॉडी के साथ मेंटल हेल्थ पर भी ध्यान देना उतना ही जरूरी है। डिप्रेशन पर एम्स की ताजा रिसर्च में योग और एलोपैथी के कॉम्बिनेशन से डिप्रेशन में तेजी से सुधार हुआ।

12 हफ्तों तक चली रिसर्च में सामने आया कि अगर आनुवांशिक डिप्रेशन से जूझ रहे है तो, दवा लेने के साथ योग करने से तेजी से राहत महसूस होती है।

आज विश्व योग दिवस है। इस मौके पर रिसर्च में शामिल एम्स दिल्ली के एनॉटमी डिपार्टमेंट की प्रोफेसर डॉ. रीमा दादा ने दैनिक भास्कर को बताया कैसे योग और कुछ दवाओं के कांबिनेशन से आनुवांशिक डिप्रेशन को भी दूर किया जा सकता है।

  • 3 पॉइंट : कैसे योग और दवा ने मिलकर घटाया डिप्रेशन

1. रिसर्च को एम्स दिल्ली के सायकियाट्री और एनॉटमी डिपार्टमेंट ने मिलकर किया। सायकियाट्री विभाग में जेनेटिक और दूसरे कारणों से बीमार 160 मरीजों को शोध के लिए चुना गया। इन्हें 80-80 के दो ग्रुप में बांटा गया।
2. इसमें एक ग्रुप को सिर्फ दवाई दी गई जबकि दूसरे को दवाई के साथ योग कराया गया। परिणाम जानने के लिए पहले और रिसर्च पूरी होने के बाद दोनों ग्रुप का ब्लड सैंपल लिया गया।
3. ब्लड सैंपल की रिपोर्ट चौंकाने वाली थी। सिर्फ दवाई लेने वाले मरीजों को 29 फीसदी फायदा दिखाई दिया, जबकि दवाई के साथ 12 सप्ताह तक योग करने वाले मरीजों को 60 फीसदी फायदा मिला।

  • सूर्य नमस्कार, शवासन, शांति मंत्र और ध्यान कराया गया

डॉ. रीमा दादा के मुताबिक, डिप्रेशन दूर करने के लिए सूर्य नमस्कार, शवासन, उत्तानपादासन, पवनमुक्तासन, वक्रासन कराने के साथ शांति मंत्र का जाप और ध्यान भी कराया गया। योग में साबित हुआ है कि ये आसन डिप्रेशन, तनाव और एंग्जायटी को दूर करते हैं। इन आसनों और दवाओं का असर एक से दूसरी पीढ़ी में आने वाले डिप्रेशन में भी देखा गया। जांच रिपोर्ट्स के अलावा मरीजों ने भी इस अनुभव की पुष्टि करते हुए कहा, हमारे ऊपर योग का असर हुआ है।

डॉ. रीमा दादा कहती हैं, मेंटल फिटनेस के योग को उसी तरह जीवन में शामिल करें जितना जरूरी भोजन और नींद लेना है। 

दवाओं और योगासनों का कई तरह से दिखा बदलाव
डॉ. रीमा दादा कहती हैं, हमारे दिमाग में ऑटोनॉमिक नर्वस सिस्टम के दो भाग होते हैं, सिम्पेथेटिक और पैरासिम्पेथेटिक। योग हमारे पैरासिम्पेथेटिक सिस्टम को एक्टिवेट करता है। ऐसा होने पर हमारा बढ़ा हुआ हार्ट रेट कम होता है, इंसान रिलैक्स महसूस करता है। न्यूरॉन्स बेहतर काम करते हैं और शांति मिलती है।

इस असर को और भी बेहतर तरीके से पता लगाने के लिए रिसर्च में शामिल मरीजों का जेनेटिक और बायोकेमिकल टेस्ट किए गए। इस दौरान एंटी-डिप्रेसेंट दवाओं को डोज भी दिया गया।

डिप्रेशन से लम्बे समय से जूझ रहे मरीज कम समय में ठीक होते हैं
दोनों के असर से ऐसे मरीज जो लम्बे समय से डिप्रेशन से जूझ रहे हैं उनकी दवाओं का डोज घटती है। इन्हें ठीक होने में कम समय लगता है। जिन्हें ऐसा बार-बार होता है उन मरीजों में डिप्रेशन की गंभीरता घटती है। डॉ. रीमा दादा कहती हैं, डिप्रेशन का इलाज कराने आने वाले मरीजों को यही सलाह दी जाती है कि रोज योग करें। जैसे रोजमर्रा के बाकी काम करते हैं, वैसे ही योग को भी जीवन का जरूरी हिस्सा बनाएं।

4 पॉइंट : आज डिप्रेशन-एंग्जायटी को हराना सबसे जरूरी क्यों?
देश का हाल :
द लैंसेट जर्नल की एक रिपोर्ट के मुताबिक, देश में 2017 तक 19.73 करोड़ लोग किसी न किसी मानसिक बीमारी से जूझ रहे थे। ये आंकड़ा कुल आबादी का कुल आबादी का 15% है। यानी, हर 7 में से 1 भारतीय बीमार है। इनमें से भी 4.57 करोड़ डिप्रेशन और 4.49 करोड़ एंजाइटी का शिकार हैं।

दुनिया की तस्वीर : डब्ल्यूएचओ के मुताबिक, दुनियाभर में 26 करोड़ से ज्यादा लोग डिप्रेशन से जूझ रहे हैं। 15 से 29 साल की उम्र के लोगों में आत्महत्या की दूसरी सबसे बड़ी वजह डिप्रेशन ही है।

2013 से लेकर 2018 के बीच 52 हजार 526 लोगों ने मानसिक बीमारी से तंग आकर आत्महत्या कर ली।

मेंटल हेल्थ के मामले में हम रूस को पीछे छोड़ देंगे
डब्ल्यूएचओ के मुताबिक भारत में हर साल एक लाख की आबादी पर 16 लोग मानसिक बीमारी से परेशान होकर आत्महत्या कर लेते हैं। इस मामले में भारत, रूस के बाद दूसरे नंबर पर है। रूस में हर 1 लाख लोगों में से 26 लोग सुसाइड करते हैं।

नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो यानी एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक, 2013 से लेकर 2018 के बीच 52 हजार 526 लोगों ने मानसिक बीमारी से तंग आकर आत्महत्या कर ली।

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