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106 साल पहले चीन ने शिमला समिट में मैकमोहन रेखा को बॉर्डर मानने से इनकार कर दिया था, उलटा तिब्बत पर अपना दावा ठाेक दिया

  • 1967 में भारत नाथू ला में चीन के दुर्ग को खत्म करने और उन्हें उनके इलाके तक खदेड़ने में कामयाब रहा
  • 1987 में भी बनी थी युद्ध की स्थिति, तब भारत के ट्रेनिंग ऑपरेशन से अचानक चौंक गए थे चीनी अधिकारी

दैनिक भास्कर

Jun 18, 2020, 02:04 PM IST

रसेल गोल्डमैन. हिमालय की गहरी घाटी में चीनी सेना के साथ झड़प में 20 भारतीय जवान शहीद हो गए। इसके बाद दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ गया है। हालांकि इस हिंसक झड़प की स्क्रिप्ट एक दिन में तैयार नहीं हुई, इसे बनने में कई दशक लगे हैं। दोनों न्यूक्लियर ताकतों की सत्ता ऐसे नेताओं के हाथ में है जो संशय में पड़े इलाकों में अपनी ताकत दिखाना चाहते हैं। ऐसे में दूसरे राष्ट्रों ने इन्हें चेतावनी जारी की है और शांत रहने के लिए भी कहा है।

आइए देखते हैं कैसे दोनों राष्ट्र इस मोड़ पर पहुंचे-

1914- एक बॉर्डर जिसे चीन ने कभी नहीं माना

मंगलवार को लद्दाख स्थित गलवान घाटी की सैटेलाइट से ली गई तस्वीर। यहीं पर दोनों देशों की सेनाओं के बीच झड़प हुई।

यह विवाद 1914 में शुरू हुआ। जब ब्रिटेन, रिपब्लिक ऑफ चाइना और तिब्बत के प्रतिनिधि शिमला में इकट्ठे हुए। ये प्रतिनिधि यहां तिब्बत के दर्जे और ब्रिटिश इंडिया-चीन की सीमा को लेकर संधि करने के लिए शामिल हुए थे। 

तिब्बत की स्वायत्ता और अधिकारों की शर्तों में रुकावट डाल रहे चीन ने डील पर दस्तखत तो नहीं किए, लेकिन ब्रिटेन और तिब्बत ने एक ट्रीटी पर साइन जरूर किए, जिसे मैकमोहन लाइन कहा गया। इस लाइन का नाम बॉर्डर की पेशकश करने वाले ब्रिटिश अधिकारी हैन्री मैकमोहन के नाम पर रखा गया था। यह लाइन भारत और चीन की आधिकारिक सीमा है। भारत हिमालय स्थित 550 मील लंबी बॉर्डर को मानता है, लेकिन कभी भी चीन ने इसे स्वीकार नहीं किया।

1962- युद्ध का साल

बुधवार को भारतीय सिक्युरिटी फोर्सेज के सैनिक लेह की ओर जाने वाले हाई-वे की सुरक्षा करते हुए

1947 में भारत आजाद हुआ, दो साल बाद चीनी क्रांतिकारी माओ जेदॉन्ग ने कम्युनिस्ट क्रांति का अंत किया और पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चीन की स्थापना की। इसके तुरंत बाद ही दोनों देशों के बीच सीमा विवाद शुरू हो गया और 1950 में तनाव बढ़ गया। चीन ने जोर दिया कि तिब्बत कभी भी स्वतंत्र नहीं था, इसलिए वो अंतरराष्ट्रीय बॉर्डर बनाने के लिए साइन नहीं कर सकता है। 

चीन ने शियाजियांग स्थित अपने पश्चिमी फ्रंटियर के लिए जरूरी सड़कों पर नियंत्रण की मांग की। जबकि भारत और उसके दूसरे पश्चिमी साथियों ने चीनी घुसपैठ को इलाके में माओवाद और कम्युनिज्म फैलाने के तौर पर देखा। 1962 में युद्ध की शुरुआत हो गई। 

चीनी सेना की टुकड़ियों ने मैकमोहन लाइन को पारकर भारतीय इलाके में जगह बना ली और पहाड़ी रास्ते और कस्बों को कब्जे में ले लिया। एक महीने तक चले इस युद्ध में एक हजार से ज्यादा भारतीय सैनिकों की जान गई और 3 हजार सैनिक बंदी बना लिए गए। जबकि चीन की सेना में मौतों का आंकड़ा 800 से कम रहा। नवंबर तक चीन के प्रीमियर झाउ एनलाई ने सीजफायर की घोषणा की और चीनी टुकड़ियों के कब्जे वाली सीमा को छोड़ दिया। यह कथित एक्चुअल लाइन ऑफ कंट्रोल थी।

