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आईसीसी का सुझाव- अंतरराष्ट्रीय मैचों में लोकल अंपायरों और मैच रैफरी का इस्तेमाल हो, भारत से कोई एलीट पैनल में नहीं

  • आईसीसी टेस्ट मैचों में एलीट पैनल से ही अंपायर चुनती है
  • भारत का चार में से एक भी अंपायर इस श्रेणी में शामिल नहीं
  • नितिन मेनन को ही टेस्ट का अनुभव, उन्होंने 3 मैच में अंपायरिंग की

दैनिक भास्कर

May 19, 2020, 09:07 PM IST

इंटरनेशनल क्रिकेट काउंसिल(आईसीसी) की कमेटी ने टेस्ट, वनडे और टी-20 मैचों में लोकल अंपायरों की नियुक्ति की सिफारिश की है। क्योंकि कोरोना की वजह से यात्रा प्रतिबंध लगे हैं। ऐसे में कुछ और महीनों तक विदेशी अंपायरों या मैच रैफरी की आवाजाही मुश्किल है।

आईसीसी के इस फैसले बाद भारत के सामने नई मुश्किल खड़ी हो गई है। भारतीय अंपायरों के पास टेस्ट मैचों में अंपायरिंग करने के अनुभव की भारी कमी है। पिछले साल आईसीसी के एलीट पैनल से रवि कुमार के बाहर होने के बाद से ही भारत का कोई भी अंतरराष्ट्रीय अंपायर इस श्रेणी में नहीं है। आईसीसी टेस्ट मैच के लिए इसी श्रेणी से अंपायरों और मैच रैफरी चुनता है। 

भारत के चार अंतरराष्ट्रीय अंपायरों में से एक को टेस्ट का अनुभव

भारत के चार अंपायर अंतरराष्ट्रीय पैनल में शामिल हैं। लेकिन उसमें से भी केवल एक नितिन मेनन (3 टेस्ट, 24 वनडे, 16 टी-20 ) के पास ही टेस्ट मैच में अंपायरिंग का अनुभव है। अन्य तीन अंपायरों सी शमशुद्दीन (43 एकदिवसीय, 22 टी-20), अनिल चौधरी (20 वनडे, 20 टी-20) और वीरेंद्र शर्मा (2 वनडे और 1 टी-20) के पास टेस्ट मैच में अंपायरिंग का अनुभव नहीं है। हालांकि, जनवरी में इंग्लैंड के भारत दौरे के दौरान 5 दिनों के मैच के लिए इन्हें मौका दिया जा सकता है। 

आईसीसी ने एक बयान में कहा- जिस देश में कोई एलीट पैनल मैच अधिकारी नहीं हैं, वहां सर्वश्रेष्ठ स्थानीय इंटरनेशनल पैनल मैच अधिकारी नियुक्त किए जाएंगे।

हर फॉर्मेट में अंपायरिंग का अलग दबाव: हरिहरन

पूर्व अंतरराष्ट्रीय अंपायर हरिहरन का कहना है कि यह चुनौती के साथ ही बड़ा अवसर भी है। हर फॉर्मेट में अंपायरिंग करने का अलग दबाव होता है। टेस्ट में बल्लेबाज के करीब खड़े फील्डर्स दबाव बनाते हैं, जबकि वनडे में स्टेडियम में बैठे दर्शकों का शोर अंपायरिंग को मुश्किल बनाता है। हरिहरन को 34 वनडे और दो टेस्ट में अंपायरिंग करने का अनुभव है।

न्यूट्रल अंपायर निष्पक्ष फैसले लेने में ज्यादा सक्षम

उन्होंने आगे कहा कि सिर्फ अंपायरिंग के फैसले ही नहीं, आक्रामक अपील और खराब रोशनी जैसी वजह भी अक्सर सामने आती हैं। न्यूट्रल अंपायर (विदेशी) स्थानीय की तुलना में निष्पक्ष निर्णय लेने में ज्यादा सक्षम होते हैं।आईसीसी क्रिकेट समिति की सिफारिश के बाद भारत में होने वाले टेस्ट मैचों में  मेनन, शमशुद्दीन, चौधरी और शर्मा को मौका दिया जा सकता है।

घरेलू अंपायर के सामने बड़ी चुनौती

एक मौजूदा अंतरराष्ट्रीय अंपायर ने नाम न छापने की शर्त पर एजेंसी से कहा कि केवल घरेलू मैचों में अंपायरिंग करना काफी कठिन काम है। उन्होंने कहा कि अगर आप होम अंपायर हैं और होम टीम खराब रोशनी के लिए कह रही है, तो न्यूट्रल अंपायर की तुलना में उनकी मांग को मानने की ज्यादा संभावना बनी रहती है। इसी तरह यदि आप गेंद के साथ कुछ भी अवैध होते देखते हैं तो घरेलू टीम के पक्ष में निर्णय देने की ज्यादा संभावना होती है।

अंपायर घरेलू टीम के मैच में अंपायरिंग से कतराते हैं

उन्होंने एक उदाहरण देते हुए कहा कि पिछले साल तीसरे एशेज टेस्ट में वेस्ट इंडीज के अंपायर जोएल विल्सन नेनाथन लियोन के गेंद पर बेन स्टोक्स को नॉट आउट दिया था। रीप्ले से पता चला कि गेंद स्टंप्स पर जा रही थी। ऑस्ट्रेलिया के पास उस समय डीआरएस नहीं था, अन्यथा वे लीड्स में मैच जीत लेते। यह काफी महत्वपूर्ण मैच था। ऐसे में विल्सन अगर इंग्लैंड के होते तो कितना बड़ा विवाद बन जाता और उन पर पक्षपातपूर्ण निर्णय लेने का आरोप लगता।

उन्होंने कहा- मैं आपको अपने अनुभव से बता सकता हूं, ज्यादातर अंपायर होम गेम्स में अंपायरिंग को पसंद नहीं करते हैं, क्योंकि इसमें अतिरिक्त दबाव होता है।

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