April 27, 2024 : 7:44 AM
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रूस ने फिर जीता भारत का भरोसा, अमेरिका को लेकर बढ़ा शक़

रूस

भारत की विदेश नीति में पहले सोवियत यूनियन की काफ़ी तवज्जो रही और जब यूएसएसआर बिखरा तो रूस की भी अहमियत उसी तरह से कायम रही.

शीत युद्ध के वक़्त जब दुनिया सोवियत यूनियन और अमेरिका के नेतृत्व में दो खेमों बँटी थी तब भी भारत गुटनिरपेक्ष में होने के बावजूद वैचारिक रूप से यूएसएसआर के ही क़रीब था.

इसी महीने 1971 में भारत और पाकिस्तान के बीच 13 दिनों का युद्ध हुआ था. यह युद्ध पूर्वी पाकिस्तान में उपजे मानवीय संकट के कारण हुआ था. इस युद्ध के बाद ही पूर्वी पाकिस्तान बांग्लादेश बना. इससे पहले भारत पूरी दुनिया को पूर्वी पाकिस्तान में पश्चिमी पाकिस्तान के आधिपत्य को लेकर समझाने की कोशिश कर रहा था.

पूर्वी पाकिस्तान से भारी संख्या में शरणार्थी भारत आ रहे थे. पश्चिमी और पूर्वी पाकिस्तान के बीच बिना कोई राजनीतिक समाधान के उम्मीद नज़र नहीं आ रही थी. तब सोवियत यूनियन एकमात्र देश था, जिसने भारत की सुनी.1971 के अगस्त महीने में भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने ‘इंडिया-सोवियत ट्रीटी ऑफ़ पीस, फ़्रेंडशिप एंड कोऑपरेशन’ पर हस्ताक्षर किया.

इस समझौते के तहत सोवियत यूनियन ने भारत को आश्वस्त किया कि युद्ध की स्थिति में वो राजनयिक और हथियार दोनों से समर्थन देगा.

मॉस्को भारत के लिए एक विश्वसनीय साझेदार रहा है. दूसरी तरफ़ अमेरिका भारत की तुलना में पाकिस्तान को तवज्जो देता रहा है.

पूर्वी पाकिस्तान में जब संकट पैदा हुआ तो अमेरिका ने इसकी उपेक्षा की थी. विश्लेषकों का कहना है कि तब अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार हेनरी किसिंजर चीन से रिश्ते आगे बढ़ाने में पाकिस्तान को अहम पार्टनर के तौर पर देखते थे.

लेकिन भारत और रूस की दोस्ती की शुरुआत का साल 1971 नहीं था बल्कि नेहरू के काल में भी सोवियत यूनियन भारत की विकास के कई मोर्चों पर मदद कर रहा था.

जानकारों के मुताबिक़ हाल के दिनों में एक बार फिर से रूस और भारत के रिश्तों में इस हद तक गर्मजोशी आई है कि अमेरिका तक की मोदी सरकार ने उपेक्षा कर दी.

इसी महीने छह दिसंबर को रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन भारत के दौरे पर आए थे. पुतिन की विदेश नीति पर नज़र रखने वालों ने इसे काफ़ी अहमियत दी.

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