May 7, 2024 : 6:51 PM
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महामारी में टूट गए परिवारों का दर्द: मेरी गर्भवती पत्नी को कोरोना हुआ, बेटे को जन्म देने की बाद उसकी मौत हो गई; अब चिंता है कि कहीं मेरे नवजात बच्चे को कुछ न हो जाए

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Hindi NewsDb original’My Pregnant Wife Got Corona; She Died After Giving Birth To A Son, Now There Is A Worry That Something May Happen To My Newborn Child ‘Poonam Kaushal, New Delhi

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नई दिल्लीएक घंटा पहलेलेखक: पूनम कौशल

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भारती अकेले ही अपने संक्रमित पति को लेकर अस्पताल दर अस्पताल भटकती रहीं, लेकिन न उन्हें कहीं बेड मिला और न ही ऑक्सीजन। एक मई को उनके पति ने तड़प-तड़प कर दम तोड़ दिया। अब एक सप्ताह बाद भारती की रिपोर्ट भी पॉजीटिव आ गई है। उनका बेटा 14 साल का है जिसे उन्होंने घर के एक कमरे में आइसोलेट कर दिया है।

रोते हुए भारती कहती हैं, ‘मैंने अपने हाथों से अपने पति की चिता को मुखाग्नि दी है। मैं अस्पताल दर अस्पताल उन्हें लेकर भटकती रही। मेरे पति ने मेरी बांहों में ही दम तोड़ दिया।’ भारती को अब बस अपने बेटे की चिंता है। भारती ने उसे एक कमरे में बंद कर दिया है। जरूरत पड़ने पर वह उससे फोन पर ही बात करती हैं। वह कहती हैं कि पति की मौत के बाद भी मैं एक बार भी बेटे के सामने नहीं रोई हूं, क्योंकि मैं नहीं चाहती कि इसका असर उसकी मानसिक सेहत पर पड़े।

दिल्ली के नांगलोई में रहने वाली भारती पति और बेटे के साथ रहती थीं। कोरोना के कारण पति की मौत के बाद अब उनके सामने कई तरह की समस्याएं हैं। अब उन्हें आठवीं में पढ़ने वाले अपने बेटे की फीस भरने की भी चिंता हैं। वे बार-बार कहती हैं, ‘अब पता नहीं मेरे बेटे का क्या होगा। सबसे बड़ा अफसोस ये है कि न कोई अपना साथ है और न ही सरकार। सब कुछ मुझे अकेले ही करना पड़ रहा है।’

कोरोना के कारण पति को खो चुकी भारती कहती हैं कि अब मुझे बेटे की सबसे ज्यादा चिंता है। वह कहीं डिप्रेशन में न आ जाए इसलिए मैं उसके सामने एक आंसू तक नहीं बहाती हूं।

कोरोना के कारण पति को खो चुकी भारती कहती हैं कि अब मुझे बेटे की सबसे ज्यादा चिंता है। वह कहीं डिप्रेशन में न आ जाए इसलिए मैं उसके सामने एक आंसू तक नहीं बहाती हूं।

पत्नी की जान नहीं बच सकी, अब बच्चे की चिंतादिल्ली के ही रहने वाले निखिल की पत्नी श्वेता डिलीवरी के लिए आरएमएल अस्पताल में भर्ती हुईं थीं। वो कोविड पॉजीटिव हो गई। निखिल ने उनकी जान बचाने की हर संभव कोशिश की, लेकिन वो उन्हें बचा नहीं सके। सोशल मीडिया पर गुहार लगाने के बाद भी उनकी पत्नी को अस्पताल में आईसीयू या वेंटीलेटर नहीं मिल सका।

निखिल कहते हैं, ‘मेरी पत्नी डिलीवरी के बाद घर आ गई थी। दो दिन बाद उसकी रिपोर्ट पॉजीटिव आ गई। फिर अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। वो दस दिन तक अस्पताल में रही और आखिरकार दम तोड़ दिया। उसकी हालत बिगड़ती जा रही थी, लेकिन आईसीयू बेड भी नहीं दिया गया। अस्पताल में कोई डॉक्टर उसे देखने नहीं आता था, लेकिन हम कर भी क्या सकते थे।’

निखिल का बेटा अभी दो सप्ताह का है और अब उनकी मां और भाभी उसे पाल रही हैं। मां के न रहने पर अब बच्चे को बोतल का दूध पीना पड़ रहा है। निखिल अब किसी भी तरह अपने बच्चे को इस महामारी से बचाए रखना चाहते हैं।

मां-बाप से अलग रह रहे हैं बच्चेदिल्ली के ही रंजीत की पत्नी ने एक सप्ताह पहले ही बेटी को जन्म दिया है। कोविड संक्रमण की वजह से उनका ऑक्सीजन लेवल गिर रहा था। उन्हें जल्दी ही डिलीवरी भी करानी पड़ी। वो अब एक निजी अस्पताल के आईसीयू में भर्ती हैं जहां सिर्फ आईसीयू का खर्च ही रोजाना पचास हजार रुपए है। दवाओं का खर्च अलग है।

रंजीत ने सोचा था कि वो किसी सस्ते अस्पताल में पत्नी की डिलीवरी कराएंगे। लेकिन कहीं बेड उपलब्ध नहीं था। मजबूरी में उन्हें महंगे निजी अस्पताल में पत्नी को भर्ती कराना पड़ा। रंजीत कहते हैं, ‘मेरे सामने सबसे बड़ा चैलेंज पत्नी और बच्चे को बचाना था। नवजात को भी चार दिन आईसीयू में रखा गया। मैंने लोगों से मदद मांगी है। उम्मीद करता हूं कि कहीं से मदद मिले।’

