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एक घंटा पहले
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- पॉलीफ्लूरोएल्किल केमिकल फेफड़ों तक पहुंचा तो संक्रमण का खतरा बढ़ने के साथ हालत और नाजुक होगी
- यह केमिकल पैंन्स, बर्तनों, पिज्जा के डिब्बों और वाटरप्रूफ कपड़ों में पाया जाता है
अमेरिकी वैज्ञानिकों ने रोजमर्रा की चीजों में इस्तेमाल होने वाले ऐसे केमिकल का पता लगाया है जो कोरोना की वैक्सीन के असर को कम कर सकता है। हार्वर्ड स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के प्रोफेसर फिलिपी ग्रेंडजीन कहते हैं, महामारी के इस पड़ाव पर पॉलीफ्लूरोएल्किल केमिकल वैक्सीन पर कितना असर डालेगा, यह हम बता नहीं सकते। लेकिन इससे खतरा तो है। हम सिर्फ उम्मीद कर सकते हैं कि सब कुछ ठीक रहे।
रिसर्च करने वाले वैज्ञानिकों का कहना है, यह केमिकल कोरोना का रिस्क बढ़ा सकता है। अगर यह केमिकल फेफड़ों तक पहुंचता है तो हालत और भी नाजुक हो सकती है।
इन चीजों में पाया जाता है पॉलीफ्लूरोएल्किल
वैज्ञानिकों के मुताबिक, पैंन्स, बर्तनों, पिज्जा के डिब्बों और वाटरप्रूफ कपड़ों में पॉलीफ्लूरोएल्किल केमिकल पाया जाता है। इसे PFAS भी कहते हैं। यह कोरोना की वैक्सीन को बुरी तरह प्रभावित कर सकता है।
कितना खतरनाक है यह केमिकल
रिसर्चर्स के मुताबिक, यह केमिकल लिवर डैमेज करने, कैंसर का कारण बनने और प्रजनन क्षमता को घटाने का रिस्क बढ़ाता है। शुरुआती रिसर्च कहती है, ऐसे बच्चे जो इस केमिकल के सम्पर्क में रहते हैं उनमें टिटनेस और डिप्थीरिया की वैक्सीन लगने पर एंटीबॉडीज की संख्या कम दिखी।
कोरोना की वैक्सीन भी ऐसी हुई तो बुरा असर दिख सकता है
प्रोफेसर फिलिपी ग्रेंडजीन कहते हैं, जिस तरह डिप्थीरिया और टिटनेस की वैक्सीन लगने पर बच्चों में इसके खिलाफ एंटीबॉडीज कम बनीं, उसी तरह अगर कोविड की वैक्सीन भी इसी नेचर की हुई तो यह केमिकल इसे भी प्रभावित कर सकता है। यह कोरोना पर वैक्सीन के रेस्पॉन्स को कम कर सकता है। फिलहाल इस बारे में और अधिक जानकारी सामने आना बाकी है।
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