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चर्चित कविता रैना हत्याकांड में इंसाफ कब?:अपील के बाद सवा साल बाद नोटिस तामील कराने में लगा दिया, फिर जमानती वारंट अटका, अब 14 महीने से कोरोना ने अटकाया केस

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इंदौर3 घंटे पहलेलेखक: संतोष शितोले

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पुलिस के कमजोर इन्वेस्टिगेशन के कारण इंदौर के दिल दहलाने वाले चर्चित कविता रैना हत्याकांड की सुनवाई सुस्त है। इंसाफ का इंतजार है। आरोपी महेश बैरागी के बरी होने के मामले में शासन द्वारा हाई कोर्ट में की गई अपील मंजूर होने के बाद भी केस अटका है। फाइल विधि विभाग तक पहुंची। वहां कानूनविदों के अध्ययन के बाद ठोस बिंदुओं के आधार पर हाई कोर्ट में मामला पेश किया गया जिसमें एक साल लग गया। इसके बाद आरोपी को नोटिस तामील कराने में ही सवा साल लग गया। उसके खिलाफ जमानती वारंट जारी हुआ और फिर 14 महीनों से कोरोना संक्रमण के कारण केस को गति ही नहीं मिली। इसके पीछे थाना पुलिस की रुचि नहीं होना भी बड़ा कारण है।

फार्मा कंपनी के एरिया मैनेजर मित्रबंधु नगर निवासी संजय रैना की पत्नी कविता 24 अगस्त 2015 को एक्टिवा से अपनी बेटी यशस्वी को मुख्य मार्ग के बस स्टॉप पर लेने गई थी लेकिन फिर नहीं लौटी। फिर 26 अगस्त को तीन इमली पुलिया के नीचे बोरों में बंद उसके शव के टुकड़े मिले थे। 30 अगस्त को उसकी एक्टिवा नवलखा बस स्टैण्ड पार्किंग परिसर में मिली थी जिस पर खून लगा था। फिर 9 दिसंबर 2015 को पुलिस ने बुटिक सेंटर के संचालक महेश बैरागी निवासी आलोक नगर को गिरफ्तार किया था। तीन साल बाद 17 मई 2018 को जिला कोर्ट ने महेश बैरागी के खिलाफ दोष सिद्ध नहीं होने पर उसे बरी कर दिया था।

पुलिस की भूमिका पर उठे थे सवाल, असली आरोपी को गिरफ्तार करे
खास बात यह कि पुलिस ने हत्याकांड में खुलासे के दौरान ठोस गवाह, फोरेंसिक व टेक्निकल साक्ष्य होने का दावा किया था लेकिन धरातल पर सभी कमजोर साबित हुए। खुद बचाव पक्ष के अधिवक्ता चंपालाल यादव ने पुलिस के कमजोर इन्वेस्टिगेशन पर कई सवाल खड़े किए थे और असल अपराधी को गिरफ्तार किए जाने की बात कही थी। इसके करीब एक माह बाद हाई कोर्ट में अपील के लिए फाइल चली जिसमें अभियोजन की ओर से कई ठोस बिंदु बताए गए जिसमें बताया गया कि ये आरोपी पर दोष सिद्ध करने के लिए पर्याप्त हैं।

मकान बेचकर बाहर चला गया

मामले में 2019 में सभी संबंधितों को नोटिस जारी किए गए लेकिन मुख्य रूप से महेश बैरागी के लिए नोटिस महत्वपूर्ण था लेकिन वह और उसका परिवार कहां है, इसका पुलिस को लम्बे समय तक पता ही नहीं चला। दरअसल इस केस में महेश और उसका परिवार पुलिस की इतनी प्रताड़ना झेल चुका है कि शहर छोड़कर बहुत दूर चला गया जिससे उसे तब नोिटस तामील नहीं हुआ। पुलिस उसके 4, आलोक नगर स्थित उसके पूर्व निवास पर पहुंची तो कुछ लोगों ने बताया कि उसे आरोपी बनाए जाने के बाद से ही परिवार मुसीबतों से घिर गया था। बरी होने के बाद परिवार बमुश्किल एक हफ्ते कभी-कभार दिखा फिर मकान बेचकर चला गया। जिसे मकान बेचा उसे तक नहीं मालूम है कि वह और उसका परिवार कहां है?

