April 29, 2024 : 6:10 AM
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दिल्ली सीमा पर साल भर के आंदोलन के बाद घर लौटे किसान, हुआ जोरदार स्वागत

नयी दिल्ली/चंडीगढ़। दिल्ली-हरियाणा सीमा पर एक साल से अधिक समय से प्रदर्शन कर रहे किसान अपने टेंट और अन्य साजो-सामान को समेटकर शनिवार को ट्रैक्टर ट्रॉलियों और अन्य वाहनों में सवार होकर नाचते- गाते अपने घरों की ओर रवाना हुए। पड़ोसी राज्यों में पहुंचने पर उनका माला पहनाकर तथा मिठाइयां खिलाकर जोरदार स्वागत किया गया। किसानों के घर लौटने के क्रम में शनिवार को फूलों से लदी ट्रैक्टर ट्रॉलियों के काफिले विजय गीत बजाते हुए सिंघू धरना स्थल से बाहर निकले। इस दौरान किसानों की भावनाएं हिलोरें मार रही थीं। सिंघू बॉर्डर छोड़ने से पहले, कुछ किसानों ने हवन किया, तो कुछ ने अरदास तथा ईश्वर को धन्यवाद करके पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश स्थित अपने-अपने घरों की ओर रवाना हुए। अपराह्न चार बजे तक सिंघू बॉर्डर पर एक चौथाई से भी कम आंदोलनकारी किसान बचे थे।इसी प्रकार गाजीपुर सीमा पर भी टेंट एवं अन्य संरचनाओं को उखाड़ने का सिलसिला पूरे जोरशोर से जारी था। हालांकि प्रदर्शनकारी किसानों ने कहा कि यह प्रदर्शन स्थल 15 दिसम्बर तक ही पूरी तरह खाली हो पाएगा। भूपेन्द्र सिंह (40) ने कहा, ‘‘मेरे बच्चे अत्यधिक उत्साहित हैं। हम अंतत: एक साल बाद एक-दूसरे से मिल पाएंगे। मैं बहुत खुश हूं। फोन पर वे अक्सर पूछते थे, पापा घर कब आओगे?’ लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि मैं किसानों की जीत के बाद घर लौट रहा हूं, जो मेरे लिए गौरव का क्षण है।’’ उत्तर प्रदेश के बिजनौर जिला निवासी भूपेन्द्र सिंह अपनी ट्रैक्टर ट्रॉली से अपने अन्य गांववालों के साथ घर लौट रहे थे।दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने किसानों के सफल प्रयास की प्रशंसा करते हुए ट्वीट किया, ‘‘धैर्य, साहस और एकता का कोई विकल्प नहीं है। परस्पर भाईचारे और एकता से ही देश आगे बढ़ सकता है। किसान भाइयों की एकता ही सबसे बड़ी ताकत थी। ऐतिहासिक विजय के बाद आज से अपने घर लौट रहे किसान बंधुओं की मजबूत इच्छाशक्ति और उत्साह को मेरा सलाम।’’ एक साल से राजमार्ग बंद होने के कारण परिशानियों का सामना कर रहे अनगिनत स्थानीय निवासियों और दुकानदारों ने राहत की सांस ली है। कबाड़ियों के लिए आज का दिन महत्वपूर्ण रहा, क्योंकि किसानों के प्रदर्शन स्थल छोड़ने के बाद वहां उन्हें बांस-बल्ले, तिरपाल, प्लास्टिक और लड़की के कुंदे उन्हें वहां से मिले। हालांकि, किसानों के आंदोलन समाप्त होने से कुछ गरीब बच्चों के मन में रोजी-रोटी की चिंता सताने लगी है। ये बच्चे किसानों के लंगर में खाना खाते थे और फुटपाथ की बजाय किसानों के टेंट में सोने लगे थे। किसान आंदोलन स्थल से निकली ट्रैक्टर ट्रॉलियों और अन्य वाहनों की भारी संख्या के कारण विभिन्न राजमार्गों पर जाम की स्थिति पैदा हो गयी, जबकि पंजाब के मुक्तसर जिले के दो किसानों की उस वक्त मौत हो गयी, जब ट्रैक्टर-ट्रॉली को ट्रक ने टक्कर मार दी। वे लोग दिल्ली के टीकरी बॉर्डर के निकट स्थित प्रदर्शन स्थल से घर लौट रहे हैं। उधर, पंजाब और हरियाणा में सिंघू बॉर्डर से लौटे किसानों की घर-वापसी पर मिठाइयों और फूल-मालाओं से जोरदार स्वागत किया गया। दिल्ली-करनाल-अम्बाला और दिल्ली-हिसार राष्ट्रीय राजमार्गों पर ही नहीं, बल्कि राजकीय राजमार्गों पर अनेक स्थानों पर किसानों के परिजन अपने गांववालों के साथ किसानों का स्वागत करते नजर आये। इस अवसर पर लड्डू-बर्फी भी बांटे जा रहे हैं। राष्ट्रीय राजमार्गों पर टॉल प्लाजा और अन्य स्थलों पर किसानों के स्वागत की तैयारियां की गई हैं। संयुक्त किसान मोर्चा का मुख्यालय शनिवार को वीरान नजर आ रहा था।इस बीच किसान नेताओं ने कहा कि वे 15 जनवरी को एक बार फिर बैठक करके यह समीक्षा करेंगे कि सरकार ने उनकी मांग पूरी की या नहीं। मुख्य रूप से पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के किसान, तीन केंद्रीय कृषि कानूनों के विरोध में और इन कानूनों को वापस लिये जाने की मांग को लेकर पिछले साल 26 नवंबर को बड़ी संख्या में यहां एकत्र हुए थे। संसद में 29 नवम्बर को इन कानूनों को निरस्त करने तथा बाद में एमएसपी पर कानूनी गारंटी के लिए एक पैनल गठित करने सहित विभिन्न मांगों के सरकार द्वारा मान लिये जाने के बाद संयुक्त किसान मोर्चा ने बृहस्पतिवार को विरोध प्रदर्शन स्थगित करने की घोषणा की थी। जब सिंघू बॉर्डर से किसान अपने घरों को लौटने लगे तो उनकी भावनाएं उफान पर थीं और मन में खुशियां हिलोरें मार रही थीं। ये किसान पिछले एक साल साथ रहने के बाद एक-दूसरे से विदाई लेते वक्त आपस में गले मिलते और बधाई देते नजर आए। सिंघू बॉर्डर से रवाना होने को तैयार अम्बाला के गुरविंदर सिंह ने सुबह में कहा, ‘‘यह हम लोगों के लिए भावनात्मक क्षण है। हमने कभी नहीं सोचा था कि हमारा बिछड़ना इतना कठिन होगा, क्योंकि हमारा यहां लोगों से और इस स्थान से गहरा लगाव हो गया था। यह आंदोलन हमारे यादों में हमेशा मौजूद रहेगा।

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