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1950 के बाद भारत पर सबसे बड़ी मंदी का संकट; इस साल भारतीय अर्थव्यवस्था में आएगी 9 फीसदी की गिरावट

नई दिल्ली13 घंटे पहले

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  • एजेंसी का कहना है कि कोरोना संक्रमण अब भी अपने पीक पर नहीं पहुंचा है और सरकार पर्याप्त रकम नहीं खर्च कर रही

कोरोना वायरस की वजह पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था की हालत पतली हो गई है। दुनिया के सभी देश इससे जूझ रहे हैं। रेटिंग एजेंसी क्रिसिल ने गुरुवार को कहा है कि वित्त वर्ष 2020-21 में भारत के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में 9 फीसदी की गिरावट आ सकती है।

ऐसा इसलिए क्योंकि कोरोना संक्रमण अब भी अपने पीक पर नहीं पहुंचा है और सरकार पर्याप्त रकम नहीं खर्च कर रही। रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर भारतीय अर्थव्यवस्था में 9 फीसदी की गिरावट आती है तो यह 1950 के बाद अब तक की सबसे बडी गिरावट होगी।

मई में 5 फीसदी की गिरावट की आशंका जाहिर की थी

बता दें कि इसके पहले मई माह में जारी अनुमान में क्रिसिल ने कहा था कि इस वित्त वर्ष में जीडीपी में 5 फीसदी की गिरावट आ सकती है। मई की रिपोर्ट में कहा गया था कि आजादी के बाद यह चौथी और उदारीकरण के बाद यह पहली मंदी है जो कि सबसे भीषण है। आजादी के बाद इससे पहले 3 बार अर्थव्यवस्था मंदी की चपेट में आई थी। लेकिन कोरोना वायरस लॉकडाउन के चलते अर्थव्यवस्था को बहुत बड़ा झटका लगा है।

दूसरी तिमाही में 12 फीसदी की गिरावट

भारत सरकार द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार इस वित्त वर्ष की पहली यानी जून तिमाही में जीडीपी में 23.9 फीसदी की जबरदस्त गिरावट आई है। क्रिसिल का अनुमान है कि अक्टूबर में खत्म होने वाली इस वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में इकोनॉमी में 12 फीसदी की गिरावट आ सकती है।

सरकार के राहत पैकेज का असर नहीं

गौरतलब है कि कोरोना संकट और लॉकडाउन से लोगों, कारोबार को राहत देने के लिए सरकार ने करीब 20 लाख करोड़ रुपए के राहत पैकेज की घोषणा की थी, लेकिन क्रिसिल का कहना है कि नया खर्च जीडीपी का 2 फीसदी भी नहीं है। एजेंसी ने कहा कि अब तक महामारी का चरम स्तर देखने को नहीं मिला है और सरकार सीधे तौर पर पर्याप्त राजकोषीय समर्थन नहीं दे रही है। इससे हमारे पूर्व के अनुमान की तुलना में और गिरावट का जोखिम और मजबूत हो गया है।

इकोनॉमी को सहयोग देने में खर्च नहीं कर पा रही सरकार

क्रिसिल ने कहा है कि अपनी राजकोषीय स्थिति की वजह से सरकार इकोनॉमी को समर्थन देने के लिए अधिक खर्च नहीं कर पा रही है। अब तक आर्थिक वृद्धि को लेकर उठाए गए नीतिगत उपायों का असर कुछ सेक्टर्स को छोड़कर बहुत अधिक देखने को नहीं मिला है। क्रिसिल ने अपने रिपोर्ट में कहा है कि अगर कोरोना महामारी सितंबर-अक्टूबर में अपने पीक पर पहुंचता है तो इस वित्त वर्ष के आखिर तक जीडीपी वृद्धि दर सकारात्मक अंकों में प्रवेश कर सकती है।

9 से 15 फीसदी गिरावट का आंकड़ा

ग्लोबल रेटिंग और रिसर्च एजेंसी गोल्डमैन सैश ने भारतीय अर्थव्यवस्था में भारी गिरावट का अनुमान जताया है। एजेंसी के मुताबिक वित्त वर्ष 2020-21 के लिए इकॉनमी में 14.8 फीसदी की भारी गिरावट का अनुमान है। इससे पहले एजेंसी ने 11.8 फीसदी की गिरावट का अनुमान दिया था। गोल्डमैन सैश का कैलेंडर ईयर 2020 में 11.1 फीसदी की गिरावट का अनुमान है, जबकि इससे पहले 9.6 फीसदी के गिरावट का अनुमान था। इसके अलावा फिच रेटिंग्स और इंडिया रेटिंग ने भी चालू वित्त वर्ष के लिए जीडीपी ग्रोथ में भारी गिरावट का अनुमान जताया है।

मानसून के कारण 3 बार आई मंदी

मौजूदा डेटा के मुताबिक, पिछले 69 साल में देश केवल 3 बार मंदी की चपेट में आया है। फिस्कल ईयर 1957-58, 1965-66 और 1979-80…में देश को मंदी का सामना करना पड़ा था। इन 3 सालों में मानसून की वजह से मंदी आई है। जिससे खेती बाड़ी पर काफी असर पड़ा। जिससे अर्थव्यवस्था का बड़ा हिस्सा प्रभावित हुआ। क्रिसिल का मानना है कि ये मंदी उन पिछली 3 मंदी से अलग है। इसमें मानसून की तरफ से कोई झटका नहीं है। लिहाजा कृषि मामले में राहत है।

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