प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीते मंगलवार को अलीगढ़ में कहा कि उत्तर प्रदेश में योगी सरकार आने के बाद से अपराध में भारी कमी आई है.
उन्होंने कहा, “एक दौर था जब यहां शासन प्रशासन गुंडों और माफ़ियाओं की मनमानी से चलता था. लेकिन अब वसूली करने वाले माफ़िया राज चलाने वाले सलाख़ों के पीछे हैं.
मैं पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लोगों को विशेष तौर पर याद दिलाना चाहता हूं कि इसी क्षेत्र में चार पांच साल पहले, परिवार अपने ही घरों में डरकर जीते थे. बहन बेटियों को घर से निकलने में स्कूल कॉलेज जाने में डर लगता था. जब तक बेटियां घर वापस न आएं तब तक माता-पिता की सांसें अटकी रहती थीं.
जो माहौल था. उसमें कितने ही लोगों को अपना पुश्तैनी घर छोड़ना पड़ा, पलायन करना पड़ा, आज यूपी में कोई अपराधी ऐसा करने से पहले सौ बार सोचता है.”
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी अपराध कम करने की दिशा में अपनी सरकार के काम गिनाते हुए कहा है कि “पहले हमारी बहनें और बेटियां सुरक्षित नहीं थीं, यहां तक कि बैल भी सुरक्षित नहीं थे. आज ऐसा नहीं है.”
लेकिन सपा नेता और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दावों पर सवाल उठाया है.
उन्होंने कहा है कि “अगर प्रधानमंत्री ने ऐसा कहा है तो उन्हें डायल 100 का डेटा मंगाना चाहिए. उन्हें देखना चाहिए कि उत्तर प्रदेश में अपराध कौन बढ़ा रहा है और कम से कम मुख्यमंत्री जी को निर्देश देकर जाएं कि टॉप टेन माफ़िया उत्तर प्रदेश के कौन हैं?”
आंकड़ों की बात करें तो राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के मुताबिक़, पिछले चार सालों में उत्तर प्रदेश में अपराध बढ़ने की दर में कमी आई है.
चूंकि पीएम मोदी से लेकर सीएम योगी और पूर्व सीएम अखिलेश यादव के बीच आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला महिलाओं के ख़िलाफ़ अपराधों को लेकर जारी है.
ऐसे में बीबीसी ने इन्हीं आंकड़ों के आधार पर ये समझने की कोशिश की है कि योगी सरकार में उत्तर प्रदेश में महिलाओं के ख़िलाफ़ अपराधों की संख्या अखिलेश सरकार की तुलना में घटी है या बढ़ी है और राजनीतिक बयानों से परे आंकड़े ज़मीनी स्थिति के बारे में क्या जानकारी देते हैं.
साल 2014 से 2020 तक क्राइम बढ़ा या घटा?
एनसीआरबी के डेटा पर नज़र डालें तो साल 2014 से लेकर साल 2019 तक उत्तर प्रदेश में महिलाओं के ख़िलाफ़ अपराधों के दर्ज मामलों की संख्या बेहद तेज़ी से बढ़ती दिखाई देती है.
साल 2014 में जहां महिलाओं के ख़िलाफ़ अपराध के 38,467 मामले दर्ज किए गए.
वहीं, साल 2016 में ये आंकड़ा 49,262 और साल 2017 में 56 हज़ार के पार पहुंच जाता है.
इसके बाद अगले दो साल में महिलाओं के ख़िलाफ़ किए गए अपराधों की संख्या बढ़कर 60 हज़ार के क़रीब पहुंच जाती है.
लेकिन साल 2020 के आंकड़ों में ये संख्या घटकर 49 हज़ार रह जाती है.
