- अफगानिस्तान के मैटरनिटी हॉस्पिटल में मंगलवार को हुए आतंकी हमले में 24 लोगों की मौत हुई थी
- मरने वालों में ज्यादातर नवजातों की माएं शामिल, एक-दो दिन के बच्चों की पहचान भी मुश्किल हुई
दैनिक भास्कर
May 14, 2020, 06:36 PM IST
काबुल. अफगानिस्तान के काबुल में बारची मैटरनिटी हॉस्पिटल में मंगलवार को हुए आतंकी हमले में 24 लोग मारे गए थे। इसके बाद सुरक्षाबलों ने आतंकियों को भी ढेर कर दिया था। नरसंहार खत्म होने के बाद जब शवों को मिलाया गया तो हमले की सबसे भयावह तस्वीर सामने आई। 18 नवजात बच्चे, जिनमें से कई खून से लथपथ थे और अब बिना मां के थे। पैदा होने के बाद उन्होंने अभी अस्पताल भी नहीं छोड़ा था और उनका सामना एक आतंकी हमले से हो चुका था। वैसे तो अफगानिस्तान कई सालों से हिंसा में जकड़ा हुआ है, लेकिन मंगलवार को हुआ हमला क्रूरता की हद पार कर गया।
बच्चों के पास ही मांओं की हत्या हो गई
इन 18 बच्चों में सबसे बड़ा पांच दिन का है और सबसे छोटा हमले के वक्त ही पैदा हुआ है। इन दोनों की माएं हमले में बच गईं। बाकी बच्चे ऐसे हैं, जिनके इस दुनिया में आए मुश्किल से 24 घंटे हुए थे और उनकी मांओं की उनके पास ही हत्या कर दी गई। हॉस्पिटल में हमले के तुरंत बाद ही बच्चों की पहचान करने और उन्हें उनके परिवारों से मिलाने का काम शुरू किया गया।
हॉस्पिटल से एक बुजुर्ग खून से सना हुआ और जन्म देने वाली मांओं की सूची लेकर आया तो दर्जनों लोग इकट्ठा हो गए। अफगानिस्तान के रूढ़िवादी समाज में किसी की पत्नी का नाम सार्वजनिक रूप से लिया जाए तो लोग उसे अपमान समझते हैं। लेकिन, अब बच्चों की पहचान उनकी मां के नाम से ही होनी थी क्योंकि अभी तक बच्चों के नाम नहीं रखे गए थे। बुजुर्ग ने जोर से पुकारा ‘‘सुराया का बच्चा’’ उसने दोबारा पुकारा ‘‘गुल मकाई का बच्चा’’ इसके बाद वह मांओं के नाम पुकारकर उनके बच्चे की जानकारी देता रहा।
बुधवार सुबह अतातुर्क हॉस्पिटल में, वार्ड में इनक्यूबेटरों में सुराया और गुल मकाई के बच्चे एक-दूसरे के बगल में थे। सुराया इब्राहिम मर चुकी थी। उसे दफना दिया गया था। वहीं, गुल मकाई अपने बच्चे के पास थी उसके पैर में एक बड़ा घाव था। सुराया इब्राहिम का यह पांचवां बच्चा था। उसके रिश्तेदार ने बताया कि 31 साल की सुराया सेना में अफसर थी। वह मिनिस्ट्री ऑफ डिफेंस के हेडक्वार्टर में सार्जेंट के पद पर तैनात थी।
वहीं, 35 साल की गुल मकाई एक हाउसवाइफ है। उसका पति एक टैक्सी ड्राइवर है। यह उनका सातवां बच्चा था। उसे सांस लेने में कुछ समस्या थी, इसलिए वह पांच दिनों से अस्पताल में थी। गुल मकाई ने बताया कि जब हमला शुरू हुआ तो कमरे में उसके अलावा दो और माएं थीं। उनके सामने दुविधा की स्थिति आ गई। वे समझ नहीं पाईं कि उन्हें बच्चों के बिना भागना चाहिए या वहीं रुकना चाहिए। कमरे में केवल महिलाएं ही थीं। वहां उनके परिवार को कोई नहीं था। कोरोना के संक्रमण को देखते हुए मां और उसके बच्चे के पास किसी को भी नहीं जाने दिया गया था।
बच्चे को अकेला छोड़ भागकर बचाई जान
गुल मकाई ने बताया कि वह कमरे से भाग निकली। दूसरी दो माएं वहीं रुक गईं और मारी गईं। वह किसी तरह खिड़की से कूदकर बाहर के दालान और फिर सड़क पर आ गई। इस दौरान उसे चोट भी आई। उसे समझ नहीं आ रहा था कि क्या करे? उसके पास कोई फोन नहीं था और उसे अपने पति का नंबर भी याद नहीं आ रहा था।
गुल मकाई ने एक मोटरसाइकिल को रोका और घटना बताई और उसे अपने घर ले जाने की विनती की। वहां से उसने अपने पति अजीजुल्लाह को फोन कर बताया कि वह सुरक्षित है, लेकिन बच्चे का क्या हुआ यह नहीं मालूम ?
