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दिव्यांगों को जनगणना में शामिल कराने के लिए आस्था ने अंतरराष्ट्रीय मंच पर उठाई आवाज, यूएन वर्ल्ड डेटा फोरम कॉम्पिटीशन में हासिल किया दूसरा स्थान

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  • Meet Aastha Patwal From Dehradun Who Raised Her Voice On International Platform For Inclusion Of Disabled In Census, Secured Second Place In UN World Data Forum Competition

5 दिन पहले

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उत्तराखंड के देहरादून की रहने वाली 16 साल की एक आस्था पटवाल ने उत्तराखंड के साथ ही पूरे देश का नाम रोशन कर दिया है। अपनी काबिलियत, मेहनत और अपने दृढ़ संकल्प से एक नया मुकाम हासिल करने वाली आस्था आज उन सभी के लिए एक मिसाल बन गई है, जो कमजोरी के आगे हार मान लेते है। बोल और सुन नहीं पाने वाली आस्था ने अपने जैसे कई दिव्यांगों को एक आम नागरिक का दर्जा दिलवाने की जिद के साथ बड़ी कामयाबी हासिल की है। आस्था ने संयुक्त राष्ट्र (यूएन) की प्रतियोगिता में पूरी दुनिया में दूसरा स्थान हासिल किया है। आस्था की बनाई गई एक मिनट की एक वीडियो में उन्होंने एक गंभीर मुद्दे की ओर सबका ध्यान आकर्षित करने की कोशिश की।

दुनिया भर के 15 से 24 साल के युवाओं ने लिया हिस्सा

आस्था भले ही देख और सुन नहीं पातीं मगर फिर भी खुद को एक आम नागरिक का दर्जा दिलाने के लिए उन्होंने अपनी आवाज बुलंद करते हुए अपनी बात रखी। ” यूएन वर्ल्ड डेटा फोरम कॉम्पिटीशन’ में हिस्सा लेते हुए आस्था ने ‘डाटा क्यों जरूरी है’ विषय पर जनगणना में नेत्रहीन और सुनने असमर्थ दिव्यांग जनों की गिनती ना करने के विरोध में अपनी आवाज उठाई। इस कॉम्पिटीशन पूरी दुनिया के 15 से 24 साल के युवाओं ने हिस्सा लिया, जिसमें आस्था ने दूसरा स्थान पाया। जबकि पहले और तीसरे स्थान पर पुर्तगाल के दो युवा रहे हैं। इस प्रतियोगिता का रिजल्ट बीते गुरुवार रात जारी किया गया।

बड़े होकर टीचर बनना चाहती है आस्था

‘किसी को पता नहीं कि हम हैं’ थीम वाले अपने वीडियो के जरिए यह बताया कि दिव्यांग लोगों को भी जनता का हिस्सा मानना जरूरी है। आस्था खुद बोल नहीं सकतीं और ना ही सुन सकती हैं, ऐसे में उन्होंने साइन लेंग्वेज के जरिए वीडियो में कहा कि ” मैं आप सबके के लिए अदृश्य हूं। हमें जनगणना में शामिल भी नहीं किया जाता। आस्‍था के इस वीडियो को सेंस इंडिया नामक अहमदाबाद के NGO ने बनाया और सपोर्ट किया। उनका कहना है कि जनगणना में दिव्यांगों की उपस्थिति होना बेहद जरूरी है। बड़े होकर टीचर बनने की चाह रखने वाली दूसरे बच्चों को इसके लिए जागरूक करना चाहती हैं।

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