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पाकिस्तान में सेना vs मीडिया: आर्मी के खिलाफ बगावत पर उतरे पत्रकार हामिद मीर ने कहा- मैं राजद्रोह के आरोप का सामना करूंगा; मेरा बचाव जिन्ना के अनुयायी करेंगे

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Hindi NewsDb originalBal Gangadhar Tilak Is My Role Model; Jinnah Fought The Case Of Sedition Against Him, I Will Also Face The Charge Of Sedition By The Army; Jinnah’s Followers Will Defend Me

20 मिनट पहलेलेखक: संध्या द्विवेदी

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पाकिस्तान में एक बार फिर मीडिया सेना की घेराबंदी में है। इस बार उसके निशाने पर हैं पाकिस्तान के पत्रकार और जियो के लोकप्रिय शो ‘कैपिटल टॉक’ के एंकर हामिद मीर। एक पत्रकार पर हुए हमले के खिलाफ किए गए प्रदर्शन में हिस्सा लेने के बाद हामिद मीर पर आरोप है कि उन्होंने सेना के खिलाफ बयानबाजी की है।

हामिद मीर को उनके चैनल से भी ऑफ एयर कर दिया गया है। हामिद कई पाकिस्तानी अखबारों में अपने कॉलम लिखते रहे हैं, फिलहाल उनके कॉलम भी बंद करा दिए गए हैं। कहा जा रहा है कि सेना ने मीडिया संस्थानों के मैनेजमेंट पर दबाव डालकर ऐसा कराया है। चर्चा है कि जल्द ही सेना हामिद मीर के खिलाफ राजद्रोह और बगावत का केस दर्ज करा सकती है।

दैनिक भास्कर ने इस प्रकरण को लेकर हामिद मीर से बातचीत की। उनका कहना है कि ‘हम सेना के खिलाफ नहीं हैं। न मैंने ऐसी कोई बात बोली है जो किसी भी संस्था के खिलाफ युद्ध छेड़ने जैसी हो। हम एक खास ‘माइंडसेट’ के खिलाफ लड़ रहे हैं।’ पेश हैं, इस बातचीत के खास अंश…

जियो TV में प्रसारित होने वाला आपका बेहद लोकप्रिय शो ‘कैपिटल टॉक’ ऑफ एयर कर दिया गया, क्यों?चैनल के प्रबंधन पर बहुत दबाव था। चैनल की तरफ से मुझे पहले कभी कोई शोकॉज नोटिस भी नहीं दिया गया क्योंकि मैंने कभी उस प्लेटफार्म का ऐसा इस्तेमाल नहीं किया, जिससे उन्हें कोई कार्रवाई करनी पड़े।

आपने कई सरकारें देखी हैं। मौजूदा हुकूमत को किस तरह से देखते हैं? पिछली सरकार के मुकाबले मौजूदा सरकार के मीडिया से संबंध कैसे हैं?

मैं पहले भी दो बार नौकरी गवां चुका हूं। पहली बार 1994 में जब बेनजीर प्रधानमंत्री थीं और दूसरी बार 1997 में तब जब नवाज शरीफ PM थे। मुझे एक न्यूजपेपर से निकाल दिया गया, लेकिन दूसरी जगह आसानी से जॉब मिल गई। मुशर्रफ के शासन काल में भी दो बार मेरी TV एंकरिंग बैन हुई। हालांकि, मुझे न्यूज पेपर में लिखने से नहीं रोका गया, लेकिन इस बार TV और न्यूज पेपर दोनों से मुझे बैन किया गया है।

किसी नियामक संस्था या कोर्ट ने मुझे लिखित में कोई नोटिस नहीं जारी किया है। डेली जंग ने मेरा कॉलम पब्लिश करना बंद कर दिया है। पहले की हुकूमत और मौजूदा हुकूमत में इसी से फर्क समझा जा सकता है। मुझे मास मीडिया के हर फार्म में बैन कर दिया गया है। मीडिया लगातार स्वतंत्रता खो रहा है और प्रधानमंत्री इमरान खान लाचार हैं।

प्रधानमंत्री इमरान खान आपके प्रशंसक हैं। लेकिन इस कठिन वक्त में वे आपकी सहायता नहीं कर रहे, क्यों?