अगर दोनों सरकारों के चौथे सालों यानी 2016 की तुलना 2020 से की जाए तो दोनों सरकारों में महिलाओं के ख़िलाफ़ अपराध में ज़्यादा अंतर नज़र नहीं आता
क्योंकि 2016 में ये आंकड़ा 49,262 था तो 2020 तक ये आंकड़ा क़रीब साठ हज़ार की ऊंचाई छूकर वापस 49,385 तक पहुंच जाता है.
जघन्य अपराधों के दर्ज मामलों में स्पष्ट कमी
अगर महिलाओं के ख़िलाफ़ अंजाम दिए गए सबसे जघन्य अपराधों जैसे बलात्कार, सामूहिक बलात्कार, अग़वा किए जाने से लेकर पोक्सो आदि मामलों में अपराध के ग्राफ़ पर नज़र डालें तो एक दिलचस्प बात नज़र आती है.
जहां एक ओर उत्तर प्रदेश में महिलाओं के ख़िलाफ़ किए गए कुल अपराधों की संख्या बढ़ती हुई नज़र आ रही थी. वहीं, जघन्य अपराधों के आंकड़े में मामूली ही सही, लेकिन गिरावट देखने को मिल रही है.
उदाहरण के लिए, साल 2016 में उत्तर प्रदेश में गैंग-रेप के दर्ज किए गए मामलों की संख्या 682 थी जो कि 2020 तक घटकर 271 रह गयी, यानी इसमें लगभग 60 फ़ीसदी की कमी हुई.
इसी तरह साल 2016 में दर्ज किए गए रेप के मामलों की तुलना अगर 2020 के आंकड़ों से करें तो 43 फ़ीसदी की कमी नज़र आती है.
महिलाओं को अगवा किए जाने पर दर्ज किए गए मामलों में भी 2020 के आंकड़ों में 2016 की तुलना में 30 फ़ीसदी की कमी नज़र आती है. हालांकि, उत्तर प्रदेश में पिछले कुछ सालों में पोक्सो के तहत दर्ज किए जाने वाले मामलों में बढ़ोतरी दिखाई पड़ती है.साल 2016 में जहां पोक्सो क़ानून के तहत 4954 मामले दर्ज किए गए थे, वहीं साल दर साल बढ़ते हुए 2020 तक इनकी संख्या 6716 तक पहुंच चुकी है और साल 2019 में उत्तर प्रदेश में कुल 7444 मामले दर्ज किए गए.
इस तरह 2016 की तुलना में 2020 के आंकड़ों में पोक्सो क़ानून के तहत दर्ज किए गए मामलों में 36 फ़ीसदी की बढ़त स्पष्ट रूप से नज़र आती है.
क्या ज़मीनी हकीक़त बयां करते हैं आंकड़े?
लेकिन क्या इन आंकड़ों के आधार पर ये कहा जा सकता है कि उत्तर प्रदेश में महिलाएं पहले की अपेक्षा ज़्यादा सुरक्षित महसूस करती हैं और क्या पीएम मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का उत्तर प्रदेश में महिलाओं के ख़िलाफ़ अपराध कम करने का दावा सही है?
इन सवालों के जवाब देना ज़रा मुश्किल है क्योंकि अपराध से जुड़े आंकड़ों से ज़मीनी स्थिति की जानकारी मिलना तभी संभव है जब अपराधों की शिकायत दर्ज कराना सहज हो और पिछले कुछ सालों में योगी सरकार पर हाथरस से लेकर कई दूसरे मामलों में एफ़आईआर दर्ज करने में देरी करने के आरोप लग चुके हैं.
अखिलेश यादव ने इन दावों के जवाब में लिखा है कि, “भाजपा सरकार के राज में नारी पर अत्याचार व उत्पीड़न की प्रतीक ‘हाथरस की बेटी’ के साथ हुए अन्याय का एक वर्ष पूरा हुआ, पर न्याय अभी भी नहीं मिला. उप्र की एक भी बेटी, बहन, माँ, बहू भाजपा सरकार को कभी माफ़ नहीं करेगी. अब जनता ही इंसाफ़ करेगी, भाजपा को साफ़ करेगी.