1967- जब भारत ने चीन को खदेड़ा

1967 में स्वायत्त तिब्बत के पास स्थित नाथू ला माउंटेन को गार्ड करते चीनी सैनिक।

1967 में सिक्किम को जोड़ने वाले दो पहाड़ी इलाके नाथू ला और चो ला में फिर से तनाव बढ़ने लगा। सिक्किम भारतीय राज्य है और स्वायत्त तिब्बत को चीन अपना बताता आ रहा है। विवाद तब शुरू हुआ, जब भारत के सैनिक उस जगह पर कंटीले तार बिछाने लगे, जिसे वे सीमा समझते थे। यह विवाद तब और बढ़ गया जब चीन की सेना ने भारतीय सैनिकों पर फायरिंग शुरू कर दी। इस झड़प में 150 से ज्यादा भारतीय और करीब 340 चीनी सैनिक मारे गए। 1967 के सितंबर और अक्टूबर में हुई इस लड़ाई को चीन और भारत के बीच दूसरा युद्ध माना गया। 

भारत नाथू ला में चीन के दुर्ग को खत्म करने और चो ला के पास उनके इलाके तक खदेड़ने में कामयाब रहा। इन बदलावों के बाद यह मान लिया गया कि लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल को लेकर भारत और चीन के अलग-अलग विचार हैं। 

1987- दोनों देशों में संघर्ष टल गया

जून 1987 में तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र स्थित गोंगार एयरपोर्ट पर खड़े चीन के फाइटर जेट विमान।

1987 में भारतीय सेना यह देखने के लिए ट्रेनिंग ऑपरेशन चला रही थी कि टुकड़ी को कितनी तेजी से बॉर्डर पर भेजा जा सकता है। इतनी बड़ी संख्या में सेना के लाव लश्कर को देखकर चीनी कमांडर चौंक गए और उन्होंने अपनी मानने वाली लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल की ओर बढ़कर जवाब दिया। बाद में युद्ध की स्थिति को देखते हुए भारत और चीन अलग हो गए और संकट टल गया।

2013- दोनों देशों ने दौलत बेग ओल्डी में कैम्प बना लिए

2013 में लद्दाख के दौलत बेग ओल्डी में बैनर लेकर खड़ी चीनी सेना की टुकड़ी। बैनर पर लिखा था कि आप बॉर्डर पार कर चुके हैं, कृपया वापस लौट जाएं।

दोनों ओर कुत्ता-बिल्ली की रणनीति चल रही थी। दशकों बाद चीनी प्लाटून ने अप्रैल 2013 में दौलत बेग ओल्डी के नजदीक कैंप बना लिए। इसके जवाब में भारत ने भी एक हजार फीट से भी कम दूरी पर अपने तंबू गाड़ दिए। धीरे-धीरे कैंप दुर्ग में बदल गए और यहां बड़ी संख्या में सैनिक और हथियार आ गए। मई में दोनों देश कैंप हटाने के लिए राजी हो गए, लेकिन लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल को लेकर विवाद बना रहा।

 2017- डोकलाम विवाद

2017 में भूटान के हा स्थित भारतीय सेना के बेस की फोटो। यह जगह चीन के साथ विवादित सीमा के नजदीक है।

जून 2017 में चीन ने हिमालय स्थित डोकलाम में रोड का निर्माण शुरू कर दिया। यह इलाका भारत का नहीं, बल्कि उसके साथी भूटान के नियंत्रण में है। यह पठार भूटान और चीन की बॉर्डर पर है, लेकिन भारत इसे बफर जोन की तरह देखता है, जो चीन के साथ दूसरे विवादित क्षेत्रों के नजदीक है। 

हथियार और बुल्डोजर्स के साथ भारतीय सेना रोड तोड़ने के इरादे से पहुंची और चीनी सेना ने इसका विरोध किया। फिर विवाद हुआ और सैनिकों ने एक-दूसरे पर पत्थर फेंके। इस हमले में दोनों तरह काफी चोटें आईं। अगस्त में दोनों देश उस इलाके से हटने के लिए तैयार हो गए और चीन ने निर्माण कार्य बंद कर दिया।

2020- फिर विवाद शुरू हुआ

चीनी सेना के साथ हुई झड़प में शहीद हुए अपने साथी के शव को लेह स्थित सोनम नोर्बू मेमोरियल हॉस्पिटल के पोसमार्टम हाउस ले जाते भारतीय सैनिक। 

मई में दोनों देशों की सेनाओं के बीच कई बार हाथापाई हुई। पैंगॉन्ग झील पर हुए एक झगड़े में कई भारतीय सैनिक गंभीर रूप से घायल हुए थे। यहां तक की उन्हें हेलीकॉप्टर से ले जाना पड़ा था। भारतीय विश्लेषकों के अनुसार चीनी टुकड़ियां भी गंभीर रूप से घायल हुईं थीं।

भारतीय एक्सपर्ट्स के मुताबिक, चीन ने डंप ट्रक्स, बख्तरबंद वाहन,और टुकड़ियों के जरिए खुद को मजबूत किया। अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प ने ट्विटर पर मध्यस्थता करने की पेशकश की, जिसे उन्होंने “ए रेजिंग बॉर्डर डिस्प्यूट” नाम दिया। यह साफ था कि 2017 के बाद दोनों देशों के बीच हुए विवाद की सबसे गंभीर कड़ी थी। जिसके गंभीर नतीजे अब सामने आए हैं।

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