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Hindi NewsJeevan mantraDharmBaglamukhi Prakashotsav Is In The Village Of Bankhandi In Uttarakhand Today, Devi Baglamukhi Temple, Being Yellow In Color, Is Called Pitambara
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5 घंटे पहले
कॉपी लिंकमान्यता: पांडवों ने की थी इस मंदिर की स्थापना, अर्जुन और भीम ने शक्ति पाने के लिए की थी यहां पूजा
वैशाख महीने के शुक्लपक्ष की अष्टमी तिथि को देवी बगलामुखी का प्राकट्योत्सव मनाया जाता है। ये पर्व आज ही है। बगलामुखी माता धर्म में 10 महाविद्याओं में से एक है। कांगड़ा जनपद के कोटला कस्बे में मौजूद मां बगलामुखी का सिद्ध शक्तिपीठ है। मन्नतें पूरी होने पर यहां सालभर लोग आते हैं। मां बगलामुखी का मंदिर ज्वालामुखी से 22 किलोमीटर दूर वनखंडी नाम की जगह पर है। ये राष्ट्रीय राजमार्ग पर कांगड़ा हवाईअड्डे से पठानकोट की ओर 25 किलोमीटर दूर कोटला कस्बे में पहाड़ी पर मौजूद इस मंदिर के चारों ओर घना जंगल है। ये मंदिर प्राचीन कोटला किले के अंदर है।
माना जाता है कि देवी बगलामुखी मंदिर में हवन करवाने का विशेष महत्व है। इससे मुसीबतों से छुटकारा पाने के साथ ही बीमारियां दूर होती है और दुश्मनों पर जीत मिलती है। युद्ध, राजनीति से जुड़े मामले या फिर कोर्ट-कचहरी के विवादों में जीत पाने के लिए इस मंदिर में देवी की विशेष पूजा करवाई जाती है।
पीला रंग होने से इन्हें कहते हैं पितांबरापांडुलिपियों में देवी के जिस रूप का जिक्र है। उसी रूप में देवी बगलामुखी यहां विराजमान हैं। बनखंडी गांव के इस बगलामुखी मंदिर के पुजारी ने बताया कि देवी हल्दी रंग के जल से प्रकट हुई थीं। पीले रंग के कारण मां को पीतांबरा देवी भी कहते हैं। इन्हें पीला रंग बहुत प्रिय है, इसलिए इनकी पूजा में पीले रंग की चीजों का इस्तेमाल किया जाता है। देवी बगलामुखी का रंग सोने के समान पीला होता है।
भगवान विष्णु और ब्रह्मा ने की देवी की पूजामाता बगलामुखी दस महाविद्याओं में 8वीं हैं। खासतौर से इनकी आराधना दुश्मनों पर जीत पाने के लिए की जाती है। धर्म ग्रंथों के मुताबिक माता बगलामुखी की आराधना सबसे पहले ब्रह्माजी और भगवान विष्णु ने की थी। इसके बाद भगवान विष्णु के अवतार परशुराम ने देवी बगलामुखी की पूजा करके कई लड़ाईयां जीती थी।
मान्यता: पांडवों ने की मंदिर की स्थापनाद्रोणाचार्य, रावण, मेघनाद इत्यादि सभी महायोद्धाओं द्वारा माता बगलामुखी की आराधना करके अनेक युद्ध लड़े गए। मंदिर के पुजारी बताते हैं कि इस मंदिर की स्थापना द्वापर युग में पांडवों ने अज्ञातवास के दौरान की थी। इसके बाद अर्जुन और भीम ने शक्ति पाने के लिए यहां पूजा की थी।
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