- धारावी 2 लाख लोगों को रोज़गार देती है, यहां 25000 स्मॉल स्केल यूनिट्स हैं, जिसका सालाना 100 करोड़ का टर्नओवर है
- बब्बू खान के यहां दस कारखाने हैं, सालाना टर्नओवर दो करोड़ है, लॉकडाउन खुला तो कारखानें दोबारा शुरू करना चाहते हैं लेकिन एक भी मजदूर नहीं है
मनीषा भल्ला
Jun 16, 2020, 05:33 AM IST
धारावी, मुंबई. धारावी देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में बसा एशिया का सबसे बड़ा स्लम है। यह लेदर, गारमेंट्स, प्लास्टिक, ब्रांडेड कपड़ों और एल्यूमिनियम की मैन्यूफैक्चरिंग के लिए मशहूर है। यहां उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल और दक्षिण भारत के लगभग सवा आठ लाख प्रवासी रहते हैं।
किसी वक्त धारावी में फैला कोरोना मुंबई के लिए चुनौती बनता जा रहा था, लेकिन बीते एक हफ्ते से यहां कोरोना नियंत्रण में है। धारावी अब धीरे-धीरे रफ्तार पकड़ना चाहती है लेकिन इसे दौड़ाने का जिम्मा जिन कंधो पर होता है वह मजदूर वर्ग अब यहां नहीं है।
प्रवासी मजदूरों के जाने से कारखाने बंद
कोरोना की वजह से यहां रहने वाले लाखों मजदूर अपने घर लौट चुके हैं। प्रवासी मजदूरों की कमी से यहां के कल-कारखाने सूने हो गए हैं। वे मजदूरों की बाट जोह रहे हैं। वे दुकान खोलना चाहते हैं, अपना कारोबार शुरू करना चाहते हैं लेकिन उनके पास कामगार नहीं हैं।
धारावी 2 लाख लोगों को रोजगार देती है
टाटा इंस्टीटयूट ऑफ सोशल साइंस के डीन मनीष झा बताते हैं कि धारावी लगभग 2 लाख लोगों को रोजगार देती है। यहां करीब 25,000 स्मॉल स्केल यूनिट्स हैं। इनका औसतन 100 करोड़ के आसपास का सालाना टर्नओवर रहता है।
धारावी में एक रेडीमेट गारमेंट के कारखाने की मालकिन रेहाना खान बात करते- करते रोने लगती हैं। कहती हैं- मेरे ‘दो बेटे और दो बहुएं हैं, सब कुछ शानदार चल रहा था। लॉकडाउन में मजदूर गांव चले गए तो कारखाना बंद हो गया। अब हालत यह है कि घर में राशन की भी दिक्कत आने लगी है। इतने सालों में पहली बार ऐसा हुआ कि मेरे दोनों बेटों और बहुओं में मारपीट की नौबत तक आ गई। रेहाना के पास दस कारीगर थे। दो महीने तक उन्हें अपने पास रखा भी लेकिन वे नहीं रुके।
यहां के नगर सेवक बब्बू खान के पास रेडीमेट गारमेंट के दस कारखाने हैं। वे बताते हैं कि मैं यहां माल तैयार करवाकर दादर के होलसेल मार्केट में बेचता था और विदेशों में भी एक्सपोर्ट करता था। मेरा सालाना टर्नओवर दो करोड़ के आसपास है। लॉकडाउन खुल चुका है, कारखानें दोबारा शुरू करना चाहता हूं लेकिन मेरे पास एक भी मजदूर नहीं है। वे कहते हैं कि यहां से प्रवासी मजदूर जिन हालातों में गए हैं, उन्हें समझ नहीं आता कि किस मुंह से वापस आने के लिए कहूं।
धारावी से दुबई, यूके लेदर का सामान एक्सपोर्ट होता है
बिहार के सीतामढ़ी के रहने वाले अबूला शेख के पास धारावी में लेदर के दो कारखानें हैं। इनका सालाना टर्नओवर लगभग तीन करोड़ रुपए है। लगभग 35 मजदूर इनके यहां काम करते थे। शेख बताते हैं कि मेरे यहां कारखाना खोलने वाला तक कोई नहीं है। हमारे यहां से दुबई, यूके,अमेरिका और सउदी अरब में लेदर के सामान का एक्सपोर्ट होता था। देश में भी कई कॉरपोरेट कंपनियों को हम सामान सप्लाई करते थे। लेकिन कोरोना के बाद कारखाना खोलना भी चाहे तो हमारे पास कारीगर नहीं है। जब तक वे लौटेंगे तब तक पता नहीं हम बचेंगे या नहीं।
कोरोना के डर से मजदूर नहीं लौट रहे
धारावी गारमेंट एसोसिएशन के अध्यक्ष कलीम अहमद अंसारी लगातार मजदूरों से बात कर रहे हैं। वह बताते हैं कि जो मजदूर गांव लौट कर गए हैं उनके पास अभी रोजगार नहीं है। वे वापस आना चाहते हैं लेकिन कोरोना के डर से नहीं आ रहे हैं। जब कोरोना खत्म होगा तब वे वापस आएंगे।
