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बैंक एफडी या सेविंग अकाउंट पर मिलने वाले ब्याज पर टैक्स छूट के लिए 30 जून तक भरें 15G या 15H फॉर्म, ऑनलाइन भर सकते हैं फार्म

दैनिक भास्कर

Jun 04, 2020, 12:15 PM IST

नई दिल्ली. स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI) ने हाल ही में इंटरनेट बैंकिंग के जरिए फॉर्म 15G और फॉर्म 15H को ऑनलाइन जमा करने की अनुमति दी है। केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (CBDT) ने फॉर्म 15G / फॉर्म 15H की वैधता को 30 जून 2020 तक के लिए बढ़ा दिया है। 30 जून तक यह फार्म जमा नहीं करने पर एफडी या सेविंग अकाउंट पर मिलने वाले ब्याज पर टीडीएस के रूप में टैक्स कट सकता है। 

ऐसे भर सकते हैं ऑनलाइन फॉर्म

  • सबसे पहले एसबीआई खाताधारकों को ऑनलाइन अपने खातों में लॉग इन करना होगा। 
  • इसके बाद ई-सेवाओं के तहत फॉर्म जमा किया जा सकता है। 
  • लॉग इन करने के बाद ‘E-services’ के ’15G / H’ ऑप्शन को चुनना होगा।
  • इसके बाद फॉर्म 15G या फॉर्म 15H को चुनना होगा। 
  • Customer Information File (CIF) Number पर क्लिक कर ‘Submit’ पर क्लिक कर दें। 
  • इतना करते ही आपके सामने एक नया इंटरफेस खुलकर आएगा जहां अन्य जानकारियां मांगी जाएंगी।
  • इन जानकारियों को भरने के बाद इसे सबमिट कर दें।
  • इसके बाद एक नया टैब खुल जाएगा जहां आपको एक बार फिर से जानकारियां भरकर ‘कन्फर्म’ पर क्लिक करें।
  • आपके पंजीकृत मोबाइल नंबर पर ओटीपी भेजा जाएगा। ओटीपी दर्ज करें और ‘कन्फर्म’ पर क्लिक करें।
  • एक बार फॉर्म सफलतापूर्वक जमा हो जाने के बाद, UIN नंबर जेनरेट होगा। हाइपरलिंक कंप्यूटर स्क्रीन पर फॉर्म की एक प्रति डाउनलोड करने के लिए दिखाई देगी।

क्यों जरूरी है फॉर्म 15G या फॉर्म 15H फार्म?
फॉर्म 15G या फॉर्म 15H खुद से की गई घोषणा वाला फॉर्म हैं। इसमें आप यह बताते हैं कि आपकी आय टैक्स की सीमा से बाहर है। जो इस फॉर्म को भरता है उसे टैक्स की सीमा से बाहर रखा जाएगा। इसे नहीं भरने पर मान लिया जाता है कि आप टैक्स के दायरे में हैं और फिर ब्याज से होने वाली आय पर जरूरी टीडीएस काट लिया जाएगा। फॉर्म 15G या फॉर्म 15H एक साल के लिए होता है। हालांकि फॉर्म नहीं भरने पर जो टीडीएस काटा जाएगा उसे वापस भी पाया जा सकता है। 

क्या होता है टीडीएस?
अगर किसी की कोई आय होती है तो उस आय से टैक्स काटकर अगर व्यक्ति को बाकी रकम दी जाए तो टैक्स के रूप में काटी गई रकम को टीडीएस कहते हैं। सरकार टीडीएस के जरिए
टैक्स जुटाती है। यह अलग-अलग तरह के आय स्रोतों पर काटा जाता है जैसे सैलरी, किसी निवेश पर मिले ब्याज या कमीशन आदि पर। कोई भी संस्थान (जो टीडीएस के दायरे में आता है) जो
भुगतान कर रहा है, वह एक निश्चित रकम टीडीएस के रूप में काटता है।

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