May 3, 2024 : 1:11 PM
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हमारे पर्यावरण को दिल का दौरा पड़ रहा है; अगर हम फसलों में पेस्टीसाइड न डालें, भोजन फेंकने और उसके ट्रांसपोर्ट से बचें तो समस्या 50% खत्म हो सकती है

दुनिया दशकों से जलवायु परिवर्तन से जूझ रही है। लेकिन, दुनियाभर का नेतृत्व इसका समाधान निकालने में विफल रहा है। इसलिए अब आम आदमी को इस समस्या को अपने हाथ में लेना होगा। ऐसे में बड़ा सवाल खड़ा होता है कि आखिर आम आदमी क्या करे? मेरे हिसाब से समस्या जितनी बड़ी है, उसका समाधान उतना ही आसान है। आम आदमी को सिर्फ दो काम करने हैं- पहला, समस्या को समझना है। दूसरा, इस समस्या की जड़ पर प्रहार करना है। इसे ऐसे समझिए…

समस्या: हम जहरीले रसायन से हरियाली लाने को हरित क्रांति मान रहे हैं

वातावरण में करीब 50% ग्रीन हाउस गैसों की वजह भोजन उगाने का तरीका और भोजन की बर्बादी है।

  • बुनियादी समस्या ‘जलवायु परिवर्तन’ नाम में है। अगर किसी को दिल का दौरा पड़े तो हम यह नहीं कहते कि दिल बदल रहा है। जलवायु को दिल का दौरा पड़ा है और हम उसे क्लाइमेट चेंज कह रहे हैं। यह क्लाइमेट ब्रेकडाउन है। वातावरण में हानिकारक ग्रीन हाउस गैसें (कार्बन डाइऑक्साइड) बढ़ रही हैं। इससे धरती का तापमान बढ़ रहा है। सूखा, बाढ़ और तूफान की बढ़ती घटनाएं इसी का नतीजा हैं।
  • समाज प्रकृति के साथ जिस तरह का व्यवहार कर रहा है, पर्यावरण की बुनियादी समस्या उसी वजह से है। क्योंकि, प्रकृति हवा, पानी, जल, जंगल जैसी बहुमूल्य सेवा के लिए हमें बिल नहीं भेजती है। इसलिए हम उसकी कद्र नहीं कर रहे हैं। कोयला और तेल (फॉसिल फ्यूल) के इस्तेमाल के अलावा खेती और खानपान के हमारे तौर-तरीकों से भी ग्रीन हाउस गैसें बढ़ रही हैं।
  • मसलन खेती में कीटनाशकों का इस्तेमाल बेतहाशा बढ़ गया है और हम इसे हरित क्रांति मान बैठे हैं। इससे जमीन बंजर हो रही है। फसल में जहर घुल रहा है और लोग इसे खाकर बीमार हाे रहे हैं। दूसरी तरफ हम खाने को बर्बाद कर रहे हैं। अमेरिका जैसे देशों में तो लोग आधा खाना फेंक देते हैं। यह ट्रेंड भारत समेत पूरी दुनिया में बढ़ रहा है।
  • एक अनुमान के मुताबिक, दुनिया में कुल बने खाने का एक तिहाई हिस्सा फेंका जाता है। खाना सड़ने से बड़ी मात्रा में ग्रीनहाउस गैसें निकलती हैं। ग्रीन हाउस गैसों का 50% उत्सर्जन खराब खेती, फसलों के ट्रांसपोर्ट और खाने की बर्बादी की वजह से है। हम जंगल खत्म कर रहे हैं, जो कार्बन डाइऑक्साइड सोखते हैं। यह और घातक है।

समाधान: वही खाएं जो आसपास उगे, खाली जमीन में पेड़ लगाएं

पेड़ जमीन के कपड़े और इंसानों के लिए स्वस्थ रहने की ढाल हैं। ये पर्यावरण व मौसम को हमारे लायक बनाते हैं।

  • किसान को अपनी जमीन से प्यार करना होगा और रसायन वाली खेती छोड़नी होगी। आखिर जंगलों में भी तो पेड़-पौधे बिना रसायन के उगते ही हैं। आम आदमी को भी किसानों से कीटनाशक रहित अनाज, फल और सब्जी की मांग करनी चाहिए। क्योंकि जब तक मांग नहीं होगी, तब तक किसान पैदा नहीं करेंगे।
  • हमें अपने आसपास होने वाले मौसमी फल-सब्जियां और अनाज का इस्तेमाल करना चाहिए। खाने-पीने की बाहर से मंगाई गई चीजें महंगाई बढ़ाती हैं। यह धारणा बिल्कुल गलत है कि जो चीज महंगी है, वो पौष्टिक भी होगी।
  • पेड़ जमीन के कपड़े और इंसानों के लिए स्वस्थ रहने की ढाल हैं। खाली जमीन पर, खास तौर पर नदियों-तालाबों के आस-पास बड़े और चौड़े पत्तों के पेड़ लगाएं। इससे जमीन में नमी रहेगी। हवा भी शुद्ध होगी।
  • पर्यावरण बचाने के लिए हमें आपको प्रकृति के पास जाना होगा। प्रकृति से हमें सबकुछ उपहार मेंं मिल रहा है, इसलिए हम उसकी कद्र नहीं करते। आज किसानों को फसल का उत्पादन बढ़ाने के लिए मधुमक्खियां किराए पर लेनी पर पड़ रही हैं। हमें अपने वातावरण में पल रहे अन्य जीव-जंतुओं की कद्र करना सीखना होगा।
  • भारत में समुदाय एक ताकतवर पूंजी है, जो दुनिया में बहुत कम देशों के पास है। लोगों को सहभागी बनाकर जल, जंगल, जमीन का संरक्षण बेहद आसानी से किया जा सकता है। लोगों को पर्यावरण की चिंता मिलजुलकर करनी होगी।

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वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फंड के प्रेसीडेंट पवन सुखदेव के मुताबिक, आम आदमी को सिर्फ दो काम करने हैं- पहला, समस्या को समझना है। दूसरा, इस समस्या की जड़ पर प्रहार करना है।

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