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CBSE की बची परीक्षा के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका, बच्चों की सुरक्षा पर सवाल उठाते हुए पैरेंट्स ने की परीक्षा रद्द करने की मांग

  • 1 जुलाई से 15 जुलाई के बीच आयोजित होंगे CBSE के बचे सभी पेपर
  • अब तक हुए पेपर और बचे पेपर में आंतरिक आकलन के आधार पर रिजल्ट जारी करने की मांग

दैनिक भास्कर

Jun 11, 2020, 01:38 PM IST

कोरोना के बढ़ते लगातार तेजी से बढ़ रहे मामलों के बीच पैरेंट्स ने सेंट्रल बोर्ड ऑफ सेकेंडरी एजुकेशन (CBSE) के 12वीं क्लास के बचे पेपर आयोजित ना कराने की अपील की है। अभिभावकों के मुताबिक देश में कोरोनावायरस तेजी से फैल रहा है, ऐसे में एग्जाम देने से बच्चों के लिए खतरा पैदा हो सकता है। इस मामले में पैरेंट्स की तरफ से दायर की गई याचिका में मांग की गई है कि 12वीं के बचे हुए बोर्ड एग्जाम कराने का जो फैसला सीबीएसई ने लिया है, उसे रद्द किया जाए। 

1 जुलाई से शुरू हो रही परीक्षा

दरअसल, कोरोनावायरस के कारण देशभर में मार्च में लगे लॉकडाउन की वजह से सभी स्कूल-कॉलेज भी बंद कर दिए गए थे। ऐसे में लॉकडाउन के दौरान तब बोर्ड के कुछ पेपर बच गए थे। CBSE ने अब इन बचे सभी पेपर को 1 जुलाई से 15 जुलाई के बीच आयोजित कराने जा रहा है। बोर्ड के इसी फैसले के खिलाफ 12वीं के कुछ बच्चों के माता-पिता ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई है। याचिका के मुताबिक 12वीं क्लास के लिए अब तक हुए पेपर और बचे पेपर में आंतरिक आकलन के औसत के आधार पर रिजल्ट जारी कर दिया जाए। 

परीक्षा रद्द करने की मांग

इसके अलावा याचिका में लाखों बच्चों की सुरक्षा पर सवाल उठाते हुए यह भी कहा गया है कि परीक्षा में शामिल होने की स्थिति में ये छात्र कोविड-19 संक्रमण की चपेट में आ सकते हैं। ऐसे में कोर्ट से अपील की गई है कि शेष विषयों की परीक्षा आयोजित करने के लिए CBSE की ओर से 18 मई को जारी हुई अधिसूचना रद्द को किया जाए और बोर्ड को इसी के आधार पर 12वीं के नतीजे घोषित करने का निर्देश दिया जाएं।

विदेशों में रद्द CBSE की परीक्षा

इतना ही नहीं याचिका पर सुनवाई होने तक बोर्ड की अधिसूचना पर रोक लगाने का भी अनुरोध किया गया है। दायर याचिका में यह भी तहा गया है कि कोविड-19 के कारण बने हालातों की गंभीरता को देखते हुए बोर्ड ने विदेशों में स्थित करीब 250 स्कूलों में 10वीं और 12वीं की परीक्षा रद्द कर दी थी। जिसके बाद प्रैक्टिकल परीक्षाओं के अंकों या आंतरिक आकलन के आधार पर छात्रों को अंक देने का निर्णय लिया था।

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