30 साल से दूध का कारोबार कर रहे कैलाश डेयरी के विपिन बताते हैं कि उनके यहां 25 लोग काम करते थे। वे लोग एक साथ रहते थे और कॉमन टॉयलेट यूज़ करते थे, जो खतरनाक साबित हो सकता था। इसलिए उन्होंने मजदूरों को उनके घर जौनपुर भेज दिया। वे कहते हैं कि जबतक मजदूर वापस नहीं आते हैं उनका काम शुरू नहीं हो पाएगा।
धारावी के पास ही माटूंगा रोड पर दक्षिण भारतीय गणेश यादव का अरोरा सिंगल स्क्रीन सिनेमाहॉल है। लॉकडाउन खुलने के बाद भी सिनेमा खोलने का उनका कोई इराद नहीं है। उनका कहना है कि सरकार की नई गाइडलाइन के अनुसार अब सिनेमा में मुनाफा नहीं रह जाएगा। उनके पास सिनेमा हॉल चलाने वाले लोग भी नहीं हैं। दक्षिण भारतीय लोग यहां इडली बनाने का कारोबार करते थे। वे अब अपने गांव चले गए हैं। हालांकि उम्मीद है कि वे लौटकर आएंगे।
गोवंडी अंडरगारमेंट्स मैन्यूफैक्चरिंग के लिए मशहूर
धारावी के पास ही एक और इंडस्ट्रीयल एरिया है गोवंडी। जो माइग्रेंट्स के चले जाने से सुनसान पड़ा है। गोवंडी अंडरगारमेंट्स मैन्यूफैक्चिरंग के लिए जाना जाता है। यहां मछली का कारोबार करने वाले विक्की सिंह बताते हैं कि 60 फीसदी मजदूर गांव जा चुके हैं।
उनसे वापस आने के लिए कहा जा रहा है तो वे एडवांस पेमेंट मांग रहे हैं। हमें अपना कारोबार चलाने के लिए उन्हें पेमेंट करना ही होगा। पास में ही सईद आरजू हुसैन की दुकान है। वे बताते हैं कि दो महीने पहले ही उन्होंने 80,हजार रुपए देकर भाड़े पर गोदाम लिया था। जो बंद पड़ा है।
मुंबई के मशहूर दिल्ली दरबार होटल के मालिक ज़फर भाई बताते हैं कि उनके पास 20 शेफ थे जो यूपी के बहराइच जिले के थे। लॉकडाउन में सभी अपने गांव चले गए। अब वे होटल खोल रहे हैं। उन्होंने मजदूरों को वापस लाने के लिए ट्रेन का टिकट कराया है।
गोवंडी से विधायक अबू आज़मी का कहना है कि मजदूर इसलिए गए क्योंकि यहां उनके घर छोटे थे, सोशल डिस्टेंसिंग नहीं हो सकती थी, उनके पास रोजगार नहीं था, खाने के लिए राशन नहीं था, कम से कम गांव में लोग एक दूसरे की मदद कर देते हैं और कोई भूखा नहीं मरता। घर भी खुले होते हैं। उनका कहना है कि मजदूरों के जाने से यहां की इंडस्ट्री पर साफ असर दिख रहा है। जब तक कोरोना पर नियंत्रण नहीं होता है तब तक उनका लौटना संभव नहीं है।
प्रवासी श्रमिकों को उनके घर पहुंचाना चैलेंजिंग था: रमेश बाबुराव
प्रवासी मजदूरों को उनके घर तक पहुंचाना आसान नहीं था। धरावी के वरिष्ठ पुलिस निरीक्षक रमेश बाबुराव नांगरे बताते हैं कि उनके पास 200 पुलिसकर्मियों का स्टाफ है। इनमें से 55 साल से ऊपर के 120 पुलिसकर्मी ऑफ डयूटी पर थे, 33 पुलिसकर्मी कोरोना पॉज़िटिव हो गए थे।
मेरे पास सिर्फ 80 पुलिसकर्मी थे। वे बताते हैं कि जब केंद्र सरकार ने ट्रेनें चलाने की मंजूरी दी तो प्रवासी श्रमिकों को उनके घर तक पहुंचाना धरावी पुलिस के लिए चैलेंजिंग टास्क था।
इसके लिए हमने 30-30 लोगों का एक ग्रुप बनाया और हर ग्रुप का एक लीडर भी बनाया। जैसे ही हम 30 लोगों को स्टेशन छोड़ते फिर अगले ग्रुप को फोन करके बुलाते थे। उनका ग्रुप लीडर उन्हें कतार में खड़ा करता था। लोग दो- दो घंटा धूप में खड़े रहकर भी अपनी बारी का इंतज़ार करते थे।
वे बताते हैं कि जाने वाले लोग इतने थे कि हमारे पास बसें कम पड़ रही थीं। एक बस लौटकर भी नहीं आती थी कि दूसरी कतार में लग जाती थी। लेकिन लोगों ने हौसला बनाए रखा। क्या जाने वाले वापिस आएंगे? इस सवाल पर नांगरे कहते हैं कि वे हर हाल में वापस आएंगे। उन्होंने बताया कि कई लोगों फोन कर बताते हैं कि गांव में और भी बुरा हाल है। कोरोना संक्रमण खत्म होने के बाद वे वापस लौटेंगे।