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श्रीराम ने पिता और गुरु की हर बात मानी, सभी माताओं का समान सम्मान किया, सीता के प्रति समर्पित रहे और हनुमानजी को भरत के समान माना

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15 मिनट पहले

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  • विवाह के बाद श्रीराम ने सीता को वचन दिया था कि वे किसी अन्य स्त्री को रानी नहीं बनाएंगे, उनकी सिर्फ एक ही पत्नी सीता रहेंगी
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5 अगस्त को अयोध्या में श्रीराम के मंदिर का भूमि पूजन हो रहा है। श्रीराम के व्यक्तित्व से हम ऐसी बातें सीख सकते हैं, जिनसे हमारे जीवन की सभी समस्याएं दूर हो सकती हैं। श्रीरामचरित मानस के अनुसार श्रीराम पूरे जीवन मर्यादा में रहें। इसी वजह से इन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम कहा जाता है। जानिए श्रीराम के व्यक्तित्व की कुछ खास बातें…

परिवार में सभी का मान रखा

श्रीराम के पिता राजा दशरथ के वचन को पूरा करने पर उन्होंने तत्काल राजमहल छोड़ दिया। पिता की आज्ञा उनके लिए सबसे महत्वपूर्ण थी। श्रीराम की तीन माताएं थीं और वे सभी का समान सम्मान करते थे। कैकयी के कहने पर उन्हें वनवास जाना पड़ा, लेकिन उन्होंने कभी भी कैकयी का अनादर नहीं किया। जन्म देने वाली माता कौशल्या की तरह ही वे कैकयी और सुमित्रा का सम्मान करते थे।

श्रीराम अपने तीनों भाइयों से निस्वार्थ प्रेम करते थे। इसीलिए उन्होंने भरत को राजपाठ मिले, इसीलिए वनवास जाना मंजूर कर लिया। लक्ष्मण और शत्रुघ्न पर भी श्रीराम की विशेष कृपा रहती थी।

सीता के प्रति श्रीराम पूर्ण समर्पित थे। सीता को विवाह वाले दिन ही ये वचन दिया था कि वे किसी और स्त्री से विवाह नहीं करेंगे। उनकी सिर्फ एक ही पत्नी सीता रहेंगी। श्रीराम कुल गुरु वशिष्ठ और ऋषि विश्वामित्र के साथ अत्रि ऋषि, अगस्तयमुनि का भी पूरा सम्मान करते हैं। वे गुरुओं का स्थान हमेशा सबसे ऊंचा मानते थे।

मित्रों के दुख दूर किए

श्रीराम ने सुग्रीव और विभीषण से मित्रता की थी। इन दोनों मित्रों की परेशानियों को दूर किया और मित्र धर्म निभाया था। श्रीराम ने अपने मित्रों के दुख को अपना समझा और उन्हें हर परेशानी से बचाया।

हनुमानजी को हृदय से लगाया

हनुमानजी स्वयं को श्रीराम का सेवक ही मानते हैं। जबकि श्रीराम हनुमानजी को अपने भाइयों की तरह ही मानते थे। हनुमानचालीसा में तुलसीदास ने लिखा है कि रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई। तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई।

वानरों ने श्रीराम के मार्गदर्शन में बनाया रामसेतु

श्रीराम को सभी वानरों के साथ लंका पहुंचना था। इसके लिए उन्हें समुद्र पार करना था। श्रीराम ने कई बार समुद्र से प्रार्थना की थी कि वानर सेना को निकलने के लिए रास्ता दें। लेकिन, समुद्र ने श्रीराम की प्रार्थना नहीं सुनी। तब क्रोधित होकर श्रीराम ने धनुष पर बाण चढ़ाया और कहा कि आज मैं इस समुद्र को सूखा देता हूं। ये सुनते ही समुद्र के देवता प्रकट हुए। उन्होंने बताया कि नल और नील मिलकर समुद्र पर सेतु बांध सकते हैं। इसके बाद सभी वानरों ने श्रीराम के मार्गदर्शन में समुद्र पर सेतु बांध दिया था।

शत्रु का भी सम्मान किया

रावण श्रीराम के प्रहारों से घायल हो गया था और जीवन के अंतिम समय में पहुंच गया था। रावण श्रीराम का शत्रु था, लेकिन वह विद्वान था इसीलिए श्रीराम ने लक्ष्मण को रावण के पास ज्ञान हासिल करने भेजा था।

श्रीराम से हम सीख सकते हैं कि हमें हर परिस्थिति में परिवार के सभी लोगों का सम्मान करना चाहिए। जीवन साथी के प्रति पूर्ण समर्पण का भाव रखें। अपने गुरु की हर आज्ञा का पालन करना चाहिए। मित्रता में मित्रों के दुख को अपना समझें। जो लोग हमारे लिए काम कर रहे हैं, उन्हें परिवार के सदस्य की तरह मान देना चाहिए और उनका कुशल मार्गदर्शन करना चाहिए। शत्रुओं को भी सम्मान दें। जो लोग इन सूत्रों को ध्यान रखते हैं, उन्हें जीवन में सुख और सफलता दोनों मिल सकते हैं।

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