May 4, 2024 : 12:50 AM
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शरिया क़ानून पर क्या सोचती हैं ये महिलाएं

तालिबान ने अफ़ग़ानिस्तान में अपने पिछले शासनकाल के दौरान महिलाओं का दमन किया था. महिलाओं को पढ़ने और काम करने की आज़ादी नहीं थी. उन्हें सार्वजनिक क्षेत्र में किसी भी तरह की भागीदारी की अनुमति भी नहीं थी.

इस बार तालिबान ने कहा कि महिलाओं को शरिया या इस्लामी क़ानून के तहत अधिकार दिए जाएंगे. लेकिन ये अधिकार क्या होंगे, इसको लेकर अभी स्थिति स्पष्ट नहीं है.

शरिया क़ानून इस्लामी धार्मिक मान्यताओं पर आधारित प्रावधान हैं, जिनमें नमाज़ पढ़ना, रोज़ा रखना और ग़रीबों की मदद करना वगैरह शामिल है.

यह एक क़ानून व्यवस्था भी है. शरिया क़ानूनों के तहत इस्लामी अदालतों की सज़ा की कठोरता को लेकर मानवाधिकार समूह लगातार आलोचना भी करते रहे हैं. लेकिन दुनिया भर में शरिया क़ानून अलग-अलग ढंग से काम करते हैं.

राजनीतिक तौर पर पाबंदियां भले हों लेकिन शरिया क़ानून अपनाने वाले देशों में महिलाओं की स्थिति उतनी भी बुरी नहीं है जितनी तालिबान के पहले शासनकाल में देखने को मिली थी.

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