निजीतौर पर प्रधामंत्री इमरान खान जी आज भी मुझे सपोर्ट करते हैं। लेकिन, मैं उनकी सीमाएं समझता हूं। 2014 में मुझ पर हत्या के इरादे से हमला हुआ। मैं बच गया। तब, नवाज शरीफ प्रधानमंत्री थे। उस कठिन वक्त में इमरान खान मेरे साथ थे, लेकिन वे हमलावरों की गिरफ्तारी करवाने में नाकाम रहे।

इसके पहले 2012 में मेरी कार में बम लगाया गया। तब, यूसुफ रजा गिलानी प्रधानमंत्री थे। उनसे हमारे घरेलू ताल्लुक थे। वे भी लाचार थे। देश के प्रधानमंत्री का लाचार होना दुखद है। मौजूदा प्रधानमंत्री इमरान की स्थिति भी पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ और गिलानी से अलग नहीं है।

एक भारतीय विशेषज्ञ का कहना है कि हामिद मीर के प्रदर्शन में दिए बयान से साफ है कि भारत के साथ शांति की योजना पाकिस्तानी सरकार से ज्यादा आर्मी जनरल बाजवा का निजी प्रोजेक्ट है। इस शांति योजना को न तो राजनीतिक मदद मिल रही है और न व्यापक स्तर पर स्वीकृति।आपका और मीडिया का विरोध कहीं और दिशा में तो नहीं है? आखिर माजरा क्या है?

28 मई के अपने भाषण में मैंने किसी का नाम नहीं लिया। सिर्फ इतना भर कहा था कि कोई भी पाकिस्तानी मीडिया पर अपनी नीति जबरन नहीं थोप सकता। इसका यह मतलब कैसे निकाला जा सकता है कि मीडिया भारत के साथ शांति वार्ता को सपोर्ट नहीं कर रहा है? फरवरी 2021 में LOC पर हुए सीजफायर को मैंने खुद सपोर्ट किया था। 2021 में LOC पर जाकर एक शो भी किया। इसमें मैंने इस सीजफायर के कई पॉजिटिव पहलू उजागर किए। लेकिन, दुर्भाग्यपूर्ण है कि इस बैक चैनल प्रोसेस को यहां के नेताओं ने सपोर्ट नहीं किया। अगर नेता ही साथ न आना चाहें तो फिर मीडिया भारत के साथ की शांति वार्ता को कैसे सपोर्ट कर सकता है?

पाकिस्तानी मीडिया ने कई बार साहस दिखाया है। कई पत्रकार हुकूमत के खिलाफ संघर्ष करते हुए मारे भी गए। फिलहाल आप खुद बैन झेल रहे हैं। इतने दबाव में आप और पाक मीडिया कब तक खुद को बचा कर रख पाएंगे?

पाकिस्तानी मीडिया ने अपनी आजादी के लिए बहुत त्याग किया है। 1990 से लेकर 2021 तक 140 से ज्यादा पत्रकार अपनी ड्यूटी करते हुए मारे गए। पाकिस्तान फेडरल यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट इस संघर्ष को जारी रखने के लिए प्रतिबद्ध है। इस समय भी पूरा पत्रकार समुदाय मेरे पीछे खड़ा है।

पाकिस्तान में इस समय हो रहे विरोध प्रदर्शन और मीडिया की मौजूदा स्थिति को क्या पाकिस्तानी राजनीति में आ रहे बदलाव की झलक माना जा सकता है। आर्मी, सिविल एस्टेब्लिशमेंट और धार्मिक लीडरशिप के बीच शक्ति संतुलन को लेकर ट्रांसफॉर्मेशन की प्रक्रिया चल रही है?

पॉलिटिकल पार्टियां यहां बहुत मजबूत नहीं हैं। लेकिन हमें यहां के पत्रकार समुदाय, लॉयर्स, स्टूडेंट्स, सिविल सोसायटी से बहुत सपोर्ट मिलता है। हम आर्मी के खिलाफ नहीं लड़ रहे हैं। यह किसी संस्था के खिलाफ युद्ध छेड़ने जैसा नहीं है। हम एक माइंडसेट के खिलाफ लड़ रहे हैं। हम पाकिस्तान के भीतर ‘रूल ऑफ लॉ’ चाहते हैं। हमारी लड़ाई बस इतनी ही है।

आप अपनी यात्रा को किस तरह से देखते हैं, आपको क्या चीज है जो प्रेरित करती है?मौलाना मोहम्मद अली जौहर (आजादी की लड़ाई के दौरान खिलाफत आंदोलन के नेता) मेरे रोल मॉडल हैं। ब्रिटिश हुकूमत में वे अपने भाषणों और लेखन के लिए कई बार गिरफ्तार हुए। बाल गंगाधर तिलक भी मेरे रोल मॉडल हैं। जब बाल गंगाधर तिलक पर राजद्रोह का मामला चला, तब कोर्ट में उनके बचाव में मोहम्मद अली जिन्ना ने केस लड़ा था। मैं राजद्रोह के आरोप का सामना करने को तैयार हूं। कोर्ट में मेरा बचाव जिन्ना के अनुयायी करेंगे।

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