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गोवा में चतुर्दशी पर होता है नरकासुर वध; बंगाल में काली पूजा और पंजाब में मनाते हैं बंदीछोड़ दिवस

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4 घंटे पहले

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  • चतुर्दशी पर बंगाल में बनाया जाता है चौदह तरह का साग, आने वाले मौसम में बीमारियों से बचने के लिए किया जाता है ऐसा

नरक चतुर्दशी यानी रूप चौदस 13 नवंबर की दोपहर करीब 3 बजे से शुरू होकर 14 को दोपहर 2 बजे तक रहेगी। इस पर्व को लेकर देश के कुछ हिस्सों में अलग-अलग परंपराएं हैं। इस दिन गोवा में रूप चतुर्दशी पर नरकासुर राक्षस का पुतला जलाया जाता है और भगवान कृष्ण की पूजा की जाती है। प. बंगाल में इसे काली चौदस या भूत चतुर्दशी कहते हैं। इस दिन काली माता की पूजा की जाती है और चौदह तरह की सब्जियां बनाई जाती हैं। वहीं, पंजाब में चतुर्दशी और दिवाली को बंदीछोड़ दिवस के रूप में मनाते हैं। ये अपने छठे गुरु श्री हर गोबिंद सिंह की याद में मनाते हैं।

गोवा में चतुर्दशी पर किया जाता है नरकासुर वध
गोवा में चतुर्दशी पर शाम को करीब दो हजार से ज्यादा जगह पर नरकासुर के पुतलों को सजाकर सड़कों और गलियों में यात्राएं निकाली जाती है। सबसे ज्यादा भीड़ पणजी के 196 साल पुराने महालक्ष्मी मंदिर में होती है। वहां बड़ा आयोजन किया जाता है। जिसमें नरकासुर के पुतले के साथ कृष्ण का रूप बनाकर चल रहे बच्चे तीर और चक्र से उस पुतले पर हमला कर देते हैं।
इस तरह कई नरकासुर की झांकियां निकलती हैं। उसके बाद नरकासुर के पुतलों को समुद्र में नाव पर रखकर जला दिया जाता है। गोवा की ये परंपरा सालों से चली आ रही है। मान्यता है कि गोवा पहले गोमांतक कहलाता था। यहां का राजा नरकासुर अत्याचारी था। उसने लड़कियों को बंदी बना लिया था।
तब भगवान श्रीकृष्ण ने नरकासुर का वध किया और लड़कियों को छुड़ा लिया। लड़कियां अपने घर लौट आईं तो उन्होंने दीपक जलाए। कहते हैं कि वध करते वक्त नरकासुर का खून भगवान कृष्ण के ऊपर भी पड़ा था। इसके बाद गोवा की महिलाओं ने नारियल के सुगंधित तेल से उन्हें नहलाया था।

प. बंगाल में भूत चतुर्दशी: काली पूजा और चौदह तरह के साग बनाते हैं
पश्चिम बंगाल में दुर्गा पूजा के बाद काली पूजा का महत्व सबसे ज्यादा है। ये पूजा दीपावली से पहले चतुर्दशी की रात में की जाती है। इन्हें बड़ी मां भी कहा जाता है। बड़ी मां पूजा समिति के प्रेसिडेंट भजो भट्‌टाचार्य के मुताबिक वहां 1927 से ये पूजा हो रही है। परगना जिले के नैहाटी की काली पूजा पूरे प्रदेश में मशहूर है। यहां पूरे प्रदेश से लोग मन्नत मांगने आते हैं। बताया जाता है। यहां की गई मन्नत पूरी होती है।
नैहाटी में बड़ी मां की मूर्ति बनाने का काम शुरू होने के बाद ही दूसरी मूर्तियों का काम शुरू होता है। विसर्जन भी सबसे पहले इन्हीं का होता है। बड़ी मां की मूर्ति करीब 21 फीट ऊंची होती है। पूजा से पहले मूर्ति को 60-70 तोला सोना और करीब 150 किलो चांदी के गहनों से सजाया जाता है। भक्त हर साल गहने भी चढ़ाते हैं। इन्हें बैंक लॉकर में रखा जाता है और पूजा वाले दिन सुबह निकाला जाता है। पूजा देर रात से सुबह तक होती है।
रूप चौदस को पश्चिम बंगाल में भूत चतुर्दशी नाम से जाना जाता है। इसे अमावस्या से एक दिन पहले मनाया जाता है। इस दिन काली पूजा की परंपरा है। इस दिन 14 तरह के साग को पानी में भिगोकर रखा जाता है। इस पानी को पूरे घर में छिड़कते हैं। इसके बाद साग बनाकर खाते हैं। माना जाता है कि इसे खाने से आने वाले ठंड के दिनों में शरीर में वात और पित्त जैसे विकार नियंत्रित रहते हैं।

पंजाब में बंदीछोड़ दिवस: स्वर्ण मंदिर को सजाते हैं और आतिशबाजी होती है
सिख धर्म में चतुर्दशी और दिवाली को बंदीछोड़ दिवस के रूप में मनाते हैं। यह त्योहार 1618 से हर साल मनाया जा रहा है। इस दिन सिखों के छठे गुरु श्री हरगोबिंद सिंह जी 52 हिंदू राजाओं को मुगल बादशाह जहांगीर की कैद से मुक्त कराकर सीधे स्वर्ण मंदिर पहुंचे थे। यहां संगत ने सभी राजाओं का स्वागत दीपमाला से किया। तभी से सिख समुदाय दिवाली को बंदीछोड़ दिवस के रूप में मनाता है। इस दिन स्वर्ण मंदिर को सजाते हैं और दीयों से रोशन किया जाता है।
श्री हरगोबिंद साहिब जी को मुगल बादशाह जहांगीर ने ग्वालियर के किले में बंदी बनाकर रखा था। गुरु जी को छुड़वाने के लिए सिखों का एक जत्था श्री आकाल तख्त साहिब से अरदास करके बाबा बुड्‌ढा जी की अगुवाई में ग्वालियर के किले के लिए रवाना हो गया।
सिखों में बढ़ते रोष को देखते हुए साईं मियां मीर जी ने जहांगीर से गुरु जी को छुड़वाने के लिए बात की। जहांगीर राजी हो गया। लेकिन, गुरु जी अड़ गए। उनकी शर्त थी कि वे अकेले नहीं रिहा होंगे। 52 राजपूत राजाओं को भी साथ लेकर जाएंगे। जहांगीर को ये शर्त माननी पड़ी। गुरु जी के रिहा होने पर लोगों ने अपने घरों में दीये जलाए और स्वर्ण मंदिर में खुशियां मनाईं। उसके बाद से यहां हर घर में इस दिन दीये जलाए जाते हैं।

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