April 27, 2024 : 2:48 AM
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सरकार का इंफ्रा बैंक: आपके लिए प्राइवेट और इंफ्रास्ट्रक्चर से जुड़ा सरकारी बैंक क्यों चाहती है सरकार, जानें पूरी कहानी

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21 मिनट पहले

कॉपी लिंकइंफ्रा बैंक 15 से 20 साल तक में पूरा होने वाले प्रोजेक्ट्स को बाजार से जुटाकर पूंजी देगासरकार 20,000 करोड़ रुपए की शुरुआती पूंजी और 500 करोड़ रुपए का अनुदान देगीसरकार का अगले तीन साल में कम से कम पांच लाख करोड़ रुपए का लोन बांटने का प्लान

सरकार एक तरफ आम जनता के लिए बैंकों का निजीकरण कर रही है, लेकिन अपने इंफ्रा प्रोजेक्ट को लॉन्ग टर्म फंड देने के लिए नेशनल यानी सरकारी बैंक बना रही है। इंफ्रा बैंक के लिए सरकार संसद में नेशनल बैंक फॉर फाइनेंसिंग इंफ्रास्ट्रक्चर एंड डेवलपमेंट बिल ला रही हैं।

बजट 2021 में इंफ्रा प्रोजेक्ट्स पर 5.54 लाख करोड़ खर्च करने का ऐलान

बिल से सरकारी डेवलपमेंट फाइनेंस इंस्टीट्यूशन के तौर पर एक नेशनल बैंक बनाने का रास्ता खुलेगा। दरअसल, वित्त मंत्री ने रोजगार के मौके और मांग पैदा करने के लिए देशभर में इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट को बढ़ावा देने का प्लान बनाया है। उन्होंने बजट 2021 में इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स पर 5.54 लाख करोड़ रुपए खर्च करने का ऐलान किया था।

अगले तीन साल में पांच लाख करोड़ रुपए का लोन बांटने का प्लान

बैंक के रूप में शुरू होने वाला डेवलपमेंट फाइनेंस इंस्टीट्यूशन (DFI) 15 से 20 साल तक के प्रोजेक्ट को बाजार से जुटाकर पूंजी देगा। बैंक को सरकार 20,000 करोड़ रुपए की शुरुआती पूंजी और 500 करोड़ रुपए का अनुदान मुहैया कराएगी। बैंक अगले कुछ वर्षों में बाजार तीन लाख करोड़ रुपए तक की पूंजी जुटाएगा। सरकार का अगले तीन साल में कम से कम पांच लाख करोड़ रुपए का लोन बांटने का प्लान है।

बड़े पेंशन फंड, सॉवरेन फंड और इंश्योरेंस फंड पैसा लगा सकेंगे

इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट को लंबे समय के लिए पैसों की जरूरत होगी। इसलिए इसमें बड़े पेंशन फंड, सॉवरेन फंड और इंश्योरेंस फंड पैसा लगा सकेंगे। इसमें निवेश करने वालों को इनडायरेक्ट तरीके से टैक्स में छूट मिलेगी। सरकार इसमें होने वाले निवेश को खास तरह की सिक्योरिटी मुहैया कराएगी। ऐसा होने पर बैंक दूसरे वित्तीय संस्थानों से ज्यादा सस्ती दरों पर बाजार से पैसा जुटा सकेगा।

पुरानी है डेवलपमेंट बैंक की इंफ्रास्ट्रक्चर सेक्टर की मांग

इंफ्रास्ट्रक्चर सेक्टर काफी समय से ऐसे डेवलपमेंट बैंक की मांग करता रहा है। सरकार के पास फिलहाल लगभग 7000 इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट के प्लान हैं। किन प्रोजेक्ट को इंफ्रा बैंक से कब कितना फंड मिलेगा यह एक बोर्ड तय करेगा। इस बोर्ड में प्रोफेशनल्स होंगे जिनमें से आधे डायरेक्टर गैर सरकारी होंगे, जो उद्योग जगत की जानी-मानी हस्तियां होंगी।

औद्योगिक विकास के लिए फंडिंग के लिए बनाए गए थे तीन बैंक

देश के औद्योगिक विकास के वास्ते लॉन्ग टर्म प्रोजेक्ट्स को फंड मुहैया कराने के लिए 1948 से 1964 के बीच तीन बैंक बनाए गए थे। ये थे- इंडस्ट्रियल फाइनेंस कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (IFCI), इंडस्ट्रियल क्रेडिट एंड इनवेस्टमेंट कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (ICICI) और इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट बैंक ऑफ इंडिया (IDBI)।

रिजर्व बैंक ने सस्ती दरों पर लॉन्ग टर्म फंड देना बंद कर दिया था

लेकिन तीन दशक के भीतर रिजर्व बैंक ने सस्ती दरों पर इनको लॉन्ग टर्म फंड देना बंद कर दिया। इसके चलते इन बैंकों को बाजार से पूंजी जुटाना शुरू करना पड़ा जिससे इनकी वित्तीय हालत धीरे-धीरे खराब हो गई और इनमें से दो इंस्टीट्यूशन प्राइवेट बैंक में कन्वर्ट हो गए।

प्राइवेट सेक्टर के डेवलपमेंट के लिए सरकारी सपोर्ट वाला बैंक होता है

आइए जानते हैं कि असल में डेवलपमेंट फाइनेंस इंस्टीट्यूशन यानी DFI होते क्या हैं और इसके बारे में OECD का क्या कहना है। इसके मुताबिक, यह विकासशील देशों में प्राइवेट सेक्टर के डेवलपमेंट के लिए सरकार के सपोर्ट वाला खास तरह का बैंक होता है।

