May 27, 2024 : 4:55 PM
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हाईकोर्ट की तल्ख टिप्पणी : राम भरोसे चल रही है उत्तर प्रदेश की स्वास्थ्य व्यवस्था

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कानपुर के एक अस्पताल का हाल
– फोटो : पीटीआई

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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने प्रदेश के छोटे शहरों, कस्बों व ग्रामीण इलाकों में संक्रमण तेजी से बढ़ने तथा मरीजों के इलाज में हो रही लापरवाही पर तीखी टिप्पणी करते हुए कहा है कि सूबे की स्वास्थ्य व्यवस्था राम भरोसे चल रही है। इसमें तत्काल सुधार की आवश्यकता है।

कोर्ट ने मेरठ मेडिकल कॉलेज में भर्ती कोविड मरीज संतोष कुमार के लापता होने में डाक्टरों और मेडिकल स्टॉफ की लापरवाही को गंभीर मानते हुए अपर मुख्य सचिव चिकित्सा व स्वास्थ्य को जिम्मेदारी तय करने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने प्रदेश सरकार को चार माह में प्रदेश के अस्पतालों में चिकित्सकीय ढांचा सुधारने और पांच मेडिकल कॉलेजों को एसजीपीजीआई स्तर का संस्थान बनाने के लिए कदम उठाने का निर्देश दिया है। 

स्वत: प्रेरित जनहित याचिका की सुनवाई कर रही न्यायमूर्ति सिद्धार्थ वर्मा और न्यायमूर्ति अजीत कुमार की पीठ ने कहा कि वर्तमान में प्रदेश में चिकित्सा सुविधा बेहद नाजुक और कमजोर है। यह आम दिनों में भी जनता की जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं है। महामारी के दौर में इसका चरमरा जाना स्वाभाविक है। कोर्ट ने कहा है कि  प्रदेश के 20 बेड वाले सभी नर्सिंग होम मेें कम से कम 40 प्रतिशत बेड आईसीयू हों और इसमें 25 प्रतिशत वेंटिलेटर हों।

बाकी 25 प्रतिशत हाईफ्लो नसल बाइपाइप का इंतजाम होना चाहिए। 30 बेड वाले नर्सिंग होम में अनिवार्य रूप से ऑक्सीजन प्लांट होना चाहिए। प्रयागराज, आगरा, कानपुर, गोरखपुर और मेरठ मेडिकल कॉलेजों को उच्चीकृत कर एसजीपीजीआई स्तर का संस्थान बनाया जाए। इसके लिए सरकार भूमि अर्जन के आपातकालीन कानून का सहारा ले और धन उपलब्ध कराए। इन संस्थानों को कुछ हद तक स्वायत्तता भी दी जाए। 

कोर्ट ने कहा कि गांवों और कस्बों में सभी प्रकार की पैथालॉजी सुविधा और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में लेवल टू स्तर की चकित्सा सुविधाएं मुहैया कराई जाएं। बी और सी ग्रेड के शहरों को कम से कम 20 आईसीयू सुविधा वाली एंबुलेंस दी जाए। हर गांव में दो एंबुलेंस होनी चाहिए ताकि गंभीर मरीजों को अस्पताल पहुंचाया जा सके। कोर्ट ने यह सुविधा एक माह में उपलब्ध कराने का निर्देश दिया है। 

पिछली सुनवाई पर कोर्ट ने पांच छोटे जिलों में स्वास्थ्य सुविधाओं पर रिपोर्ट मांगी थी। प्रदेश सरकार द्वारा पेश रिपोर्ट में से कोर्ट ने उदाहरण के तौर पर बिजनौर की रिपोर्ट लेते हुए कहा कि यहां की जनसंख्या के लिहाज से स्वास्थ्य सुविधाएं मात्र 0.01 प्रतिशत लोगों के लिए हैं। बिजनौर में लेवल थ्री और जीवन रक्षक उपकरणों की सुविधा नहीं है। सरकारी अस्पताल में सिर्फ 150 बेड हैं। ग्रामीण क्षेत्र की 32 लाख की आबादी के लिहाज से 1200 टेस्टिंग प्रतिदिन काफी कम है। कोर्ट ने कहा कि हर दिन कम से कम चार से पांच हजार आरटीपीसीआर जांच होनी चाहिए। कोर्ट ने कहा कि अगर हम कोविड संक्रमितों की पहचान करने में चूक गए तो कोरोना की तीसरी लहर को न्योता दे देंगे। अगर 30 प्रतिशत जांच करनी है तो हर दिन 10 हजार जांचें करनी होंगी। कोर्ट ने 24 अप्रैल को दिए आदेश के क्रम में छोटे शहरों और कस्बों, गांवों में स्वास्थ्य सुविधाएं बढ़ाने का निर्देश दिया है। 

