May 2, 2024 : 7:38 AM
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भास्कर खास: ‘पप्पू’ के बाद ‘बालबुद्धि सांसद’ बोलना भी असंसदीय, अब रिश्तों के सहारे तंज पर भी लगाई जा रही लगाम

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नई दिल्ली4 घंटे पहले

कॉपी लिंक‘पप्पू’ के बाद - Dainik Bhaskar

‘पप्पू’ के बाद

संसद की कार्यवाही ज्यादा मर्यादित बनाने को दोनों सदनों के सभापति कर रहे प्रयास

संसद की लिखित कार्यवाही को अधिक से अधिक ‘मर्यादित’ करने पर दोनों सदनों के सभापति खास जोर दे रहे हैं। इसी का नतीजा है कि बजट सत्र में अशोभनीय छींटाकशी, गैर सदस्य का नाम लेने की जगह रिश्तों से इंगित करने, घुमा-फिराकर आपेक्ष लगाने, राज्य सरकारों को संसदीय कार्यवाही में घसीटने जैसे मामलों में ‘जीरो टॉलरेंस’ की नीति अपनाई जा रही है।

बजट सत्र के पहले हिस्से में ‘बालबुद्धि सांसद’ शब्द को असंसदीय करार दिया गया है। इस जुमले का इस्तेमाल सांसदों का उपहास उड़ाने के लिए किया गया था। 16वीं लोकसभा में तत्कालीन स्पीकर सुमित्रा महाजन ने ‘पप्पू’ शब्द पर अनौपचारिक रूप से रोक लगाई थी जिसे 17वीं लोकसभा में स्पीकर ओम बिरला ने असंंसदीय शब्दों की सूची में शामिल करवा दिया।

दोनों सदनों की कार्यवाही को लिखित रूप से दर्ज करने वाले संबंधित विभाग को कार्यवाही से अमर्यादित शब्द हटाने के निर्देश दिए गए हैं। इसमें सदस्य की हैसियत को पैमाना नहीं रखा गया है। सांसदों ही नहीं शीर्ष मंत्रियों तक की असंसदीय, अकारण, नियम से हटकर की गई टिप्पणियों को हटाया जा रहा है।

सर्वाधिक आठ बार हटाया जीजाकिसी विशेष घराने पर निशाना साधने के कारण ‘परिवार’ शब्द को भी कार्यवाही से हटाया गया है। इसी तरह किसी सीएम का नाम लेने के बजाए ‘दीदी’ या ‘दादा’ जैसे शब्दों के इस्तेमाल को भी असंसदीय माना गया है। बजट सत्र में सर्वाधिक आठ बार जीजा शब्द हटाया गया। वहीं, दामाद, जीजी और दीदी को भी हटाया गया है।

तंज कसने के लिए परिवार, एक ही परिवार, जीजा, दो बच्चे, दीदी जैसे शब्द अवांछित, अशोभनीय व संसदीय मर्यादा के प्रतिकूल जुमलों को भी हटा दिया गया। ‘अनपढ़ सांसद’ और ‘अंगूठा छाप सांसद’ को भी असंसदीय सूची में डाला जा चुका है।

2000 पन्नों का हो गया असंसदीय शब्दों-जुमलों का संग्रह

संसद में उन व्यक्तियों, संगठनों, संस्थाओं का नाम लेने की भी अनुमति नहीं है जो सदन के सदस्य नहीं हैं और अपने खिलाफ लगे आरोपों का जवाब देने के लिए मौजूद नहीं होते। असंसदीय शब्दों और जुमलों का 1134 पृष्ठों का पहला संग्रह 2009-10 में प्रकाशित हुआ था। पांच साल बाद इसे अपडेट किया गया तो पृष्ठों की संख्या 2000 के करीब पहुंच गई। अब इसका नया संग्रह भी लाने की तैयारी हो रही है।

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