OECD दुनिया के 37 देशों का समूह है जो उनके बीच सौहार्द, समानता और संपन्नता बढ़ाने वाली नीतियों को साकार करने में योगदान करता है। सदस्य देशों के आर्थिक विकास और सहयोग को बढ़ावा देने वाली पॉलिसी बनाने में मदद करता है।

सॉवरेन रेटिंग से सस्ती दरों पर मोटी रकम जुटाने में मदद मिलती है

डेवलपमेंट फाइनेंस इंस्टीट्यूशन यानी इंफ्रा बैंक नेशनल और इंटरनेशनल डेवलपमेंट फंड से पूंजी जुटाता है। इसमें अधिकांश हिस्सेदारी सरकार की होती है इसमें होने वाले निवेश को सरकारी गारंटी मिलती है। इस वजह से क्रेडिट रेटिंग अच्छी होती है और इंटरनेशनल मार्केट से सस्ती दरों पर मोटी रकम जुटाने में मदद मिलती है।

बैंकों के निजीकरण के जरिए चार स्ट्रैटेजिक सेक्टर में मौजूदगी सीमित कर रही सरकार

आपको यह बात दिलचस्प लगेगी कि सरकार एक तरफ लॉन्ग टर्म इंफ्रा प्रोजेक्ट के लिए अपना बैंक बनाने जा रही है, वहीं दूसरी तरफ निजीकरण के जरिए बैंकिंग सहित चार स्ट्रैटेजिक सेक्टर में अपनी मौजूदगी सीमित करने पर काम कर रही है।

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बजट 2021 में दो बैंकों और एक जनरल इंश्योरेंस कंपनी के निजीकरण का प्रस्ताव दिया है। गौरतलब है कि सरकार ने वित्त वर्ष 2022 में 1.75 लाख करोड़ रुपए के विनिवेश का लक्ष्य रखा है।

सरकार ने अगस्त 2019 में 10 सरकारी बैंकों को चार बड़े बैंकों में मिलाया था

इससे पहले सरकार ने अगस्त 2019 में 10 सरकारी बैंकों को चार बड़े बैंकों में मिलाया था। इन चार बैंकों में पंजाब नेशनल बैंक (PNB), यूनियन बैंक, केनरा बैंक और इंडियन बैंक थे। निजीकरण के पहले दौर में बैंक ऑफ महाराष्ट्र, बैंक ऑफ इंडिया, सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया और इंडियन ओवरसीज बैंक को शामिल किए जाने की कयासबाजी चल रही है। नीति आयोग ने पीएनबी, यूनियन बैंक, केनरा बैंक और इंडियन बैंक के अलावा बैंक ऑफ बड़ौदा और SBI को इसके दायरे से बाहर रखा है।

बैंकों के निजीकरण के खिलाफ कर्मचारी संगठनों की दो दिन की हड़ताल हुई थी

आंकड़ों के मुताबिक फिलहाल 10 पब्लिक सेक्टर बैंकों में सरकार की 70% हिस्सेदारी है जबकि तीन बैंकों में इसका स्टेक 90% से ज्यादा है। बैंकिंग सरकार के लिए रणनीतिक रूप से अहम चार सेक्टर में एक है, जिनमें उसने अपनी सीमित भागीदारी रखना तय किया है।

पब्लिक सेक्टर बैंकों के निजीकरण की गहमागहमी के बीच सरकारी डेवलपमेंट फाइनेंस इंस्टीट्यूशन को सभी स्टेकहोल्डर चौतरफा सपोर्ट मिल रहा है। लेकिन बैंकों के निजीकरण का कर्मचारी संगठनों की तरफ से जोरदार विरोध हो रहा है।

कर्मचारी संगठनों का कहना है कि बैंक प्रॉफिटेबल हैं तो उन्हें नहीं बेचना चाहिए

बैंक कर्मियों के नौ संगठनों की तरफ से हाल ही में की गई दो दिनों की देशव्यापी हड़ताल में लगभग 10 लाख बैंक कर्मी शामिल हुए थे। बैंक कर्मचारियों के यूनियन का कहना है कि सरकारी बैंकों को ऑपरेटिंग प्रॉफिट हो रहा है और उनके प्राइवेटाइजेशन की कोई जरूरत नहीं है।

आंकड़ों के मुताबिक, मार्च 2020 तक सरकारी बैंकों ने कुल 1,74,000 करोड़ रुपए का मुनाफा कमाया था लेकिन उन्होंने बैड लोन के लिए 2,00,000 करोड़ रुपए का प्रोविजन किया है इसलिए उन्हें 26,000 करोड़ रुपए का नेट लॉस हुआ था।

2014 में हुई थी सरकारी बैंकों के निजीकरण वाली कहानी की शुरूआत

आपकी दिलचस्पी यह जानने में होगी कि पिछली बार सरकारी बैंकों के निजीकरण को लेकर सीरियस कदम कब उठाया गया। इनके निजीकरण वाली कहानी की शुरूआत 2014 में तब हुई जब रिजर्व बैंक की तरफ से पी जे नायक कमेटी ने बैंकों के बोर्ड के गवर्नेंस की समीक्षा वाली रिपोर्ट सौंपी।

एक्सिस बैंक के फॉर्मर चेयरमैन और सीईओ की अगुआई वाली कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में इससे जुड़े फायदों का ब्योरा दिया था। कमेटी ने रिपोर्ट में कहा था कि प्रॉडक्टिविटी कम रहने, लोन की क्वॉलिटी में तेज गिरावट आने और कॉम्पिटिशन के मोर्चे पर प्राइवेट बैंकों से कमजोर रहने के चलते उनको पूंजी देने से सरकारी खजाने पर बोझ बढ़ेगा।

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