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नई दिल्ली32 मिनट पहले
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डेल्टा वैरिएंट के सब-लीनिएज यानी आगे के वैरिएंट उससे ज्यादा संक्रामक नहीं हैं।
कोरोना के नए वैरिएंट डेल्टा प्लस का नाम सुनकर ऐसा लगता है जैसे यह डेल्टा वैरिएंट से ज्यादा घातक होगा। लेकिन ऐसा नहीं है। कोरोनावायरस की जीनोम सीक्वेंसिंग पर काम कर रहे सरकार के पैनल INSACOG के मुताबिक डेल्टा वैरिएंट के सब-लीनिएज यानी आगे के वैरिएंट उससे ज्यादा संक्रामक नहीं हैं। ये वैरिएंट हैं- AY.1, जिसे डेल्टा प्लस नाम दिया गया है और AY.2.
INSACOG यानी इंडियन सार्स-कोविड-2 कंसोर्टियम ऑन जीनोमिक्स ने अपने नए बुलेटिन में बताया कि AY.3 की डेल्टा के नए सब-लीनिएज यानी आगे के वैरिएंट के तौर पर पहचान की गइ है। इस पैनल में देश की 28 लैबोरेटरीज मिलकर जीनोम में आने वाले बदलावों का अध्ययन कर रही हैं।
दुनियाभर में घट रहे डेल्टा प्लस के मामले
INSACOG के मुताबिक, डेल्टा सब-लीनिएज AY.1 और AY.2 के मामले दुनियाभर में कम हो रहे हैं। जून के आखिरी हफ्ते में ब्रिटेन और अमेरिका में लगभग जीरो केस मिले। जून में भारत में जो जीनोम सीक्वेंस टेस्ट किए गए, उनमें डेल्टा सब-लीनिएज 1% से भी कम में मिला। महाराष्ट्र के रत्नागिरी और जलगांव, मध्यप्रदेश के भोपाल और तमिलनाडु के चेन्नई को मिलाकर चार क्लस्टर्स में मामले बढ़ने का कोई संकेत नहीं है।
डेल्टा वैरिएंट ही सबसे तेजी से फल रहा है
INSACOG ने कहा कि नए सैंपल्स के मुताबिक देश के सभी हिस्सों में फैलने वाला सबसे प्रमुख वैरिएंट है। यह सबसे पहले दिसंबर में भारत में ही मिला था। दुनिया में भी इसके मामले सबसे तेजी से बढ़ रहे हैं। इस समय डेल्टा वैरिएंट और इसकी सब-लीनिएज ही देश में वैरिएंट ऑफ कंसर्न हैं। मार्च से मई के बीच देश में हाहाकार मचाने वाली कोरोना की दूसरी लहर में यही प्रमुख वैरिएंट था।
क्या है जीनोम-सीक्वेंसिंग
हमारे DNA के न्यूक्लीओटाइड्स के ऑर्डर को समझने को जीनोम सीक्वेंसिंग कहते हैं। न्यूक्लीओटाइड्स का सीक्वेंस As, Cs, Gs और Ts के ऑर्डर में रहता है, जो डीएनए का जेनेटिक कोड बनाते हैं। इंसानी जीनोम में 3 अरब से भी ज्यादा न्यूक्लीओटाइड होते हैं। इस सीक्वेंस को पढ़कर डीएनए को समझा जा सकता है, जिससे कई रोगों का इलाज किया जा सकता है।