जिला अदालत ने पिछले दिनों एक दर्जन मामलों में न्यायालय उठने तक की सजा सुनाई। यह तरीका सबक सिखाने की मंशा से अपनाया गया। इस तरह के आदेशे उन मामलों में सुनाए जा रहे हैं, जिनमें अपराध की प्रकृति गंभीर नहीं है। इस तरीके से दोनों पक्षों को इंसाफ दिया जा रहा है। जिसकी गलती होती है, उसे पूरा दिन अदालत में खड़े रहने का दर्द झेलना पड़ता है। साथ ही दूसरे पक्ष को अपने साथ किए गए अनुचित का अनुतोष भी मिल जाता है। न्याय की यह एक वैकल्पिक व्यवस्था है। इसकी काफी चर्चा हो रही है। इससे अनजाने में हुए अपराध को भविष्य में न दोहराने का संकल्प प्रगाढ़ होता है।यह सुधारवादी कदम है, जो कि सराहनीय है।
प्रथम श्रेणी न्यायिक दंडाधिकारी मोना शुक्ला की अदालत ने लापरवाही पूर्वक गाड़ी चलाने के आरोपित जबलपुर निवासी पंकज खत्री उर्फ सन्नी को न्यायालय उठने तक की सजा सुनाई। साथ ही 500 रुपये का जुर्माना भी लगाया।अभियोजन की ओर से सहायक जिला लोक अभियोजन अधिकारी जमना प्रसाद धुर्वे ने पक्ष रखा। उन्होंने दलील दी कि फिरियादी सुनील चौधरी सब इंजीनियर के पद पर कार्यरत है। 28 मार्च, 2010 को सुबह साढ़े 11 बजे वह घर से आफिस जाने के लिए मोटर साइकिल से निकला। इसी दाैरान घमापुर चौक के आगे एक कार गुजरी। उसे आरोपित चला रहा था। उसने तेज रफतार व लापरवाही पूर्वक कार चलाते हुए से चलाकर मोटर साइकिल को पीछे से टक्कर मार दी।इस वजह से फरियादी मोटर साइकिल सहित सड़क पर गिर गया। उसके बाएं हाथ के पंजे व कलाई में चोट आई।