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कोविड का साइड इफेक्ट:डायबिटीज की महामारी ला सकता है कोरोना, संक्रमण के बाद 35% मरीजों का ब्लड शुगर 6 माह तक बढ़ा रहता है; हालत नाजुक होने का खतरा बढ़ता है

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7 घंटे पहले

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  • अमेरिका के बॉस्टन चिल्ड्रेंस हॉस्पिटल की रिसर्च में शोधकर्ताओं ने किया दावा

महामारी की शुरुआत से एक्सपर्ट कह रहे हैं कि डायबिटीज के मरीजों में कोरोना होने का खतरा ज्यादा है। ऐसे मरीज रिस्क जोन में है। अब अमेरिकी में हुई नई रिसर्च कहती है, कोरोना से संक्रमित होने के बाद स्वस्थ लोगों में डायबिटीज के नए मामले सामने आ रहे हैं। ये ऐसे लोग हैं जिन्हें इससे पहले डायबिटीज की शिकायत नहीं थी।

551 मरीजों पर हुई रिसर्च
अमेरिका के बॉस्टन चिल्ड्रेंस हॉस्पिटल की हालिया रिसर्च कहती है, इटली में मार्च और मई 2020 के बीच कोरोना के 551 मरीज भर्ती हुए। इनमें से 46 फीसदी मरीजों में संक्रमण के बाद से ब्लड शुगर बढ़ा हुआ पाया गया। इनमें हायपरग्लायसीमिया की शुरुआत हुई। 35 फीसदी मरीजों में करीब 6 महीने बाद भी ब्लड शुगर बढ़ा हुआ पाया गया।

कैसे हालत बिगड़ती है, इसे समझें

  • शोधकर्ताओं का कहना है, कोरोना होने पर सामान्य लोगों के मुकाबले, हाई ब्लड शुगर वाले मरीजों की हालत ज्यादा बिगड़ती है। इन्हें लम्बे समय तक हॉस्पिटल में भर्ती रहना पड़ता है। ऑक्सीजन की अधिक जरूरत पड़ती है। वेंटिलेशन का ज्यादा ख्याल रखना पड़ता है।
  • नेचर मेटाबॉलिज्म जर्नल में पब्लिश रिसर्च के मुताबिक, हायपर ग्लाइसीमिया के मरीजों में हार्मोन का स्तर भी एब्नॉर्मल हो गया था। इनमें इंसुलिन हार्मोन का स्तर बहुत ज्यादा बढ़ गया था।
  • शोधकर्ता फियोरिना कहती हैं, यह पहली स्टडी है जो बताती है कि कोविड का सीधा असर पेन्क्रियाज पर होता है। यह सीधा संकेत है कि पेन्क्रियाज भी कोरोना वायरस का टार्गेट है।

4 पॉइंट से समझिए कोविड-19 और डायबिटीज का कनेक्शन

  • स्वस्थ लोगों में ऐसे बढ़ता है खतरा: एसएमएस हॉस्पिटल जयपुर के डायबिटोलॉजिस्ट डॉ. प्रकाश केसवानी का कहना है कि कोविड-19 का वायरस सीधे पेंक्रियाज में मौजूद इंसुलिन बनाने वाली बीटा कोशिकाओं को संक्रमित कर सकता है। बीटा कोशिकाओं के डैमेज होने पर मरीजों में इंसुलिन बनने की कैपेसिटी कम हो जाएगी। ऐसे में जो स्वस्थ हैं उनमें भी नई डायबिटीज का खतरा बढ़ेगा।
  • टाइप-1 डायबिटीज भी हो सकती है: कई बार संक्रमण ज्यादा गंभीर होता है, ऐसी स्थिति में टाइप-1 डायबिटीज या डायबिटिक कीटोएसिडोसिस भी हो सकता है। डायबिटिक कीटोएसिडोसिस उस स्थिति को कहते हैं जब इंसुलिन की बहुत अधिक कमी के कारण शरीर में शुगर का लेवल ज्यादा बढ़ जाता है।
  • स्ट्रेस भी एक फैक्टर है: अगर किसी में डायबिटीज की शुरुआत हुई है और उसे नहीं मालूम है, इस दौरान वायरस का संक्रमण होता है तो स्ट्रेस के कारण भी नई डाइबिटीज विकसित हो सकती है।
  • इसलिए डायबिटिक लोगों को खतरा ज्यादा: डायबिटीज के रोगियों में हर संक्रमण का खतरा ज्यादा होता है। ऐसे रोगियों में इम्यून सिस्टम की कोशिकाओं (लिम्फोसाइट्स, न्यूट्रोफिल्स) की कार्य क्षमता कम हो जाती है। इस वजह से शरीर में एंटीबॉडीज कम बनती हैं। बीमारी से लड़ने की ताकत कम होने के कारण ये बाहरी चीजों (वायरस, बैक्टीरिया) को खत्म नहीं कर पाती नतीजा जान का जोखिम बढ़ता जाता है।
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