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वट सावित्री पूजा विधि और कथा: इस व्रत में सौलह श्रृंगार से सजती हैं महिलाएं, करती हैं देवी सावित्री और बरगद की पूजा

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Hindi NewsJeevan mantraDharmVat Savitri Worship Method And Story In This Fast, Women Are Adorned With Sixteen Makeup, Worship Goddess Savitri And Banyan

एक घंटा पहले

कॉपी लिंकभविष्योत्तर और नारद पुराण में बताया है ये व्रत, इसे करने से सौभाग्य, समृद्धि और सुख बढ़ता है

10 जून, गुरुवार को अमावस्या पर वट सावित्री व्रत किया जाएगा। इसे सुहागिन महिलाओं का पर्व भी कहा जाता है। इस दिन शादीशुदा महिलाएं सौलह श्रृंगार से सजकर पति की लंबी उम्र के लिए भगवान शिव-पार्वती और सत्यवान-सावित्री की पूजा करती हैं। साथ ही दिनभर व्रत भी रखती हैं। इस व्रत का जिक्र भविष्योत्तर और नारद पुराण में आता है। इसके लिए कहा गया है कि इस दिन व्रत और पूजा करने से सौभाग्य, समृद्धि और सुख बढ़ता है। साथ ही जाने-अनजाने में हुए गलत कामों का दोष नहीं लगता और मनोकामनाएं भी पूरी होती हैं।

सौलह श्रृंगार के साथ पूजा और व्रतवट अमावस्या का व्रत विवाहित महिलाएं अपने पति की सलामती और लंबी उम्र के लिए रखती हैं। ये तीन दिन पहले से शुरू हो जाता है। पौराणिक कथा के मुताबिक, सावित्री ने अपने तप और सतीत्व की ताकत से अपने पति को फिर से जिंदा करने के लिए मृत्यु के स्वामी भगवान यम को मजबूर किया। इसलिए शादीशुदा महिलाएं अपने पति की सलामती और लंबी उम्र के लिए सौलह श्रृंगार कर के वट सावित्री व्रत करती हैं।

वट सावित्री पूजन विधि

वट (बरगद) के नीचे श्री गणेश, शिव-पार्वती और सत्यवान एवं सावित्री की मूर्तिया रखें।पहले गणेश जी फिर भगवान शिव-पर्वती की पूजा करें। इसके बाद सत्यवान और सावित्री की पूजा करें।उन मूर्तियों की पूजा अबीर, गुलाल, कुमकुम, चावल, हल्दी, मेंहंदी से करें और फूल चढ़ाकर नैवेद्य लगाएं।बरगद के पेड़ की पूजा करें। पेड़ में एक लोटा जल चढ़ाकर हल्दी-रोली लगाकर फल-फूल, धूप-दीप से पूजा करें।कच्चे सूत को हाथ में लेकर पेड़ की बारह परिक्रमा करें।हर परिक्रमा पर एक फल या चना वट वृक्ष पर चढ़ाएं और सूत तने पर लपेटें।परिक्रमा पूरी होने के बाद सत्यवान व सावित्री की कथा सुनें।इसके बाद मंदिर में या किसी ब्राह्मण को भोजन, फल और वस्त्र दान करें।

सावित्री का अर्थ वेद माता गायत्री और सरस्वतीसावित्री भारतीय संस्कृति में ऐतिहासिक चरित्र माना जाता है। सावित्री का अर्थ वेद माता गायत्री और सरस्वती भी होता है। सावित्री का जन्म भी विशिष्ट परिस्थितियों में हुआ था। पौराणिक कथा के अनुसार मद्र देश के राजा अश्वपति की कोई संतान नहीं थी। उन्होंने संतान प्राप्ति के लिए यज्ञ किया और मंत्रोच्चार के साथ प्रतिदिन एक लाख आहुतियां दीं। अठारह सालों तक यह चलता रहा। इसके बाद सावित्री देवी ने प्रकट होकर वर दिया कि हे राजन तम्हें शीघ्र ही एक तेजस्वी कन्या प्राप्त होगी। सावित्री देवी की कृपा से जन्म लेने की वजह से कन्या का नाम सावित्री रखा गया।

वट सावित्री व्रत की कथासावित्री बेहद सुंदर और संस्कारी थी। लेकिन योग्य पति न मिलने की वजह से सावित्री के पिता दुःखी थे। उन्होंने उसे खुद अपना पति ढूंढने भेजा। सावित्री जंगल में भटकने लगी। वहां साल्व देश के राजा द्युमत्सेन रहते थे, क्योंकि उनका राज्य किसी ने छीन लिया था। उनके बेटे सत्यवान को सावित्री ने पति के रूप में चुना। कहते हैं कि साल्व देश पूर्वी राजस्थान या अलवर अंचल के इर्द-गिर्द था। सत्यवान अल्पायु थे। वे वेद ज्ञाता थे।

नारद मुनि ने सावित्री को सत्यवान से विवाह न करने की सलाह दी थी, लेकिन सावित्री ने सत्यवान से ही शादी की। जब पति की मृत्यु तिथि में जब कुछ ही दिन बचे थे, तब सावित्री ने घोर तपस्या की थी। लेकिन पति की मृत्यु के बाद सावित्री ने 3 दिन तक व्रत रखा और अपने सतीत्व की ताकत से यमराज के पीछे चलती रही।

यमराज के बार-बार मना करने पर भी सावित्री ने अपने पति को नहीं छोड़ा। साथ ही बार-बार यमराज से पति को फिर से जिंदा करने की प्रार्थना करती रहीं। ऐसा करने से यमराज खुश हुए और सावित्री के पति को फिर जिंदा कर दिया। साथ ही पुत्र और लुटे हुए राज्य को वापस पाने का भी वरदान दिया।

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