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कोरोना ने बढ़ाईं दुनिया के 46 करोड़ मूक-बधिरों, दृष्टिहीनों की मुश्किलें; मास्क-डिस्टेंसिंग बने रोड़ा, मानसिक तनाव भी

  • दृष्टिहीन छूकर तो मूक-बधिर होठों के इशारे से करते हैं बात, मास्क की वजह से दिक्कतें
  • उनका कहना है कि महामारी ने हमारी जिंदगी पूरी तरह पलटकर रख दी है

डेरिक ब्रायसन टेलर

Jun 06, 2020, 05:44 AM IST

वॉशिंगटन. दुनियाभर में कोरोना से 67 लाख से ज्यादा लोग संक्रमित हो चुके हैं, जबकि 3.90 लाख से ज्यादा की मौत हो चुकी है। कोरोना की वजह से उन लोगों की दिक्कतें बढ़ गई हैं, जो दिव्यांग हैं और छोटे-छोटे कामों के लिए दूसरों पर निर्भर हैं। जहां दृष्टिहीन छूकर चीजों को समझ पाते हैं, वहीं मूक-बधिर इशारों, चेहरे के हाव-भाव और होठों की हलचल से संवाद करते हैं।

लेकिन, संक्रमण फैलने से रोकने के मास्क, सोशल डिस्टेंसिंग और अन्य उपायों ने दुनियाभर में ऐसे 46 करोड़ लोगों की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। ये मानसिक परेशानियों से भी जूझ रहे हैं। अमेरिका में ऐसे 3.7 करोड़ लोग हैं। कैलिफोर्निया के कॉम्पटन में रहने वाली एश्लीया हेज भी इन्हीं में से एक हैं। वे कहती हैं, “हर तरफ दहशत का माहौल है। इसने मेरी चिंताएं बढ़ा दी हैं। महामारी ने हमारी जिंदगी पूरी तरह पलट दी है।”

‘मास्क के कारण किसी से बात करना भी मुश्किल’

न्यूयॉर्क के जेम्सविले में रहने वाली ग्रेस कोगन सुन नहीं सकतीं। वे कहती हैं, “हर जगह मास्क में ढंके चेहरे हैं, किसी से बात करना मुश्किल हो गया है। लगता है हम अब दुनिया से और दूर हो गए हैं।” ऐसे ही मैडी बताती हैं, “मास्क की वजह से अस्पष्ट चेहरे और भीड़ में उनकी पहचान मानसिक रूप से चुनौतीपूर्ण हो गया है। अब यह न्यू नॉर्मल है तो डर है कि मेरे जैसे लोग और हाशिए पर चले जाएंगे।”

सेंट लुईस में काउंसलर मिशेल कहती हैं, “इनके लिए व्यावहारिक समस्याएं पैदा हो गई हैं। इनमें 90% लोग होठों की हलचल से संवाद करते हैं। गाइड, कोच हाथ पकड़कर चीजों को पहचानना और खुद की बात रखना सिखाते हैं। ऐसे में इनकी दिक्कतें बढ़ जाएंगी।”

भारत में 2 करोड़ से ज्यादा आबादी दृष्टिहीन और मूक-बधिर लोगों की
भारत में 2 करोड़ से ज्यादा लोग दृष्टिहीन और मूक-बधिर हैं। राष्ट्रीय दृष्टिहीनता एवं दृष्टिबाधित सर्वे 2019 के मुताबिक देश में करीब 1.8 करोड़ लोग दृष्टिबाधित हैं, जबकि 42 लाख के करीब मूक-बधिर हैं। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के मुताबिक दुनियाभर में इन असामान्यताओं के इलाज और देखभाल पर सालाना 5.62 लाख करोड़ रु.खर्च होते हैं।

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