May 14, 2024 : 4:39 PM
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सभी से मित्रों की तरह व्यवहार करेंगे तो कई लोगों से मित्रता होगी, इन मित्रों में से कोई एक ऐसा सच्चा मित्र मिलेगा जो बुरे समय में साथ देगा

एक दिन पहले

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  • राजा ने राजकुमार को एक संत के पास शिक्षा ग्रहण करने के लिए भेजा, राजकुमार ने संत से कहा कि मुझे वीर योद्धा बनना है

मित्रों की मदद से हम बड़ी-बड़ी परेशानियों से भी बच सकते हैं। हमें सच्चा मित्र कैसे मिल सकता है, इस संबंध में एक लोक कथा प्रचलित है। कथा के अनुसार पुराने समय में एक राजा ने अपने पुत्र को राज्य के विद्वान संत के पास भेजा, ताकि वह शिक्षा ग्रहण कर सके।

जब राजकुमार संत के पास पहुंचा तो संत ने उससे पूछा कि तुम भविष्य में क्या बनना चाहते हो? राजकुमार ने कहा कि मैं वीर योद्धा बनना चाहता हूं।

संत ने कहा कि इन दोनों शब्दों का अर्थ अलग-अलग है। योद्धा बनने के लिए तुम्हें युद्ध कला सिखना होगी। अस्त्र-शस्त्र का उपयोग सिखना होगा। घुड़सवारी और युद्ध नीति सिखना होगी। वीर बनने के लिए तुम्हें विनम्र बनना पड़ेगा और सभी से मित्रों की तरह व्यवहार करना होगा।

राजकुमार को ये बात समझ नहीं आई। वह राजकुमार है और सभी के साथ मित्रों की तरह कैसे रह सकता है? वह अपने महल वापस आ गया और पिता से कहा कि मुझे गुरु की बात समझ नहीं आई, इसलिए मैं वापस आ गया।

राजा ने उस समय कुछ नहीं कहा। कुछ दिनों बाद राजा और राजकुमार दोनों ही वन में शिकार करने के लिए पहुंचे। वे वन में काफी आगे निकल गए थे। शाम हो गई। रास्ते में राजा की अंगूठी से हीरा निकलकर गिर गया। अंधेरा हो चुका था। हीरा कीमती था, इसीलिए राजा और राजकुमार उसे खोजने की कोशिश करने लगे।

बहुत खोजने के बाद भी हीरा नहीं मिला तो राजकुमार ने अपनी पगड़ी खोली और उसमें वहां की मिट्टी भर ली और वहां से महल की ओर चल दिए। राजा ने उससे पूछा कि तुमने ऐसा क्यों किया, इस मिट्टी का क्या करोगे?

राजकुमार ने जवाब दिया कि अभी रात हो गई है, मिट्टी में हीरा दिखेगा नहीं। इसलिए वहां की सारी मिट्टी भी कपड़े में भर ली है। महल पहुंचकर हम इस मिट्टी में से अपना हीरा खोज लेंगे।

राजा को राजकुमार की बात सही लगी। उसने कहा कि यही बात तो उस दिन तुम्हें संत ने भी कही थी। जब तुम सभी से मित्रता करोगे, तब ही तुम्हें हीरे की तरह कोई एक सच्चा मित्र मिलेगा। जो तुम्हारे साथ हमेशा रहेगा और बुरे समय में तुम्हारी मदद करेगा।

राजकुमार को राजा की बात समझ आ गई। जल्दी ही महल भी पहुंच गए और अगले दिन से राजकुमार संत के पास शिक्षा ग्रहण लगा।

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