मेरठ : मरीज का लापता होना गंभीर लापरवाही

मेरठ मेडिकल कॉलेज से लापता कोविड मरीज संतोष कुमार को लेकर डीएम ने अपनी रिपोर्ट हाईकोर्ट में दाखिल की। रिपोर्ट से पता चला कि संतोष 21 अप्रैल को भर्ती हुआ था। उसकी मौत के बाद डाक्टरों की ड्यूटी बदलने के क्रम में मरीज की पहचान नहीं हो सकी और शव को लावारिस श्रेणी में पैक कर अंतिम संस्कार के लिए भेज दिया गया। कोर्ट ने इसे घोर लापरवाही मानते हुए कहा कि  इसके लिए जिम्मेदार डॉक्टरों और पैरामेडिकल स्टॉफ का सिर्फ इंक्रीमेंट रोकना आश्वर्यजनक है। इससे स्पष्ट है कि मासूम लोगों की जिंदगी के साथ खिलवाड़ हो रहा है। कोर्ट ने कहा कि पीड़ित परिवार मुआवजा पाने का हकदार है। अगली सुनवाई पर अपर मुख्य सचिव चिकित्सा स्वास्थ्य से इस लापरवाही के लिए जिम्मेदार लोगों पर कार्रवाई कर हलफनमा प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है। 

हर व्यक्ति को लगे वैक्सीन 

कोर्ट ने कहा कि मौजूदा हालात से दो चीजें स्पष्ट होती हैं, एक यह कि हमें देश में हर व्यक्ति को वैक्सीन लगानी है और दूसरा बेहतरीन स्वास्थ्य ढांचा खड़ा करना है। पीठ ने सुझाव दिया कि जो लोग गरीबों के लिए वैक्सीन खरीदना चाहते हैं उनको सरकार ऐसा करने की अनुमति दे तथा उनको आयकर में कुछ छूट दी जाए। एएसजीआई एसपी सिंह ने पूर्व के निर्देशों के तहत कोर्ट में वैक्सीन पर अपनी रिपोर्ट पेश की। 

कोर्ट ने कहा कि सरकार विश्व की वैक्सीन निर्माता कंपनियां से बात कर जहां भी वैक्सीन उपलब्ध हो वहां से खरीदें। साथ ही बड़े व्यावसायिक घराने जो धर्मार्थ चंदा देकर टैक्स बचाते रहे हैं, वे अपनो फंड का उपयोग वैक्सीन खरीद के लिए करें। कोर्ट ने यह भी सुझाव दिया है है कि जो वैक्सीन निर्माता देश वैक्सीन निर्माण का दायरा बढ़ाने की वकालत कर रहे हैं उनके लिए सरकार बौद्धिक संपदा कानून में छूट दे और जिन कंपनियां के पास वैक्सीन निर्माण की क्षमता है वे वैक्सीन बना सकें।

इसकी जांच के बाद ही उपयोग की अनुमति दी जाए। कोर्ट ने सरकार को इन सुझावों पर विचार कर अगली सुनवाई पर रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने बिजनौर, बहराइच, श्रावस्ती, जौनपुर मैनपुरी्, मऊ, अलीगढ़, एटा, इटावा, फिरोजाबाद , देवरिया के जिला जजों को अपने यहां नोडल अफसरों की नियुक्ति करने का निर्देश दिया है। याचिका पर अगली सुनवाई 22 मई को होगी ।

