- अर्जुन का रथ श्रीकृष्ण चला रहे थे और स्वयं शेषनाग ने रथ के पहियों को पकड़ रखा था, ताकि दिव्यास्त्रों के प्रहार से भी रथ पीछे न खिसके
दैनिक भास्कर
May 24, 2020, 12:25 PM IST
महाभारत में कौरव सेना में भीष्म पितामह, द्रोणाचार्य, कर्ण जैसे महारथी थे। इसीलिए दुर्योधन को लग रहा था कि वह आसानी से पांडवों को युद्ध में हरा देगा, लेकिन पांडव पक्ष में श्रीकृष्ण स्वयं थे। वे अर्जुन के सारथी बने और युद्ध शुरू होने से पहले श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा कि हनुमानजी से प्रार्थना करो और अपने रथ के ऊपर ध्वज के साथ विराजित करो। श्रीकृष्ण की बात मानकर अर्जुन ने ऐसा ही किया। जानिए अर्जुन के रथ से जुड़ी एक प्रचलित कथा…
कथा के अनुसार अर्जुन का रथ श्रीकृष्ण चला रहे थे और स्वयं शेषनाग ने रथ के पहियों को पकड़ रखा था, ताकि दिव्यास्त्रों के प्रहार से भी रथ पीछे न खिसके। अर्जुन के रथ की रक्षा श्रीकृष्ण, हनुमानजी और शेषनाग कर रहे थे। जब युद्ध समाप्त हो गया तो अर्जुन ने श्रीकृष्ण से कहा कि पहले आप रथ से उतरिए मैं आपके बाद उतरूंगा। तब श्रीकृष्ण ने कहा कि नहीं अर्जुन पहले तुम उतरो।
भगवान की बात मानकर अर्जुन रथ से उतर गए, इसके बाद श्रीकृष्ण भी रथ उतर गए। शेषनाग पाताल लोक चले और हनुमानजी रथ के ऊपर से अंतर्ध्यान हो गए। जैसे ही ये सब उतर गए तो अर्जुन के रथ में आग लग गई। थोड़ी ही देर में रथ पूरी तरह जल गया। ये देखकर अर्जुन हैरान गए। उन्होंने श्रीकृष्ण से पूछा कि भगवान ये कैसे हुआ?
श्रीकृष्ण ने कहा कि ये रथ तो भीष्म पितामह, द्रोणाचार्य और कर्ण के दिव्यास्त्रों के प्रहारों से पहले ही खत्म हो चुका था। इस रथ पर हनुमानजी विराजित थे, मैं स्वयं इसका सारथी था, इस वजह ये रथ सिर्फ मेरे संकल्प की वजह से चल रहा था। अब इस रथ का काम पूरा हो चुका है। इसीलिए मैंने ये रथ छोड़ दिया और ये भस्म हो गया है।