अजीजुल्लाह दर्जनों दूसरे पिता और भाइयों के साथ अस्पताल के बाहर खड़ा रहा और मिलिट्री ऑपरेशन खत्म होने का इंतजार करता रहा। कई घंटों तक गुल मकाई और अजीजुल्लाह को अपने बच्चे के बारे में कोई सूचना नहीं मिली। गुल मकाई ने बताया कि इतनी देर तक वह केवल जोरों से रोती ही रही।
अस्पताल के बाहर जब मांओं की सूची पढ़ रहे बुजुर्ग ने जोर से आवाज देकर कहा कि गुल मकाई के बच्चे को अतातुर्क अस्पताल ले जाया गया है तो उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। वे जब अतार्तुक अस्पताल पहुंचे तो वहां उनका बच्चा गुलाबी आस्तीन और छाती पर पीले कार्टून वाली एक शर्ट पहने हुए सो रहा था। यह देखकर उन्हें बहुत सुकून मिला।
बच्चों को गोद लेने वालों की भीड़ लग गई
बुधवार दोपहर होते ही अस्पताल में दर्जनों ऐसी महिलाएं जमा हो गई जो बच्चों को गोद लेना चाहती थी। वे सभी से घूम-घूम कर पूछ रही थीं कि कोई उन्हें बच्चा देगा। वहीं, एक बुजुर्ग गुलाम सखी अपने नाती को लेने हॉस्पिटल लेने आया था। उसने एक रात पहले ही हमले में मारी गई अपनी बेटी को दफनाया था। जब कई महिलाओं ने उससे बच्चे को गोद लेने के बारे में पूछा तो वह चीखने लगा। उसने कहा, ‘‘खुदा का खौफ खाओ, तुम इंसान हो या नहीं? ऐसा नहीं है कि पूरे परिवार का कत्ल हो गया है और बच्चों के पास कोई नहीं बचा है।’’
अंत में बुधवार दोपहर तक 11 बच्चों को उनके परिवारों को सौंप दिया गया था और बाकियों की पहचान के लिए प्रयास जारी थे। हॉस्पिटल में दूसरी ओर 20 साल की एक युवती रो रही थी। वह अपनी बहन का बच्चा लेने आई थी। बहन हमले में मारी गई और उसका पति सेना में गजनी प्रांत में तैनात है। अस्पताल प्रशासन ने उस युवती को बच्चा देने से मना कर दिया था। उन्होंने कहा जब तक बच्चे का पिता नहीं आएगा किसी और बच्चा नहीं मिलेगा।
अजीजुल्लाह भी अस्पताल से अपने बीवी बच्चों को लेकर घर के लिए चल निकला था। उसने अपनी टैक्सी की पीछे वाली सीट पर गुल मकाई को लिटा दिया और उसकी एक रिश्तेदार बच्चे को लेकर बैठ गई। बात करते हुए उसका गला भर आया। उसने कहा, ‘‘यह केवल मेरी पत्नी ही नहीं, मेरी हीरो भी है।’’
हमले की अभी तक किसी ने जिम्मेदारी नहीं ली
अस्पताल में हुए हमले की जिम्मेदारी अभी तक किसी संगठन ने नहीं ली है। हमले का तरीका इस्लामिक स्टेट (आईएस) जैसा है। अतीत में भी वह कमजोर नागरिकों को निशाना बनाता रहा है, लेकिन पूरे अफगानिस्तान में तालिबान के खिलाफ गुस्सा उबल रहा है। तालिबान लगातार संघर्ष विराम के लिए सहमत होने से इनकार कर रहा है और दूसरे आतंकी समूह भी इसका फायदा उठा रहे हैं। देश के नेताओं ने स्थिति को बदतर बना दिया है। देश का राजनीतिक ढांचा चरमराया हुआ है। राष्ट्रपति अशरफ गनी के साथ उनके प्रतिद्वंदी अब्दुल्ला-अब्दुल्ला ने खुद को राष्ट्रपति घोषित कर दिया है।
अमेरिका तालिबान शांति समझौते का कोई असर नहीं
माना जा रहा था कि फरवरी में अमेरिका और तालिबान में हुए शांति समझौते से हिंसा कम होगी। चार दशकों से जारी रक्तपात समाप्त होगा, लेकिन यह समझौता कैदियों की अदला-बदली पर अटका हुआ है और घोंघे की चाल से बढ़ रहा है। इस दौरान तालिबान देशभर में हमले कर रहा है, जहां दर्जनों लोग मारे गए हैं।