झारखंड विधानसभा ने एक विधेयक को मंज़ूरी दी है जिसमें निजी कंपनियों में 75 प्रतिशत नौकरियां स्थानीय युवाओं के लिए आरक्षित होंगी.
इसके लिए कोई प्रतियोगिता परीक्षा नहीं होगी. ये बहालियां कंपनियों की तय न्यूनतम अहर्ता के आधार पर की जाएंगी. यह बाध्यता प्रति माह 40 हज़ार रुपये तक की नौकरियों के लिए होगी.
विधानसभा में इस बिल को सर्वसम्मत से मंजूरी हासिल हुई.
यह क़ानून उन कंपनियों पर भी लागू होगा, जो सरकार के लिए कर्मचारियों की आउटसोर्सिंग करती हैं. पूर्णतः सरकारी नियुक्तियां इसके दायरे में नहीं आएंगी. उन पर पहले से चली आ रही आरक्षण नीतियां लागू होंगी.
ये जानकारी झारखंड के श्रम व रोजगार मंत्री सत्यानंद भोक्ता ने दी है.
उन्होंने कहा, “इसका लाभ स्थानीय युवाओं को मिलेगा और राज्य में रोज़गार बढ़ेगा. ये बिल पिछले बजट सत्र में ही विधानसभा में लाया गया था, चर्चा के दौरान कई सदस्यों ने इसमें संशोधन के प्रस्ताव दिए थे. तब विधानसभा अध्यक्ष ने यह विधेयक प्रवर समिति (सिलेक्ट कमेटी) को भेज दिया था.
सत्यानंद भोक्ता ने कहा कि उसके लिए ज़रूरी नियमावली तैयार करने के लिए एक कमेटी बनायी जाएगी.
विधेयक में क्या है?
‘निजी क्षेत्रों में स्थानीय उम्मीदवारों का नियोजन विधेयक 2021’ के मुताबिक़ यह क़ानून 10 या 10 से अधिक व्यक्तियों का नियोजन करने वाली उन सभी संस्थाओं पर लागू होंगी, जिन्हें सरकार मान्यता देती है.
मतलब, अगर आप 10 लोगों की भी नियुक्तियां करते हैं, तो इनमें 75 प्रतिशत नियुक्तियां स्थानीय युवाओं की होंगी. यह आरक्षण संबंधित ज़िले के सभी जातियों और वर्गों के लिए होगा.
अगर किसी ज़िले में रोज़गार के अवसर उपलब्ध नहीं होंगे, तो युवाओं को पड़ोस के ज़िले में भी रोज़गार मिल सकेगा.
इसके लिए कंपनियों को उम्मीदवारों की प्रतीक्षा सूची भी बनानी होगी. इसमें कोताही बरतने वाली कंपनियों पर पांच लाख रुपये तक का जुर्माना भी लगाया जा सकेगा.
प्रवर समिति के सदस्य रहे माले विधायक विनोद सिंह ने बताया कि बहाली के वक्त प्राइवेट कंपनियों को उन उम्मीदवारों का विशेष ध्यान रखना होगा, जिनका परिवार किसी उद्योग के कारण विस्थापित हुआ है.
प्रवर समिति के एक और सदस्य और बीजेपी विधायक रामचंद्र चंद्रवंशी ने कहा कि यह विधेयक राज्य के युवाओं के हित में है, इसलिए मैं इसके समर्थन में हूं.
स्थानीय की परिभाषा क्या?
विधानसभा में इस विधेयक पर चर्चा के दौरान मुख्य विपक्षी भारतीय जनता पार्टी के नीलकंठ सिंह मुंडा और आजसू पार्टी के प्रमुख और पूर्व उपमुख्यमंत्री सुदेश महतो ने कहा कि सरकार को इस विधेयक को पारित कराने से पहले यह बताना चाहिए कि झारखंड में स्थानीय कौन हैं इसे कैसे समझा जाएगा. क्योंकि, इस विधेयक में स्थानीय को परिभाषित नहीं किया गया है.
इसका जवाब देते हुए मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा कि “हमारी सरकार आदिवासी-मूलवासी को रोज़गार देने के लिए कटिबद्ध है. हम स्थानीय लोगों को रोज़गार के अवसर उपलब्ध कराना चाहते हैं.”
उन्होंने कहा, “इस दिशा में अभी एक क़दम बढ़ाया गया है. हमारी सरकार जल्द ही नियोजन और स्थानीय नीति भी बनाएगी. इसके बाद सारे भ्रम दूर हो जाएंगे. हमारी मूलभावना झारखंड के लोगों को उनका हक़ और रोज़गार देने की है. इसमें कोई बाधा नहीं आने दी जाएगी.
विधेयक पारित, कुछ काम बाक़ी
झारखंड सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न ज़ाहिर करने की शर्त पर बताया कि इस विधेयक के अनुपालन को लेकर कोई संशय नहीं होना चाहिए. उन्होंने कहा कि हर क़ानून बनाने की एक प्रक्रिया होती है और इसमें वक्त लगता है.
उन्होंने बताया कि इसकी नियमावली बनाने के लिए जल्द ही एक कमेटी बनायी जाएगी, जो अगले छह महीने के अंदर इसका प्रारुप तय करेगी.
उन्होंने कहा, “इसके बाद श्रम विभाग का एक डेडिकेटेड पोर्टल बनाया जाएगा. यहां काम करने वाली निजी कंपनियों और राज्य के युवाओं को इस पोर्टल पर जाकर अपना रजिस्ट्रेशन कराना होगा. उसके आधार पर ही आरक्षण का लाभ दिया जा सकेगा. इसकी निगरानी के लिए ज़िला स्तर पर भी एक कमेटी बनायी जाएगी. स्थानीय विधायक, उप विकास आयुक्त और अंचलाधिकारी भी उसके सदस्य होंगे.”
निजी क्षेत्रों में स्थानीय युवाओं के लिए आरक्षण का प्रावधान झारखंड से पहले इसी साल जून में हरियाणा ने किया था. वहीं 2019 में आंध्र प्रदेश ने सबसे पहले यह व्यवस्था लागू की थी.