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संसद में पेश बिल में कहा- शी जिनपिंग को राष्ट्रपति न कहा जाए, उन्हें जनता ने नहीं चुना; चीन में लोकतंत्र भी नहीं

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वॉशिंगटनएक घंटा पहले

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अमेरिकी संसद में एक बिल पेश किया गया है। इसमें कहा गया है कि चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग लोकतांत्रिक तौर पर नहीं चुने गए हैं और न ही चीन में लोकतंत्र है। लिहाजा, जिनपिंग को अमेरिका में राष्ट्रपति के तौर पर संबोधित किया जाना बंद हो। (शी जिनपिंग- फाइल)

  • ट्रम्प की रिपब्लिकन पार्टी के सांसद स्कॉट पैरी ने संसद में एक बिल पेश किया है
  • इसमें कहा गया- जिनपिंग लोकतांत्रिक तौर पर नहीं चुने गए, लिहाजा- वे तानाशाह हैं

अमेरिकी संसद में एक बिल पेश किया गया है। इसमें कहा गया है कि अमेरिका में सरकारी तौर पर शी जिनपिंग को चीन का राष्ट्रपति यानी प्रेसिडेंट नहीं कहा जाना चाहिए। बिल के मुताबिक, चीन में लोकतंत्र नहीं है और न ही, जिनपिंग लोकतांत्रिक तरीके से चुने गए हैं। लिहाजा, अमेरिका उन्हें राष्ट्रपति कहना बंद करे।

तकनीकी तौर पर बिल में कही गई हर बात सही है। दरअसल, 1980 के पहले किसी चीनी शासन प्रमुख को प्रेसिडेंट यानी राष्ट्रपति नहीं कहा जाता था। इतना ही नहीं, चीन के संविधान में भी ‘राष्ट्रपति या प्रेसिडेंट’ शब्द नहीं है।

‘चेयरमैन ऑफ एवरीथिंग’
2012 में जिनपिंग राष्ट्रपति बने। यह पद उन्हें चाइनीज कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) के मुखिया होने के चलते मिला। संवैधानिक तौर पर देखें तो सीसीपी का चेयरमैन ही सरकार और सेना का प्रमुख होता है। लेकिन, जिनपिंग के मामले में ऐसा नहीं है। सीएनएन के मुताबिक, जिनपिंग ही सत्ता और पार्टी का एकमात्र केंद्र हैं। वे पार्टी की नई सुपर कमेटीज के चेयरमैन भी हैं। इसलिए, इंटरनेशनल एक्सपर्ट्स उन्हें ‘चेयरमैन ऑफ एवरीथिंग’ यानी ‘हर चीज का अध्यक्ष’ कहते हैं। ये एक तरह से तानाशाह होना ही है।

अमेरिका में लाए गए बिल में क्या है
ट्रम्प की पार्टी के सांसद स्कॉट पैरी ये बिल लाए। नाम दिया गया, ‘नेम द एनिमी एक्ट’। पैरी चाहते हैं कि जिनपिंग या किसी चीनी शासक को अमेरिका के सरकारी दस्तावेजों में न राष्ट्रपति कहा जाए और न लिखा जाए। बिल के मुताबिक- चीन में राष्ट्रपति जैसा कोई पद नहीं है। वहां कम्युनिस्ट पार्टी का जनरल सेक्रेटरी (महासचिव) होता है। और जब हम उसे राष्ट्रपति कहते हैं तो ऐसा लगता है, जैसे कोई व्यक्ति लोकतांत्रिक तौर पर चुना गया हो। चीन में तो लोकतंत्र नहीं है।

फिर सच्चाई क्या है..
इसे आसान भाषा में समझते हैं। दरअसल, जिनपिंग को ‘राष्ट्रपति’ कहे जाने पर भ्रम है। और इसीलिए विवाद भी हुए। चीन में जितने भी पदों पर जिनपिंग काबिज हैं, उनमें से किसी का टाईटिल ‘प्रेसिडेंट’ नहीं है। और न ही चीनी भाषा (मेंडेरिन) में इस शब्द का जिक्र है। 1980 में जब चीन की इकोनॉमी खुली, तब चीन के शासक को अंग्रेजी में प्रेसिडेंट कहा जाने लगा। जबकि, तकनीकि तौर पर ऐसा है ही नहीं। जिनपिंग सीसीपी चीफ हैं। इसलिए देश के प्रमुख शासक हैं। लेकिन, वे राष्ट्रपति तो बिल्कुल नहीं हैं। बस उन्हें ‘प्रेसिडेंट’ कहा जाने लगा।

सवाल क्यों उठते हैं…
स्कॉट पैरी के पहले भी अमेरिका में यह मांग उठती रही है कि कम से कम आधिकारिक तौर पर तो चीन के शासक को राष्ट्रपति या प्रेसिडेंट संबोधित न किया जाए। आलोचक कहते हैं- जिनपिंग ही क्यों? चीन के किसी भी शासक को राष्ट्रपति कहने से यह संदेश जाता है कि वो लोकतांत्रिक प्रतिनिधि है, और इंटरनेशनल कम्युनिटी को उन्हें यही मानना चाहिए। जबकि, हकीकत में वे तानाशाह हैं।

बात 2019 की है। तब यूएस-चाइना इकोनॉमिक एंड सिक्योरिटी रिव्यू कमीशन की एक रिपोर्ट में कहा गया था- चीन में लोकतंत्र नहीं है। मतदान का अधिकार नहीं है और न बोलने की आजादी है। जिनपिंग को राष्ट्रपति कहना उनकी तानाशाही को मान्यता देना है।

जिनपिंग के ओहदे
चीन में जिनपिंग के पास तीन अहम पद हैं। स्टेट चेयरमैन (गुओजिया झुक्शी)। इसके तहत वे देश के प्रमुख शासक हैं। चेयरमैन ऑफ द सेंट्रल मिलिट्री कमीशन (झोंगयांग जुन्वेई झुक्शी)। इसके मायने हैं कि वे सभी तरह की चीनी सेनाओं के कमांडर इन चीफ हैं। तीसरा और आखिरी पद है- जनरल सेक्रेटरी ऑफ द चाईनीज कम्युनिस्ट पार्टी या सीसीपी (झोंग शुजि) यानी सत्तारूढ़ पार्टी सीसीपी के भी प्रमुख। 1954 के चीनी संविधान के मुताबिक, अंग्रेजी में चीन के शासक को सिर्फ चेयरमैन कहा जा सकता है।

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