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अमेरिका से अच्छी खबर, लेकिन ऑक्सफोर्ड का वैक्सीन संकट में, ट्रायल में बंदर फ्लू से बचे लेकिन कोरोना संक्रमित हुए

  • ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में ChAdOx1 वैक्सीन का जानवरों और इंसानों पर ट्रायल चल रहा है
  • रीसस मकाऊ बंदरों पर वैक्सीन के अच्छे नतीजे मिले थे, वैक्सीन फ्लू को रोकने में कामयाब रहा

दैनिक भास्कर

May 19, 2020, 06:47 PM IST

दुनिया में कोरोना से लड़ने के लिए एक साथ 8 वैक्सीन पर तेजी से काम चल रहा है। सोमवार को जहां अमेरिका से मॉर्डना कम्पनी के वैक्सीन के इंसानी ट्रायल में सफल होने की खबर है, वहीं ब्रिटेन में ऑक्सफोर्ड वैक्सीन पर संकट आ गया है। सबसे ज्यादा चर्चा में रहा ये वैक्सीन बंदरों पर हुए ट्रायल में बहुत अच्छे नतीजे नहीं दे सका है। 

इस वैक्सीन तैयार करने में चिंपांजी से मिले एडिनोवायरस ChAdOx1 का इस्तेमाल किया जा रहा है। पहले चरण में रीसस मकाऊ बंदरों पर अच्छे नतीजे मिलने के बाद इसका ह्यूमन ट्रायल भी शुरू हो गया है, लेकिन इस बीच बंदरों के कोरोना पॉजिटिव मिलने की खबर ने चिंता बढ़ा दी है। 

फ्लू रोकने में सफल, कोरोना में संदेह

चिंता की बात यह है कि कम क्षमता के जिस एडिनोवायरस से यह वैक्सीन बनाया जा रहा है वह साधारण फ्लू को रोकने में तो सफल है लेकिन कोरोनावायरस से संक्रमण में उतना प्रभावी नजर नहीं आ रहा।
इस वैक्सीन को लेकर शुरू से संदेह जता रहे हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर के डॉ. विलयम हेसलटाइन ने इस बारे में बताया कि जिन छह रीसस बंदरों पर इस वैक्सीन का ट्रायल किया गया उनकी नाक में उतनी ही मात्रा में वायरस पाया गया जितना कि तीन अन्य नॉन वैक्सीनेटेड (जिन्हें टीका नहीं लगाया गया था) बंदरों की नाक में था।

महीनेभर में स्पष्ट नतीजे आएंगे

वैक्सीन पर काम कर रहे यूनिवर्सिटी के जेनर इंस्टीट्यूट का कहना है कि सितंबर तक वैक्सीन तैयार कर ली जाएगी और यह एक सुरक्षित दवा साबित होगी। वैक्सीन के दावे के पीछे वही तकनीक है, जिसका इस्तेमाल वैज्ञानिकों ने मर्स और इबोला जैसी महामारी में किया था।

बंदरों पर शोध के नतीजे शुरुआती 

13 मई तक करीब 1100 लोगों को यह वैक्सीन दिया जा चुका है और इसके साथ  लगाया जा चुका है। शोधकर्ताओं को उम्मीद है कि अगले एक महीने में स्पष्ट नतीजे सामने आएंगे। लंदन स्कूल ऑफ हाइजीन एंड ट्रॉपिकल मेडिसिन के डॉ. स्टीफन इवांस ने कहा कि बंदरों पर शोध के बाद जो नतीजे आए हैं, वह  शुरुआती हैं। लेकिन, आगे यह देखना भी महत्वपूर्ण होगा कि वायरस कितना म्यूटेट होता है और महामारी क्या रूप लेती है। 

ब्रिटिश पीएम भी उलझन में

11 मई को ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ऑक्सफोर्ड कोरोना वैक्सीन को लेकर उलझन में नजर आए थे। उन्होंने कहा था कि, मैं ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में वैक्सीन तैयार करने बारे में कुछ उत्साहित करने वाली बातें सुन रहा हूं, लेकिन इसकी किसी तरह की गारंटी नहीं है। मुझे यकीन है कि मैं सही कह रहा हूं कि 18 साल के बाद भी हमारे पास सार्स वायरस का वैक्सीन नहीं है। जॉनसन ने कहा मैं आपसे इतना ही कह सकता हूं कि ब्रिटेन वैक्सीन बनाने की अंतरराष्ट्रीय गतिविधियों में अग्रिम पंक्ति में है। 

8 अलग-अलग वैक्सिन पर काम चल रहा

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने पिछले दिनों स्पष्ट करते हुए कहा था कि कोरोनो के लिए 8 वैक्सिन पर काम चल रहा है।  संगठन के प्रमुख डॉ. टेड्रॉस गेब्रयेसस कहा है कि दो महीने पहले तक ऐसा सोचा जा रहा था वैक्सीन बनाने में 1 साल से 18 महीने लगेंगे। हालांकि, अब इस काम में तेजी लाया जा रहा है। एक हफ्ते पहले दुनिया के 40 देशों के नेताओं ने इसके लिए 8 बिलियन डॉलर(करीब 48 हजार करोड़ रु.) की मदद की है, लेकिन यह इस काम के लिए कम पड़ेगा। 

अमेरिका में मॉर्डना का वैक्सीन ट्रैक पर

अमेरिका के बोस्टन स्थित बायोटेक कंपनी मॉर्डना ने जिस mRNA वैक्सीन का ह्यूमन ट्रायल किया है उसके अच्छे नतीजें मिले हैं। कंपनी ने साेमवार को बताया कि इस वैक्सीन से शरीर में उम्मीद से अच्छी इम्यूनिटी बढ़ी है और साइड इफेक्ट्स भी मामूली हैं। 
मॉर्डना ने बताया कि वैक्सीन पाने वाले कैंडिडेट्स का इम्यून सिस्टम वायरस से लड़ने में कोविड-19 से रिकवर हो चुके मरीजों के बराबर या उनसे ज्यादा ताकतवर पाया गया। मॉर्डना के सीईओ स्टीफन बैंसेल ने कहा कि वे इससे बेहतर डेटा की उम्मीद नहीं कर सकते थे। 

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