रंजीत के तीन बच्चे हैं, एक पांच साल की बेटी है, एक एक साल की और एक अभी एक सप्ताह पहले ही पैदा हुई है। रंजीत की मां इस समय उनके बच्चों की देखभाल कर रही हैं। भर्राई आवाज में रंजीत कहते हैं, ‘मां के लिए भी बच्चों का ध्यान रखना आसान नहीं है। बच्चों पर तो मुसीबत ही आ गई है। नवजात मां की गोद से दूर है। मेरी पत्नी ने उसे एक बार भी गोद में नहीं लिया है। मैं बस यही दुआ करता हूं कि मेरी पत्नी जल्द से जल्द स्वस्थ हो।’

रंजीत रोजाना अस्पताल आ रहे हैं। इसलिए उन्होंने बच्चों से भी दूरी बना रखी है। उन्होंने पत्नी को निजी अस्पताल में भर्ती तो करा लिया है, अब उनकी चिंता ये है कि वो बिल कैसे चुकाएंगे।

पति बाहर थे, घर में मां-बेटा दोनों पॉजिटिव, खाना बनाना भी मुश्किल थादिल्ली की ही रहने वाली पूजा (बदला हुआ नाम) का बेटा जब कोरोना संक्रमित हुआ तो वो घर में अकेली ही थीं। फिर पूजा की रिपोर्ट भी पॉजीटिव आ गई। पूजा के लिए अपने और बेटे के लिए खाना बनाना भी मुश्किल था। पूजा के फोन नंबर के साथ मदद की गुहार लगाते संदेश को ट्विटर पर हजारों लोगों ने शेयर किया, लेकिन किसी ने उन्हें मदद की पेशकश नहीं की। वो कहती हैं, ‘आप पहली इंसान हैं जिसने मुझे कॉल किया है। मुझे उम्मीद नहीं थी कि कोई आगे आएगा। एक दोस्त मदद कर रही थी, लेकिन फिर उसे भी ऑफिस जाना पड़ा।’ पूजा कहती हैं, ‘मेरा बेटा और मैं दोनों संक्रमित थे और पति दूर अहमदाबाद में थे। बुखार में हमने वो दिन किस तरह गुजारे, बता भी नहीं सकती। अब किसी तरह पति वापस लौट आएं हैं तो कुछ हिम्मत मिली है।’

कई ऐसे बच्चे हैं जिन्होंने महामारी के दौरान अपने माता-पिता दोनों को खो दिया है। महिला एवं बाल कल्याण मंत्री स्मृति ईरानी ने ट्वीट कर कहा है कि ऐसे बच्चे जिनकी देखभाल करने वाला कोई न हो, आसपास के लोग चाइल्ड हेल्पलाइन पर उनकी सूचना तुरंत दें।

कई ऐसे बच्चे हैं जिन्होंने महामारी के दौरान अपने माता-पिता दोनों को खो दिया है। महिला एवं बाल कल्याण मंत्री स्मृति ईरानी ने ट्वीट कर कहा है कि ऐसे बच्चे जिनकी देखभाल करने वाला कोई न हो, आसपास के लोग चाइल्ड हेल्पलाइन पर उनकी सूचना तुरंत दें।

जिन बच्चों का ध्यान रखने वाला कोई न हो, 1098 पर दें उनकी जानकारीकोरोना महामारी ने कई परिवारों को तोड़ दिया है। कई ऐसे मामले भी सामने आए हैं जिनमें बच्चों के दोनों अभिभावकों की जान चली गई है। ऐसे बच्चों की मदद सरकारी संस्थाएं कर रही हैं। कोविड की इस दूसरी घातक लहर में कितने बच्चे अनाथ हुए हैं इसका कोई ठोस डेटा उपलब्ध नहीं हैं, पर सोशल मीडिया पर पोस्ट किए जा रहे संदेशों से पता चलता है कि ये तादाद हजारों में हो सकती है।

केंद्रीय महिला एवं बाल कल्याण मंत्री स्मृति ईरानी ने बुधवार को एक ट्वीट करके कहा है, ‘यदि आप ऐसे किसी बच्चे के बारे में जानते हैं जिसके दोनों अभिभावकों की मौत कोविड की वजह से हो गई है और उसका ध्यान रखने वाला कोई नहीं है तो फिर अपने जिले की पुलिस या बाल कल्याण समिति को जानकारी दें या चाइल्डलाइन 1098 पर कॉल करें। ऐसा करना आपकी कानूनी जिम्मेदारी है।’

दिल्ली के महिला एवं बाल कल्याण विभाग की निदेशक रश्मि सिंह कहती हैं, ‘लोगों के सामने जब ऐसे किसी बच्चे की जानकारी आए जिसे मदद की जरूरत हो तो सोशल मीडिया पर पोस्ट करने से पहले चाइल्डलाइन 1098 पर फोन करें। हम ऐसे बच्चों की मदद के लिए पूरी तरह तैयार हैं।’

वो कहती हैं, ‘जो लोग सोशल मीडिया पर गोद लेने के संदेश पोस्ट कर रहे हैं उन्हें समझना चाहिए कि गोद लेने की प्रक्रिया इतनी आसान नहीं हैं। गोद लेने वालों की पूरी पड़ताल की जाती है और उन्हें एक लंबी प्रक्रिया से गुजरना होता है।’ रश्मि सिंह के मुताबिक अनाथ हुए बच्चों के बारे में एनजीओ, पुलिस और अस्पतालों के जरिए जानकारी जुटाई जा रही है और फिर उन तक मदद पहुंचाई जा रही है।

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