विस्तार

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने प्रदेश के छोटे शहरों, कस्बों व ग्रामीण इलाकों में संक्रमण तेजी से बढ़ने तथा मरीजों के इलाज में हो रही लापरवाही पर तीखी टिप्पणी करते हुए कहा है कि सूबे की स्वास्थ्य व्यवस्था राम भरोसे चल रही है। इसमें तत्काल सुधार की आवश्यकता है।

कोर्ट ने मेरठ मेडिकल कॉलेज में भर्ती कोविड मरीज संतोष कुमार के लापता होने में डाक्टरों और मेडिकल स्टॉफ की लापरवाही को गंभीर मानते हुए अपर मुख्य सचिव चिकित्सा व स्वास्थ्य को जिम्मेदारी तय करने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने प्रदेश सरकार को चार माह में प्रदेश के अस्पतालों में चिकित्सकीय ढांचा सुधारने और पांच मेडिकल कॉलेजों को एसजीपीजीआई स्तर का संस्थान बनाने के लिए कदम उठाने का निर्देश दिया है। 

आम दिनों के लिए भी पर्याप्त नहीं है सुविधाएं

उत्तर प्रदेश के एक अस्पताल की तस्वीर

उत्तर प्रदेश के एक अस्पताल की तस्वीर
– फोटो : पीटीआई

स्वत: प्रेरित जनहित याचिका की सुनवाई कर रही न्यायमूर्ति सिद्धार्थ वर्मा और न्यायमूर्ति अजीत कुमार की पीठ ने कहा कि वर्तमान में प्रदेश में चिकित्सा सुविधा बेहद नाजुक और कमजोर है। यह आम दिनों में भी जनता की जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं है। महामारी के दौर में इसका चरमरा जाना स्वाभाविक है। कोर्ट ने कहा है कि  प्रदेश के 20 बेड वाले सभी नर्सिंग होम मेें कम से कम 40 प्रतिशत बेड आईसीयू हों और इसमें 25 प्रतिशत वेंटिलेटर हों।

बाकी 25 प्रतिशत हाईफ्लो नसल बाइपाइप का इंतजाम होना चाहिए। 30 बेड वाले नर्सिंग होम में अनिवार्य रूप से ऑक्सीजन प्लांट होना चाहिए। प्रयागराज, आगरा, कानपुर, गोरखपुर और मेरठ मेडिकल कॉलेजों को उच्चीकृत कर एसजीपीजीआई स्तर का संस्थान बनाया जाए। इसके लिए सरकार भूमि अर्जन के आपातकालीन कानून का सहारा ले और धन उपलब्ध कराए। इन संस्थानों को कुछ हद तक स्वायत्तता भी दी जाए। 

कोर्ट ने कहा कि गांवों और कस्बों में सभी प्रकार की पैथालॉजी सुविधा और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में लेवल टू स्तर की चकित्सा सुविधाएं मुहैया कराई जाएं। बी और सी ग्रेड के शहरों को कम से कम 20 आईसीयू सुविधा वाली एंबुलेंस दी जाए। हर गांव में दो एंबुलेंस होनी चाहिए ताकि गंभीर मरीजों को अस्पताल पहुंचाया जा सके। कोर्ट ने यह सुविधा एक माह में उपलब्ध कराने का निर्देश दिया है। 

गांवों, कस्बों में नहीं हो रही है जांच

नदी के किनारे बहकर आए शव या तो रेत में दफनाए गए या उनका अंतिम संस्कार किया गया

नदी के किनारे बहकर आए शव या तो रेत में दफनाए गए या उनका अंतिम संस्कार किया गया
– फोटो : अमर उजाला

पिछली सुनवाई पर कोर्ट ने पांच छोटे जिलों में स्वास्थ्य सुविधाओं पर रिपोर्ट मांगी थी। प्रदेश सरकार द्वारा पेश रिपोर्ट में से कोर्ट ने उदाहरण के तौर पर बिजनौर की रिपोर्ट लेते हुए कहा कि यहां की जनसंख्या के लिहाज से स्वास्थ्य सुविधाएं मात्र 0.01 प्रतिशत लोगों के लिए हैं। बिजनौर में लेवल थ्री और जीवन रक्षक उपकरणों की सुविधा नहीं है। सरकारी अस्पताल में सिर्फ 150 बेड हैं। ग्रामीण क्षेत्र की 32 लाख की आबादी के लिहाज से 1200 टेस्टिंग प्रतिदिन काफी कम है। कोर्ट ने कहा कि हर दिन कम से कम चार से पांच हजार आरटीपीसीआर जांच होनी चाहिए। कोर्ट ने कहा कि अगर हम कोविड संक्रमितों की पहचान करने में चूक गए तो कोरोना की तीसरी लहर को न्योता दे देंगे। अगर 30 प्रतिशत जांच करनी है तो हर दिन 10 हजार जांचें करनी होंगी। कोर्ट ने 24 अप्रैल को दिए आदेश के क्रम में छोटे शहरों और कस्बों, गांवों में स्वास्थ्य सुविधाएं बढ़ाने का निर्देश दिया है। 

