एक दिन पहलेलेखक: अमित कर्ण
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अक्षय खन्ना की फिल्म ‘स्टेट ऑफ सीज:टेंपल अटैक’ शुक्रवार को Zee5 पर रिलीज हो रही है। इसमें वो एनएसजी कमांडो मेजर हनौत सिंह के रोल में हैं। यह फिल्म अक्षरधाम मंदिर और अन्य महत्वपूर्ण स्थलों पर हुए आतंकी हमलों से इंस्पायर्ड है। अक्षय ने खास बातचीत में फिल्म और इस मुद्दे पर बातचीत की है। पेश हैं प्रमुख अंश:-
बॉर्डर वाले रोल से ये रोल कितना डिफरेंट है?
अक्षय –‘बॉर्डर’ का जिक्र किया आपने। हमें यह याद रखना चाहिए कि देश में जो भी आतंकी घटनाएं होती हैं, वह सरहद पर होने वाले वॉर से कहीं खतरनाक हैं। जर्नलिस्ट मुझसे जब कभी पूछा भी करते हैं कि यह तो कंट्रोवर्सियल टॉपिक है। इस पर फिल्म कैसे प्लान हो सकती है। मैं कहना चाहूंगा कि आतंकी घटनाएं भी इंडिया के खिलाफ कुछ पड़ोसी मुल्कों की सुनियोजित पॉलिसी का हिस्सा हैं। ऐसे में हम बतौर देश अगर आर्टिकल लिखें या फिल्में बनाएं तो कंट्रोवर्सी कहां से आ जाती है। इस फिल्म में उन पड़ोसियों का नाम नहीं लिया गया है। आप को जब भी मौका मिले तो फिल्म के मेकर्स से इसकी वजह पूछनी चाहिए।
जिन भी वजहों से देश प्रभावित है, उन सबको सामने आना चाहिए?
अक्षय – बिल्कुल, हम 70 साल से आतंकी हमले झेल रहे हैं, इन पर अगर फिल्में नहीं बनें तो हम कैसी सोसायटी में जी रहे हैं। रहा सवाल बॉर्डर से डिफरेंट होने का तो इसमें कहानी बाकायदा प्रत्यक्षदर्शी श्रद्धालुओं, एनएसजी कमांडोज और प्रभावित परिवारों के नजरिए से है। 26/11 हमले के वक्त एनएसजी में रहे रिटायर्ड लेफ्टिनेंट संदीप सेन इस फिल्म के कंसल्टेंट हैं। लोगों को एनएसजी कमांडोज की सोच और अप्रोच के बारे में पता चलेगा।
बॉर्डर और अभी की कहानियों के ट्रीटमेंट में बेसिक फर्क क्या नजर आया?
अक्षय – मैं तो कोई अंतर नहीं देखता। बॉर्डर तो वैसे भी टेरेरिज्म पर नहीं थी। हां अब की कहानियों में लाउड तरीके से देशप्रेम नहीं दिखाया जाता। इस फिल्म में मेरे एनएसजी कमांडो वाले किरदार को लेकर मेरी और डायरेक्टर केन घोष से एक डिसकशन हुई थी। उसके तहत हमने डिसाइड किया था कि हम इसे बहुत बढ़ा-चढ़ा कर पेश नहीं करेंगे। कमांडो हनौत सिंह बस अपनी ड्यूटी कर रहा है। उनमें यह बहुत बड़ी चीज नहीं है। वह कोई हीरो नहीं है। यही चीज पुलिस, आर्मी, नेवी अफसर पर लागू होती है। इनके लिए ये जब भी वर्दी पहनते हैं, वहीं से ये हीरो हैं।
एनएसजी कमांडो के बारे में और क्या पता चला, ये किस मेंटल स्टेट में होते हैं?
अक्षय – यही कि उनकी शिद्दत, ईमानदारी और सरलता बड़ी इंस्पायरिंग है। जब भी एक जवान या वैसे अफसरों से मिलें तो बड़ी पॉजिटिव फीलिंग आती है। जैसे इस फिल्म पर हमारे कंसल्टेंट मेजर संदीप सेन हमारे साथ थे। उनके साथ हम दो तीन महीने लगातार टच में थे। यही महसूस हुआ कि उन सब जैसों पर हम चाहे कितनी भी फिल्में क्यों न बना लें, वे सब कम ही पड़ेंगी।
सोसायटी सिस्टम कमांडो, आर्मी अफसरों, पुलिस को कितना ड्यू क्रेडिट दे पा रहे?
अक्षय – मसले पर तो आप जर्नलिस्ट काफी लिखते हैं। हम भी अखबारों में पढ़ते हैं कि जवान को या उनकी विधवाओं को बड़े-बड़े मेडल्स मिल चुके हैं। पेंशन मिल चुके हैं, पर हकीकत कुछ और है। हमें कई बार सुनने को मिलता है कि फलां अफसर को बड़ा मेडल मिला था, मगर अब वो रस्ते पर दाल चावल बेच रहा है। ये बड़े शर्म की बात है पूरे देश के लिए। मैं ये नहीं कह रहा कि उन्हें उनका ड्यू क्रेडिट कभी मिलता ही नहीं। पर अगर ऐसे गिनती के एग्जाम्प्ल भी हैं तो वह नहीं होना चाहिए।
आतंकी हमलों पर इजरायल जिस तरह मुंहतोड़ जवाब देता है, क्या इंडिया को भी वैसा करना चाहिए?
अक्षय – हम मामूली एक्टर हैं। आप को जब भी मौका मिले सरकार से ये सवाल होने चाहिए, जिनका ये काम है।
फिल्म की शूटिंग के दौरान मेकिंग का कोई रोचक किस्सा शेयर कर सकें?
अक्षय – यही कि हमने इसे पहले और दूसरे लॉकडाउन के बीच में शूट किया। यह मनाली, गुजरात, राजस्थान और मुंबई के यूनीक लोकेशनों पर शूट हुई है। वे सब अनदेखे लोकेशन हैं। लोगों को देख रोमांच की अनुभूति होगी।
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