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मलयालम कैलेंडर के पहले महीने में मनाया जाता है केरल में ओणम पर्व, 10 दिनों तक चलता है ये उत्सव

3 दिन पहले

  • माना जाता है करीब 1 हजार साल पुराना है ओणम पर्व, इस उत्सव से जुड़े अभिलेखों से पता चलता है 800 ईस्वी में मनाया गया था ये त्योहार

ओणम महोत्सव की शुरुआत मलयालम नववर्ष चिंगम महीने की शुरुआत के 4 से 5 दिन बाद ही हो जाती है। 10 दिनों के इस पर्व में फसलों की कटाई होती है। जगह-जगह पर मेले लगते हैं। इन दिनों में तरह-तरह के पकवान बनाए जाते हैं। घरों की सफाई और सजावट होती हैं। घरों के बाहर रंगोली बनाई जाती है। इस महोत्सव के दौरान खासतौर से स्नेक बोट रेस का आयोजन किया जाता है। जिसे वल्लम कली कहा जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार केरल में राजा महाबली के समृद्ध और खुशहाल राजकाल की याद में ये 10 दिन का महोत्सव मनाया जाता है। यह माना जाता है इन दिनों वो पाताल से पृथ्वी पर अपनी प्रजा को देखने आते हैं।

करीब 1 हजार साल पुराना है ओणम उत्सव
माना जाता है कि ओणम की शुरुआत करीब 1 हजार साल पहले हुई थी। इस उत्सव से जुड़े जो अभिलेख मिले हैं वो 800 ईस्वी के हैं। उस समय ओणम उत्सव पूरे महीने चलता था। ये केरल का महत्वपूर्ण पर्व है। ये त्योहार फसलों की कटाई से जुड़ा है। शहर में इस त्योहार को सभी समुदाय के लोग साथ मनाते हैं। ये पर्व मलयालम कैलेंडर के पहले महीने चिंगम के शुरुआती दिनो में मनाया जाता है। ओणम उत्सव चार से दस दिनों तक चलता है जिसमें पहला और दसवां दिन सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण होता है।

त्रिक्काकरा वामन मंदिर से शुरू होता है ओणम
ओणम पर्व वैसे तो किसानो का पर्व है पर इसे पूरे केरल में मनाया जाता है। इसे हर साल राजा महाबली के स्वागत में मनाया जाता है। जो दस दिनों तक चलता है। ये उत्सव कोच्ची के पास त्रिक्काकरा के वामन मंदिर से शुरू होता है। ओणम में हर घर के आंगन में फूलों की पंखुड़ियों से सुन्दर रंगोलियां बनाई जाती हैं। जिन्हें पूकलम कहा जाता है। युवतियां उन रंगोलियों के चारों तरफ गोला बनाकर नृत्य करती हैं। इसे तिरुवाथिरा कलि कहते हैं। रंगोली का आकार पहले दिन छोटा होता है लेकिन हर रोज इसमें फूलों का एक और गोला बढ़ा दिया जाता है। इस तरह बढ़ते बढ़ते दसवें दिन यानी तिरुवोनम पर यह पूकलम बड़ा हो जाता है। इस फूल की रंगोली के बीच में त्रिक्काकरप्पन यानी वामन अवतार में भगवान विष्णु, राजा महाबली तथा उनके अंग रक्षकों की मूर्तियां होती हैं जो कि कच्ची मिटटी से बनी होती हैं।

वामन अवतार की कथा
सतयुग में असुर बलि ने देवताओं को हराकर स्वर्गलोक पर अधिकार कर लिया था। इसके बाद देवता भगवान विष्णु से मदद मांगने पहुंचे। तब विष्णुजी ने देवमाता अदिति के गर्भ से वामन रूप में अवतार लिया। इसके बाद एक दिन राजा बलि यज्ञ कर रहा था, तब वामनदेव बलि के पास गए और तीन पग धरती दान में मांगी।
शुक्राचार्य के मना करने के बाद भी राजा बलि ने वामनदेव को तीन पग धरती दान में देने का वचन दिया। इसके बाद वामनदेव ने विशाल रूप किया। एक पग में धरती और दूसरे पग में स्वर्ग नाप लिया। तीसरा पैर रखने के लिए कोई स्थान नहीं बचा तो बलि ने वामन देव को खुद के सिर पर पैर रखने को कहा।
वामनदेव ने जैसे ही बलि के सिर पर पैर रखा, वह पाताल लोक पहुंच गया। बलि की दानवीरता से खुश होकर भगवान ने उसे पाताल लोक का स्वामी बना दिया और सभी देवताओं को उनका स्वर्ग लौटा दिया।

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