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ब्रह्मवैवर्त पुराण कहता है देवकार्य से भी ज्यादा महत्वपूर्ण है पितृकार्य, अन्य ग्रंथों में लिखा है श्रद्धा से किया गया दान ही कहलाता है श्राद्ध

4 घंटे पहले

  • श्राद्ध के लिए जरूरी नहीं है मुंडन, संतान जीवित न हो तो विधवा पत्नी भी कर सकती है श्राद्ध

धर्म ग्रंथों में मनुष्यों पर 3 तरह के ऋण बताए गए हैं। जो कि देव, ऋषि और पितृऋण हैं। पूजा-पाठ, हवन और जप-तप से देव और ऋषि ऋण तो चुकाया जा सकता है, लेकिन पितृऋण श्राद्ध कर्म के बिना नहीं चुका सकते। इसलिए अश्विन महीने के शुरुआती 16 दिनों में पितरों के लिए तर्पण, पिंडदान, हवन पूजन और ब्राह्मण भोजन करवाया जाता है।

  • हिंदू कैलेंडर के आश्विन महीने के कृष्णपक्ष को पितृपक्ष या श्राद्ध कहते हैं। भाद्रपद पूर्णिमा से आश्विन महीने की अमावस्या तक 16 दिन का श्राद्धपक्ष होता है। इस बार 2 सितंबर से श्राद्धपक्ष शुरू हो रहा है, जो कि 17 सितंबर को सर्वपितृ अमावस्या के साथ खत्म होगा। जिस तिथि में माता-पिता या पूर्वज की मृत्यु हुई हो, पितृपक्ष की उसी तिथि में श्राद्ध करना चाहिए। जिस तिथि पर हमारे परिजनों की मृत्यु होती है उसे श्राद्ध की तिथि कहते हैं। स्मृति ग्रंथों और पुराणों में बताया गया है कि श्राद्ध के लिए मुंडन करवाना जरूरी नहीं होता।

श्रद्धा से किया गया दान ही श्राद्ध
ब्रह्मपुराण के अनुसार शास्त्रों में बताये गये नियम से श्रद्धा पूर्वक पितरों के उद्देश्य से ब्राह्मणों को दिया हुआ दान श्राद्ध कहलाता है। वहीं अन्य ग्रंथों के अनुसार मृत माता-पिता या पूर्वजों की तृप्ति के लिए श्रद्धा से किया गया अन्न, जल या किसी भी तरह का दान ही श्राद्ध कहलाता है। श्राद्ध का अधिकार पुत्र को है, लेकिन अगर पुत्र जीवित न हो तो पोते, पड़पोते या विधवा पत्नी भी श्राद्ध कर सकती है। पुत्र के न होने पर पत्नी का श्राद्ध पति भी कर सकता है।

ब्रह्मवैवर्त पुराण: देवकार्य से भी ज्यादा महत्वपूर्ण है पितृकार्य
ब्रह्मपुराण के अनुसार विधि-विधान से श्राद्ध करने पर ब्रह्मा से लेकर सभी देवी-देवता और पितृ प्रसन्न होते हैं। नागरखण्ड के अनुसार श्राद्ध कर्म कभी व्यर्थ नही होता | ब्रह्मवैवर्तपुराण के अनुसार देवकार्य से भी ज्यादा महत्वपूर्ण पितृकार्य होता है। देवताओं से पहले पितरों को तृप्त करना चाहिए। श्राद्ध करने से कुल मे वीर, निरोगी, लंबी उम्र वाली और प्रसिद्धि पाने वाली संतान उत्पन्न होती हैं।

कैसे करें श्राद्ध
पूर्वज की मृत्यु तिथि पर पानी में कच्चा दूध मिलाकर उसमें जौ, तिल, चावल और फूल भी डाल लें। फिर हाथ में कुशा घास रख लें। इसके बाद पूर्व या उत्तर दिशा में मुंहकर के पितरों के लिए वो सभी चीजों से मिला जल हाथ में लेकर अंगूठे से किसी बर्तन में गिराए। इसके बाद भोजन बनाएं। फिर गाय, कुत्ते और कौवे को खीर-पूड़ी खिलाएं। फिर एक, तीन या पांच ब्राह्मणों को भोजन करवाएं और दक्षिणा दें। इतना करने से ही पितृऋण उतर जाता है।

किस दिन किसका श्राद्ध
पंचमी श्राद्ध- कुंवारे लोगों का श्राद्ध पंचमी तिथि पर करने का विधान है।
नवमी श्राद्ध – इसे मातृनवमी भी कहते हैं। इस तिथि पर श्राद्ध करने से कुल की सभी दिवंगत महिलाओं का श्राद्ध हो जाता है।
चतुर्दशी श्राद्ध- श्राद्ध की इस तिथि को परिवार के उन लोगों का श्राद्ध होता है जिनकी अकाल मृत्यु यानी दुर्घटना, हत्या, आत्महत्या या किसी शस्त्र से मृत्यु हुई हो।
सर्वपितृ अमावस्या- जिन लोगों को अपने परिजनों की मृत्यु तिथि याद नहीं हो वो लोग इस तिथि पर अपने पूर्वजों का श्राद्ध कर सकते हैं।

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