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- Meet Ajay Bahadur From Odisha Also Known As NEET’s Anand Kumar Who Gives Free Coaching Classes For NEET, All The 19 Children From His Batch Qualified In NEET 2020 This Year
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2 महीने पहले
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ओडिशा के भुवनेश्वर में रहने वाले अजय बहादुर ने भी कभी डॉक्टर बनने का सपना देखा था। लेकिन पैसों की कमी के चलते उनका यह सपना अधूरा ही रह गया। ऐसे में अजय ने डॉक्टर बनने की चाह रखने वाले जरूरतमंद बच्चों को फ्री में कोचिंग देना शुरू किया। NEET के आनंद कुमार कहे जाने वाले अजय जिंदगी फाउंडेशन नाम की एक संस्था चलाते हैं। यह संस्था गरीब और जरूरतमंद बच्चों को मुफ्त में नीट की पढ़ाई कराती है। इस साल फाउंडेशन के सभी 19 बच्चों का नीट में सिलेक्शन हुआ है। इससे पहले 2018 में भी 20 में से 18 और 2019 में 14 कैंडिडेट्स ने परीक्षा क्वालिफाय की थी।
My father was ill & we could not afford the medicines needed for his treatment so I odd jobs & couldn’t pursue my medical studies. Now I will try increasing students in the foundation by getting more deserving aspirants from other states: Ajay B Singh, Founder, Zindagi Foundation https://t.co/PGT66R95sK pic.twitter.com/i4IFMlrdll
— ANI (@ANI) October 17, 2020
सुपर-30 के आनंद से मिली प्रेरणा
अजय बताते हैं कि भले ही मैं डॉक्टर नहीं बन पाया, लेकिन इन्हें डॉक्टर बनते देख लगता है जैसे मेरा सपना पूरा हो रहा है। मैं नहीं चाहता कोई होनहार मेरी तरह सिर्फ पैसों के अभाव के चलते डॉक्टर ना बन पाएं । मेरा यह प्रयास जारी रहेगा ताकि कोई भी बच्चा संसाधनों के अभाव में पीछे न छूट जाए। उन्होंने बताया कि वह सुपर-30 के आनंद जी से काफी प्रेरित हुए।
Odisha: All 19 students of a Bhubaneshwar-based foundation, which teaches underprivileged medical aspirants, clear the NEET exam
“My father’s a small farmer. I came here to study during lockdown & my accommodation, food expenses were taken care of. I am thankful,” says a student pic.twitter.com/jhjyJhXPm9
— ANI (@ANI) October 17, 2020
फूल बेचने वाली एक बच्ची के साथ शुरू किया पहला बैच
तीन साल पहले वह जगन्नाथजी के दर्शन कर लौट रहे थे। तब उनकी नजर फूल बेचने वाली एक बच्ची पर पड़ी, जो माला बनाते हुए अपनी नजर किताबों पर गड़ाए थी। 12वीं कक्षा की इस छात्रा का नाम डिंपल साहू था, जो डॉक्टर बनना चाहती थी। लेकिन पिता की दुकान से ही बड़ी मुश्किल से गुजारा होता था, ऐसे में डॉक्टर की पढ़ाई शायद ही पूरी हो पाएं। उस बच्ची की बात सुन मैं तीन रात सो नहीं पाया। चौथे दिन मैं उस बच्ची और उसके पिता से मिला और इस तरह उसके साथ पहला बैच तैयार किया।
मजदूर की बेटी बनेगी डॉक्टर
जिंदगी फाउंडेशन में इस साल सफल होने वाली अंगुल जिले की खिरोदिनी ने 657 अंक हासिल किए। उसके पिता मजदूरी करते हैं। वहीं, सत्यजीत साहू ने 619 अंक हासिल किए, जिसके पिता साइकिल से घर-घर जाकर सब्जी बेचते हैं। माता-पिता के साथ इडली-बड़ा का ठेला चलाने वाले सुभेंदु परिडा ने 609 और पान की दुकान चलाने वाले वासुदेव पंडा की बेटी निवेदिता ने 591 अंक हासिल किए।