मोबाइल कंपनी के ऑउटलेट पर पहुंची पुलिस और तामील कराया नोटिस

2019 में ही पुलिस को उसके परिवार का एक मोबाइल नंबर चालू मिला। उस पर जब भी फोन लगाया गया तो महिला ने उठाया। उसने इस बात की पुष्टि हुई कि मोबाइल महेश बैरागी व उसके परिवार का है लेकिन कहां रहते हैं इसे लेकर टालमटोल की। मात्र इतना बताया गया कि गुजरात में किसी गांव में है लेकिन गांव का नाम भी नहीं बताया। इसके बाद मोबाइल बंद ही रहा। चूंकि मामला काफी जघन्य था और तत्कालीन पुलिस अधिकारियों की भू्मिका पर भी लगातार सवाल उठते रहे। इस पर नोटिस तामील कराने पर जोर दिया। भंवरकुआं थाने के एएसआई रविराज को नोटिस तामील कराने की जिम्मेदारी गई। उन्होंने भी अपने स्तर पर काफी कोशिश की लेकिन कामयाबी नहीं मिली और सवा साल बीत गया। इस बीच उन्होंने अपना सूचना तंत्र मजबूत किया तो किसी ने बताया कि महेश संभवत: ओला कैब टैक्सी चलाता है। इस पर वे ओला कैब के इंदौर ऑफिस पहुंचे तो मामला सही निकला। यहां से हासिल महेश के एक मोबाइल नंबर को उन्होंने पुलिस की मदद से ब्लॉक करा दिया। वह उसे चालू कराने मोबाइल कंपनी के ऑउटलेट पर पहुंचा तो पुलिस को जानकारी मिली कि उसने अभी भी अपना पता 4 आलोक नगर ही लिखा रखा है लेकिन कहीं और रहता है। इस दौरान लगातार मॉनीटरिंग की गई और फिर महेश जैसे ही मोबाइल चालू कराने के फेर में ऑउटलेट पर आया और उसे नोटिस तामील करा दिया।

अपील के ये हैं ठोस बिंदु

– कविता ने अपनी ड्रेस जो महेश को सिलवाने दी थी उसका कपड़ा महेश के घर आलोक नगर से जब्त हुआ।

– आरोपी ने अपने बयान में कहा था कि जिस दिन कविता की शवयात्रा निकल रही थी उस दिन एक व्यक्ति आया और मुझसे कहा कि क्या 50 हजार रु. कमाओगे? मैंने हां कहा तो उसने कहा कि जाओ पास की दुकान के फुटेज लेकर आ जाओ। आरोपी देखना चाह रहा था कि फुटेज में खुद है कि नहीं। उसने खुद ने कहा कि था कि वह संबंधित को जानता नहीं लेकिन उसे बुलेट पर बताया जिसे मोबाइल नंबर नहीं दिया। इस तरह बार-बार अपने बयान बदलना।

– आरोपी के पास जो छह सिमें थी उनकी लोकेशन घटना के समय उसी चौराहे पर मिलना जहां से कविता गायब हुई थी।

– महेश ने आईडीए बिल्डिंग में कविता से बदसलूकी की थी वहां तथा शव के फेंकने वाले स्थान पर लोकेशन मिलना। उसकी एक्टिवा को नवलखा बस स्टैण्ड पर जाकर रखना और जल्दी में रवाना होना। इस दौरान स्टैण्ड संचालक से विवाद करना और संचालक द्नवारा उसे पहचानना।

– तीन दिन तक शव फेंकने वाले स्थान उसकी लोकेशन होना। उस समय पूछताछ में बार-बार बीमारी का बहाना बनाना।

– पूछताछ में उसकी मौसी की बेटी का सालों पहले गायब होना और उसका भी पता नहीं चलना की नई जानकारी मिलना।

और ऐसा लाचार सिस्टम

इस जघन्य व दिल दहलाने वाले हत्याकांड सहित ऐसे केस जिसमें आरोपी बरी हुए हैं, उसे लेकर हर बार यह बात उठती रही है कि इस तरह के केसों की एक मॉनीटरिंग के लिए एक सेल होना चाहिए जिसमें एक ओवायसी नियुक्त हो। अभी हो यह रहा है कि जांचकर्ता अधिकारी का ट्रांसफर होने के बाद संंबंधित थाने द्वारा अपनी ओर से हाई कोर्ट के केस की सुध नहीं ली जाती है और ऐसे मामले कोर्ट मुंशी के भरोसे नहीं छोड़े जा सकते। इसके चलते केसों में देर होती है। इस केस से जुड़े लोगों का मानना है कि महेश सहित बैरागी परिवार मामले में इतना प्रताड़ित हुआ था कि अब वैसी स्थिति आने देना चाहता। कविता के पति संजय रैना का कहना है कि हमें कोर्ट पर पूरा भरोसा है और न्याय मिलेगा।

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