मेरठ : मरीज का लापता होना गंभीर लापरवाही

मेरठ मेडिकल कॉलेज से लापता कोविड मरीज संतोष कुमार को लेकर डीएम ने अपनी रिपोर्ट हाईकोर्ट में दाखिल की। रिपोर्ट से पता चला कि संतोष 21 अप्रैल को भर्ती हुआ था। उसकी मौत के बाद डाक्टरों की ड्यूटी बदलने के क्रम में मरीज की पहचान नहीं हो सकी और शव को लावारिस श्रेणी में पैक कर अंतिम संस्कार के लिए भेज दिया गया। कोर्ट ने इसे घोर लापरवाही मानते हुए कहा कि  इसके लिए जिम्मेदार डॉक्टरों और पैरामेडिकल स्टॉफ का सिर्फ इंक्रीमेंट रोकना आश्वर्यजनक है। इससे स्पष्ट है कि मासूम लोगों की जिंदगी के साथ खिलवाड़ हो रहा है। कोर्ट ने कहा कि पीड़ित परिवार मुआवजा पाने का हकदार है। अगली सुनवाई पर अपर मुख्य सचिव चिकित्सा स्वास्थ्य से इस लापरवाही के लिए जिम्मेदार लोगों पर कार्रवाई कर हलफनमा प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है। 

हर व्यक्ति को लगे वैक्सीन 

कोर्ट ने कहा कि मौजूदा हालात से दो चीजें स्पष्ट होती हैं, एक यह कि हमें देश में हर व्यक्ति को वैक्सीन लगानी है और दूसरा बेहतरीन स्वास्थ्य ढांचा खड़ा करना है। पीठ ने सुझाव दिया कि जो लोग गरीबों के लिए वैक्सीन खरीदना चाहते हैं उनको सरकार ऐसा करने की अनुमति दे तथा उनको आयकर में कुछ छूट दी जाए। एएसजीआई एसपी सिंह ने पूर्व के निर्देशों के तहत कोर्ट में वैक्सीन पर अपनी रिपोर्ट पेश की। 

कोर्ट ने कहा कि सरकार विश्व की वैक्सीन निर्माता कंपनियां से बात कर जहां भी वैक्सीन उपलब्ध हो वहां से खरीदें। साथ ही बड़े व्यावसायिक घराने जो धर्मार्थ चंदा देकर टैक्स बचाते रहे हैं, वे अपनो फंड का उपयोग वैक्सीन खरीद के लिए करें। कोर्ट ने यह भी सुझाव दिया है है कि जो वैक्सीन निर्माता देश वैक्सीन निर्माण का दायरा बढ़ाने की वकालत कर रहे हैं उनके लिए सरकार बौद्धिक संपदा कानून में छूट दे और जिन कंपनियां के पास वैक्सीन निर्माण की क्षमता है वे वैक्सीन बना सकें।

इसकी जांच के बाद ही उपयोग की अनुमति दी जाए। कोर्ट ने सरकार को इन सुझावों पर विचार कर अगली सुनवाई पर रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने बिजनौर, बहराइच, श्रावस्ती, जौनपुर मैनपुरी्, मऊ, अलीगढ़, एटा, इटावा, फिरोजाबाद , देवरिया के जिला जजों को अपने यहां नोडल अफसरों की नियुक्ति करने का निर्देश दिया है। याचिका पर अगली सुनवाई 22 मई को होगी ।

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आम दिनों के लिए भी पर्याप्त नहीं है सुविधाएं

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