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गणेश जी को प्रिय है दूर्वा; अफ्रीकन देवता एशु की पूजा में भी होता है दूब का इस्तेमाल, भारत में करीब तीन हजार सालों से औषधि के तौर पर हो रहा इसका उपयोग

एक घंटा पहले

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  • विटामिन ए का सोर्स है दूर्वा, कई तरह की शारीरिक और मानसिक बीमारियों में कारगर है इसका इस्तेमाल
  • गुरु नानक साहब ने कहा था दूर्वा की तरह हमेशा जमीन से जुड़े रहना चाहिए

दूर्वा घास को दूब भी कहा जाता है। इस बरमूडा घास को भारत में पवित्र माना जाता है। क्योंकि दूर्वा घास के साथ ही भगवान गणेश की पूजा की जाती है। इसलिए गणेश चतुर्थी के 4 दिन बाद भाद्रपद महीने के शुक्लपक्ष की अष्टमी तिथि पर दूर्वाष्टमी व्रत किया जाता है। ये व्रत 26 अगस्त को किया जाएगा। इस दिन भगवान गणेश को दूर्वा चढ़ाने की विशेष परंपरा है। कुछ विद्वानों के अनुसार इसी तिथि पर भगवान गणेश ने अनलासुर को निगल लिया था और उनके पेट में गर्मी बढ़ने से उन्हें दूर्वा खिलाई गई। इसलिए गणेश जी को दूर्वा चढ़ाने की परंपरा चली आ रही है।

  • दूर्वा का उपयोग पूजा-पाठ के अलावा आयुर्वेद में भी खासतौर से किया जाता है। कुछ वैज्ञानिकों ने इस पर रिसर्च भी की है। उनके अनुसार सिनोडोन डैक्टाइलीन नाम की इस घास में एन्टीइन्फ्लेमेटरी, एन्टीसप्टिक और एन्टीवायरल प्रॉपर्टी है। जो कई तरह की बीमारियों में कारगर होती हैं।

अफ्रीका के योरूबा धर्म में होता है दूर्वा का उपयोग
वैदिक काल से दूर्वा हिंदू रीति-रिवाजों का हिस्सा रही है। भारत में दूर्वा का धार्मिक और औषधिय दोनों ही तरह का महत्व है। अपने औषधिय गुणों के कारण यह घास करीब 3,000 सालों से अस्तित्‍व में है। भारत के अलावा इसका उपयोग यूनान, रोम और अफ्रीका के कुछ हिस्सों में भी किया गया है। अफ्रीका के देवता भगवान एशु की पूजा में योरूबा धर्म के लोग भी दूर्वा का उपयोग करते हैं। इसलिए इसे योरूबा हर्ब भी कहा जाता है। इसके अलावा प्राचीन यूनान और रोमन साम्राज्‍य के दौरान और मध्‍यकाल में इसे औषधि के रूप में उपयोग किया गया था।

औषधिय महत्व
आयुर्वेद में दूर्वा को त्रिदोष हरने वाली औषधि माना गया है। हालांकि इसकी तासिर ठंडी है लेकिन फिर भी इसका उपयोग वात, पित्त और कफ रोगों में किया जाता है। दूर्वा का उपयोग पुरुषों की कमजोरी दूर करने वाली कुछ दवाइयों में भी किया जाता है। स्त्री रोगों में भी ये घास औषधी के रूप में उपयोग की जाती है। इसलिए ग्रंथों में इसे अनंता, गौरी, महौषधि, शतपर्वा और भार्गवी भी कहा गया है। दूर्वा विटामिन ए और बहुत अच्छा सोर्स है। इस घास में एन्टीइन्फ्लेमेटरी, एन्टीसप्टिक और एन्टीवायरल प्रॉपर्टी है। जो कई तरह की बीमारियों में कारगर होती हैं। पेट की बीमारियों में भी इसके उपयोग से राहत मिलती है।

दूर्वा के बिना अधूरे हैं कर्मकांड और मांगलिक काम
हिन्दू संस्कारों और कर्मकाण्ड में इसका उपयोग खासतौर से किया जाता है। हिन्दू मान्यताओं में दूर्वा घास प्रथम पूजनीय भगवान श्रीगणेश को बहुत प्रिय है। इसलिए किसी भी तरह की पूजा और हर तरह के मांगलिक कामों में दूर्वा को सबसे पहले लिया जाता है। इस पवित्र घास के बिना, गृहप्रवेश, मुंडन और विवाह सहित अन्य मांगलिक काम अधूरे माने जाते हैं। भगवान गणेश की पूजा में दो, तीन या पाँच दुर्वा अर्पण करने का विधान तंत्र शास्त्र में मिलता है।

गुरुनानक साहब ने कहा दूर्वा के जैसे ही रहे
दूर्वा घास जमीन से ऊंची नहीं उठती, बल्कि जमीन पर ही फैली हुई रहती है। इसलिए इसकी नम्रता को देखकर गुरु नानक साहब ने कहा है कि किस तरह रहें ये बात दूब से सीखना चाहिए। उन्होंने कहा कि दूब की तरह जमीन से ही जुड़े रहना चाहिए। ज्यादा उंचा नहीं उठना चाहिए। क्योंकि दूसरी घास बड़ी होने के कारण या तो कट जाती है या सूख जाती है लेकिन दूर्वा हमेशा एक जैसी ही रहती है।

नानक साहब का वचन – नानकनी चाहो चले, जैसे नीची दूब और घास सूख जाएगा, दूब खूब की खूब।

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