May 7, 2024 : 7:52 PM
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वीडियो में देखें अविनाश साबले की तैयारी: 1952 के बाद स्टीपलचेज में ओलिंपिक के लिए क्वालिफाई करने वाले भारत के पहले खिलाड़ी

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Hindi NewsSportsIndian Tokyo Olympics Steeplechase Avinash Sable Preparation Updates In Video;First Indian Player To Qualify For Olympics In Steeplechase Since 1952

नई दिल्लीएक घंटा पहले

महाराष्ट्र में मांडवा गांव के रहने वाले किसान के बेटे अविनाश साबले 1952 के बाद मेंस 3000 मीटर स्टीपलचेज के लिए क्वालिफाई करने वाले भारत के पहले खिलाड़ी हैं। उन्होंने 2019 में दोहा में हुए मेंस वर्ल्ड एथलेटिक्स चैंपियनशिप फाइनल में 8 मिनट और 21.37 सेकेंड का समय निकालकर ओलिंपिक के लिए क्वालिफाई किया था। अविनाश ने सेना में जाने के बाद एथलेटिक्स प्रतियोगिता में भाग लेना शुरू किया।

2017 तक वे लॉन्ग रेस करते थे, लेकिन उसके बाद वह स्टीपलचेज करने लगे। उन्होंने 2015 में पहली बार इंटर आर्मी क्रॉस कंट्री में भाग लिया। 2016 में उनका वजन बढ़ गया। जिसकी वजह से वह इंटर आर्मी क्रॉस कंट्री में 8वें स्थान पर रहे।

वहां उन पर कोच अमरीश कुमार की नजर पड़ी और उन्होंने अविनाश को ट्रेनिंग देने का फैसला लिया। अविनाश ने उनकी निगरानी में अपना वजन कम किया और कुछ ही महीनों बाद 2017 में कोलकाता में टाटा स्टील 25 किमी की दौड़ में इंटरनेशनल एलीट ग्रुप में 14वें स्थान पर रहे। भारतीय एथलीट ग्रुप में वे पहले स्थान पर रहे।

सीनियर्स को देखकर स्टीपलचेज शुरू कियाअविनाश साबले का नेशनल कैंप के लिए सिलेक्शन नेशनल स्तर पर क्रॉस कंट्री में भाग लेने के बाद हुआ। उन्होंने कुछ सीनियर्स को स्टीपलचेज करते हुए देखा। जिसके बाद उन्होंने ऑफ सीजन में स्टीपलचेज का अभ्यास करने का फैसला किया। कुछ ही महीनों के अभ्यास के बाद उन्होंने स्टीपलचेज में नेशनल रिकॉर्ड तोड़ा।

2019 में पहली बार साबले ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एशियन एथलेटिक्स चैंपियनशिप में 3000 मीटर स्टीपलचेज में भाग लेते हुए सिल्वर मेडल जीता। वहीं, 2019 में विश्व एथलेटिक्स चैंपियनशिप में 3000 मीटर स्टीपलचेज के फाइनल में पहुंचने वाले पहले भारतीय बने।

इंटर पास करने के बाद सेना में भर्ती हुएअविनाश साबले 12वीं करने के बाद सेना में भर्ती हुए। वे 2013-14 में सियाचीन में तैनात रहे। उन्हें राजस्थान और सिक्किम में भी तैनात किया गया। 2015 से उन्होंने सेना के इंटर क्रॉस कंट्री में भाग लेना शुरू किया। उनका स्कूल गांव से 12 किलोमीटर दूर था। वहां जाने के लिए कोई साधन नहीं थे। ऐसे में वे 6 साल की उम्र के बाद रोजाना पैदल ही 12 किलोमीटर की दूरी तय कर जाते थे।

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